कहते हैं कि क्रिकेट में विकेटकीपर पूरी टीम के मनोबल को बढ़ा सकता है. आज की तारीख में कैप्टन कूल कहे जाने वाले धोनी इस की सबसे बड़ी मिसाल हैं. मगर इससे पहले भी एक हिंदुस्तानी विकेटकीपर हुआ है जिसे क्रिकेट के इतिहास में तमाम कारणों के साथ-साथ मैदान पर दिखने वाले जोश के लिए भी याद किया जाता है. बात 19 दिसंबर को पैदा हुए विकेटकीपर नयन मोंगिया की.
नयन मोंगिया : बेहतरीन विकेटकीपर या फिक्सिंग का खलनायक?
जिसके जोश से अंपायर भी परेशान रहते थे. आज बड्डे है.

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नयन मोंगिया के क्रिकेट करियर के बारे में बात करते समय ये तय करना मुश्किल होता है कि उनके दामन में सफेद बातें ज़्यादा हैं या काली. एक ओर टीम का जोश बढ़ाने के लिए इतनी अपील कि जुर्माना लग जाए. दूसरी तरफ मैच फिक्सिंग का काला अध्याय उनके साथ जुड़ा है. नयन मोंगिया की शुरुआत वडोदरा से 1989-90 में हुई. उस समय किरन मोरे भारतीय क्रिकेट टीम के विकेटकीपर थे और नयन के लिए टीम में जगह बनाना मोरे के बाद ही संभव हुआ. 1994 में मोंगिया का टेस्ट डेब्यू हुआ. मोंगिया हिंदुस्तान के नैचुरल कीपर कहे जाते रहे है. एक ही टेस्ट में 8 कैच लेने वाले वो एकमात्र कीपर हैं जो लंबे समय तक इंडियन स्पिन पर मुस्तैदी से कीपिंग करते रहे. एक समय पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज़ में टूटी उंगली के साथ कीपिंग करने वाले मोंगिया ने ज़्यादातर समय बैट्समैन के तौर पर निराश ही किया. उनके पूरे करियर में सिर्फ 152 रन की एक पारी है जिसे उनकी बेस्ट पारी के तौर पर देखा जा सकता है. मगर मोंगिया का रणजी में बल्लेबाजी रिकॉर्ड काफी अच्छा है. वो 5 मैचों में 555 रन बनाकर नेशनल टीम में आए थे. सब कुछ अच्छा था. मगर एक मैच ने मोंगिया के करियर और साख दोनों को शक के दायरे में ला दिया. कानपुर में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ मैच चल रहा था. पहले मोंगिया ने एक सुनिश्चित रन आउट छोड़ा फिर प्रभाकर के साथ मिलकर ऐसे बल्लेबाजी की कि लगा दोनों हारने के लिए ही खेल रहे हैं. मोंगिया ने 21 गेंदो पर नॉटआउट रहते हुए 4 रन बनाए. https://www.youtube.com/watch?v=5N9dWRuQbUg 2011 में BCCI के सचिव जयवंत लेले ने अपनी किताब ‘I was there’ में लिखा, सचिन और द्रविड़ को पूरा विश्वास था कि मोंगिया फिक्सिंग में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे. मगर लेले ने अपनी किताब में ये भी कहा कि कोई भी भारतीय फिक्सिंग में शामिल नहीं था. सच्चाई चाहे जो भी हो मगर मोंगिया फिक्सिंग के इस प्रकरण से निकल नहीं पाए. 2004 तक फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया.