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अच्छा खाना नहीं, अच्छी किट नहीं, और एथलीट भी नहीं, 'खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स' का ये हाल क्यों हुआ?

24 नवंबर से चार दिसंबर के बीच जयपुर में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का आयोजन किया गया. लेकिन ये आयोजन खिलाड़ियों के रिकॉर्ड्स नहीं बल्कि ऐसी चीजों को लेकर चर्चा में रहा जो किसी भी खेल इवेंट के लिए शर्मनाक है.

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खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में परेशान हुए खिलाड़ी. (Photo-PTI)

भारत 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी करने वाला है. 2036 ओलंपिक की मेजबानी का मजबूत दावेदार भी माना जा रहा है. लेकिन क्या वाकई भारत खेल के सबसे बड़े पर्व की मेजबानी के लिए तैयार है? यह सवाल पूछने का एक बड़ा कारण है. कारण यह कि जब राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे टूर्नामेंट्स में ही खिलाड़ियों को आम सुविधाओं के लिए परेशानी उठानी पड़ रही है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर की मेजबानी की दावेदारी कैसे मजबूत होगी? 

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नेशनल टूर्नामेंट्स की हालत कैसी है यह हाल ही में राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित ‘खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स’ के दौरान पता चला. खेलो इंडिया के यूनिवर्सिटी स्तर के इस सबसे बड़े टूर्नामेंट में पार्टिसिपेशन बेहद निराशाजनक रहा. ज्यादातर खिलाड़ियों ने इससे दूरी बनाकर रखी. और जो खिलाड़ी इवेंट में हिस्सा लेने आए भी, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

खेलो इंडिया गेम्स की शुरुआत 2018 से हुई. इसका लक्ष्य था उभरती हुई प्रतिभाओं को मौका देना. हर साल इसके लिए एक बड़ा बजट आवंटित होता है. हालांकि खिलाड़ियों का मानना है कि जैसे-जैसे साल बीत रहे हैं इन खेलों का स्तर गिर रहा है, खास तौर पर यूनिवर्सिटी गेम्स का. इस साल जयपुर में इन गेम्स की शुरुआत 24 नवंबर से हुई. देश भर से कई यूनिवर्सिटी के खिलाड़ी यहां पहुंचे. टूर्नामेंट के लिए शानदार ओपनिंग सेरेमनी का आयोजन किया गया, लेकिन स्टेडियम खाली ही नजर आए.

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अच्छे खाने को तरसे खिलाड़ी

इसके बाद जब टूर्नामेंट शुरू हुआ तो खिलाड़ियों को अलग-अलग संघर्षों से दो-चार होने पड़ा. उनको यहां खाने से लेकर ट्रैवल करने तक के लिए परेशानी उठानी पड़ी. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें खिलाड़ी ऑटो में बैठकर स्टेडियम पहुंचे. कुछ खिलाड़ियों ने लल्लनटॉप को बताया कि होटल से स्टेडियम जाने के लिए गाड़ियां केवल एक तय समय के लिए खड़ी की गई थीं. इस कारण उन्हें या तो अपने इवेंट्स से घंटो पहले स्टेडियम पहुंचना पड़ा या अपने खर्चे पर जाना पड़ा. 

खिलाड़ी खेलो इंडिया के दौरान मिल रहे खाने की गुणवत्ता से भी निराश थे. टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे रुचित ने लल्लनटॉप को बताया,

हमारे रहने का इंतजाम किसी और होटल में किया गया और खाने का इंतजाम किसी और होटल में. हमें हर बार खाने के लिए वहां जाना पड़ता था. खाने की क्वालिटी भी बहुत बेकार थी. वह खाना हमने बहुत मुश्किल से खाया. इससे पहले खेलो इंडिया में इतनी खराब क्वालिटी का खाना कभी नहीं मिला.

