विराट कोहली और टीम मैनेजमेंट का फैसला सही है या नहीं. इसका पता तो मैच के बाद ही चलेगा. लेकिन हम आपको टीम में शामिल किए गए और उनकी जगह इस्तेमाल किए जा सकने वाले खिलाड़ियों के आंकड़े दिखा और समझा देते हैं.
# सबसे पहले बात ओपनिंग की:
भारतीय टीम ने पहले टेस्ट के लिए मयंक अग्रवाल और पृथ्वी शॉ को चुना है. मयंक को लेकर कोई शक नहीं था. क्योंकि मयंक ने साल 2018 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ डेब्यू किया था, और तब से वो बेहतरीन फॉर्म में हैं. मयंक ने अब तक 11 टेस्ट मैचों में 57 की औसत से 974 रन बनाए हैं.
पृथ्वी को लेकर लगातार सवाल उठ रहे थे. दिग्गज सुनील गावस्कर से एलन बॉर्डर तक का मानना था कि ओपनिंग में शुभमन गिल को आज़माना चाहिए. लेकिन भारत ने शुभमन की जगह पृथ्वी पर भरोसा दिखाया.
पृथ्वी ने साल 2018 में भारत के लिए डेब्यू किया था. तब वो सचिन के बाद सबसे कम उम्र में डेब्यू करते हुए शतक बनाने वाले बल्लेबाज़ बने थे. वेस्टइंडीज़ के खिलाफ डेब्यू सीरीज़ में उन्होंने एक शतक, एक अर्धशतक और नॉट-आउट 33 रनों की पारी खेली. लेकिन इसके बाद डोपिंग के आरोप में उन पर एक साल का बैन लग गया. एक साल बाद वापसी करते हुए साल 2020 की शुरुआत में ही उन्होंने न्यूजीलैंड में मुकाबले खेले.

पृथ्वी शॉ और मयंक (2)
भारत के लिए वैलिंग्टन और क्राइस्टचर्च में पृथ्वी सिर्फ एक ही अर्धशतक बना पाए थे. उसके बाद आईपीएल में भी उनका बल्ला खामोश था. और तो और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ प्रेक्टिस मैच में भी वो बड़ी पारी नहीं खेल पाए.
मयंक और पृथ्वी की जोड़ी ने अब तक सिर्फ दो मैचों में ही भारत के लिए ओपन किया है. जिसमें उनका बेस्ट 30 रन का रहा है.
विकल्प क्या हैं: मयंक के साथ पृथ्वी के अलावा शुभमन गिल और केएल राहुल को आज़माया जा सकता था. ऑस्ट्रेलिया में प्रेक्टिस मैच में शानदार बैटिंग और आईपीएल फॉर्म भी शुभमन के साथ है. शुभमन को अभी टेस्ट में अपना डेब्यू करना है. वहीं दूसरा विकल्प थे, केएल राहुल. पृथ्वी की जगह टीम केएल को भी टीम में मौका दे सकती थी.
केएल कमाल की फॉर्म में हैं. और रोहित शर्मा के ना होने पर केएल टीम के ओपनर बन सकते थे. हालांकि केएल का रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया में बहुत अच्छा नहीं है. उन्होंने यहां पांच मैचों में सिर्फ 187 रन ही बनाए हैं.
# ओपनिंग के बाद नज़र विकेटकीपर्स पर:
भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर दो स्पेशलिस्ट विकेटकीपर्स के साथ पहुंची है. नंबर एक ऋद्धिमन साहा और नंबर दो ऋषभ पंत. एमएस धोनी के जाने के बाद दस्ताने साहा के हाथों में आए. लेकिन साहा का चोटों से भरा करियर उनकी और टीम इंडिया की परेशानी बना हुआ है. साहा के बाद पंत को भी कई मौकों पर आज़माया गया. लेकिन हर बार ये ही कहा जाता है कि साहा विकेट के पीछे भारतीय टीम के बेस्ट विकेटकीपर हैं. इसकी वजह से उनका प्लेइंग इलेवन में चुनाव भी किया जाता है.
लेकिन 2018-19 की ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ के दौरान साहा टीम का हिस्सा नहीं थे. ऐसे में पंत को प्लेइंग इलेवन में शामिल किया गया. ऋषभ पंत को उस सीरीज़ में पूरे मौके मिले. जिसमें उन्होंने 58 की बेहतरीन औसत से 350 रन बनाए. लेकिन इसके बाद उनका प्रदर्शन लगातार गिरता ही रहा.

विकेटकीपर बैट्समैन ऋषभ पंत (PTI)
एशिया के बाहर पंत को साहा से ऊपर मौके दिए जाते रहे हैं. इसके पीछे ये