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गिरती जा रही किट की क्वालिटी

इन खेलों में खिलाड़ियों को खेलो इंडिया की ओर से किट भी दी जाती है. यह किट उन खिलाड़ियों के लिए बहुत अहम होती है जो आर्थिक तौर पर कमजोर होते हैं. हालांकि इस बार किट की क्वालिटी बहुत गिरी हुई थी. ब्रांड का नाम होने के बावजूद किट की गुणवत्ता पर सवाल उठे. खिलाड़ियों ने इसकी शिकायत भी की. रुचित ने किट को लेकर कहा,

मैं 2020 से खेलो इंडिया में खेल रहा हूं. इतनी खराब किट कभी नहीं मिली. 2020 में एडिडास ब्रांड एंबेसडर था, तब किट बहुत अच्छी थी. इसके बाद टायका कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट मिला. तब भी किट की क्वालिटी अच्छी थी. कुछ समय तक ऐसा ही रहा. 2023 में दूसरी कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया और किट की क्वालिटी गिर गई. अब इन किट को देखकर ऐसा लगता ही नहीं कि यह किसी ब्रांड की है. इससे खिलाड़ियों को परेशानी होती है.

करोड़ो का बजट तो सुविधा क्यों नहीं?

हर साल खेल का बजट बढ़ रहा है, लेकिन खेल का स्तर गिर रहा है. इस साल भी सरकार ने खेल बजट के लिए 3794 करोड़ रुपये आवंटित किए. इसमें खेलो इंडिया का बजट बढ़ाया गया. 2024-25 में खेलो इंडिया का बजट 800 करोड था, जो 2025-2026 के लिए बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपये कर दिया गया. इसके बावजूद आयोजन के स्तर में आई गिरावट से खिलाड़ी हैरान और परेशान हैं.

जब आयोजकों से खिलाड़ियों की परेशानियों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने केवल माफी मांगकर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की. पत्रकारों से बात करते हुए राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल के चेयरमैन नीरज कुमार ने कहा,

कहीं पर भी कोई अव्यवस्था हुई है उसके लिए मैं माफी मांगता हूं. हमने जो व्यवस्था की उसमें 98 प्रतिशत में कहीं कोई परेशानी नहीं आई है. एक-दो जगह ऐसी चीजें हुई हैं. हम आने वाले समय में इसे ठीक करेंगे और परेशानी के लिए माफी चाहता हूं.

नीरज कुमार ने यहां बाकी चीजों के लिए तो माफी मांग ली, लेकिन पार्टिसिपेशन को लेकर सबकुछ स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) और ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी (AIU) पर डाल दिया.

क्यों हिस्सा नहीं ले रहे खिलाड़ी?

इन गेम्स में खिलाड़ियों का कम पार्टिसिपेशन सुर्खियों में रहा है. कुछ ऐसे इवेंट्स थे जिनके फाइनल में केवल 1 या दो ही खिलाड़ी शामिल थे. 400 मीटर में मनीषा और 400 मीटर हर्डल्स में रुचित मोरी रेस में अकेले दौड़े. वहीं पुरुषों के 400 मीटर में दो, 5000 मीटर में दो, 100 मीटर में तीन और 200 मीटर के पुरुष और महिला दोनों ही इवेंट में तीन ही खिलाड़ी फाइनल में दौड़े. 

यह संख्या सवाल उठाती है कि आखिर इतने बड़े स्तर के टूर्नामेंट में, खासतौर पर वह टूर्नामेंट जिससे खिलाड़ियों को मेडल जीतने पर सरकारी नौकरी मिलने में आसानी होती है, वहां खिलाड़ी हिस्सा क्यों नहीं लेना चाहते? 400 मीटर में अकेले दौड़े रुचित मोरी ने इसके मुख्य रूप से तीन कारण बताए हैं.

सबसे पहले कारण पार्टिसिपेशन चुनने का तरीका. खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के इवेंट्स में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के केवल टॉप 8 खिलाड़ियों को बुलाया जाता है. AIU गेम्स के विजेताओं को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान है. नियम यह कहता है कि जिन खिलाड़ियों को नौकरी मिल गई है वह फिर किसी भी यूनिवर्सिटी स्तर के गेम्स में हिस्सा नहीं ले सकते. ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स पिछले साल दिसंबर में हुए थे, जबकि खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स दिसंबर 2025 में हो रहे हैं. एक साल में टॉप 8 में से कई खिलाड़ियों की सरकारी नौकरी लग चुकी है. इसी कारण कुछ खिलाड़ी हिस्सा लेने नहीं आ पाते हैं.  

एक और बड़ा कारण है यूनिवर्सिटी गेम्स में नाडा यानी नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी के अधिकारियों की मौजूदगी. इन खेलों में खिलाड़ियों का डोपिंग टेस्ट होता है और पकड़े जाने पर बैन तय होता है. साथ ही पिछले टूर्नामेंट्स के मेडल भी ले लिए जाते हैं. डोपिंग टेस्ट में फेल होने पर खिलाड़ियों का सरकारी नौकरी पाने का सपना भी हमेशा के लिए टूट जाता है. ऐसे में जो खिलाड़ी डोपिंग के चंगुल में होते हैं वह यहां खुद को टेस्ट से बचाने की कोशिश करते हैं. यह बताता है कि भारत में डोपिंग की जड़ें कितनी गहरी हैं और इस पर कितना काम करने की जरूरत है.

रुचित ने बताया,

इन गेम्स में नाडा के कई अधिकारी होते हैं. यहां मेडलिस्ट्स के साथ-साथ कई लोगों का टेस्ट होता हैं, जबकि ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में नाडा नहीं होता. इसी वजह से जो खिलाड़ी डोपिंग कर रहे होते हैं वह इन गेम्स में हिस्सा नहीं लेते हैं.

टूर्नामेंट की टाइमिंग पर सवाल

खिलाड़ियों के कम पार्टिसिपेशन का एक और बड़ा कारण है खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स की टाइमिंग. यह खेल दिसंबर में आयोजित होते हैं. आमतौर पर यह समय खिलाड़ियों का ऑफ सीजन होता है. यानी खिलाड़ी इस दौरान टूर्नामेंट्स में हिस्सा लेने की जगह खुद को तैयार करने में समय देते हैं. वह शरीर पर जरूरत से ज्यादा लोड देते हैं ताकि सीजन शुरू होने तक तैयार हो सकें. खिलाड़ी ऑफ सीजन के बीच टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से बचते हैं क्योंकि इसमें इंजरी का बहुत ज्यादा खतरा होता है. 

इन वजहों से ही खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में कम खिलाड़ी दिखे. इन गेम्स पर जितना पैसा खर्च किया जाता है, उसके मद्देनजर ये जरूरी है कि यहां खिलाड़ियों को यूनिवर्सिटी स्तर का कॉम्पिटिशन मिले. उन्हें यहां आने का कम से कम फायदा तो हो. जिन इवेंट्स में खिलाड़ी अकेले दौड़े उनमें उन्हें कोई मेडल या सर्टिफिकेट भी नहीं मिला. 

जब रुचित से पूछा गया कि वह अकेले दौड़ने के लिए तैयार क्यों हुए तो उन्होंने बताया,

मैं वॉर्म अप कर चुका था. मेरे माता-पिता भी स्टैंड्स में मुझे देखने आए थे. इसलिए मैंने कहा कि चाहे मुझे मेडल न मिले, लेकिन मैं यहां दौड़ने आया हूं तो दौड़ूंगा.

रुचित अकेले दौड़े और उन्हें इसके लिए कुछ नहीं मिला. लेकिन उनके अकेले दौड़ते हुए तस्वीरों ने कई सवाल उठा दिए. सवाल यह कि जिन गेम्स पर खेल बजट का सबसे बड़ा हिस्सा खर्च होता है वहां का ही स्तर गिर गया है तो खिलाड़ी और कहां से उम्मीद लगाएं? टूर्नामेंट्स के आयोजन की प्लानिंग ही अगर सही नहीं है तो परिणाम और स्टार खिलाड़ी कैसे तैयार होंगे? और सबसे अहम सवाल, इस तरह की स्थिति में क्या भारत वाकई 2036 ओलंपिक की मेजबानी के लिए तैयार है?

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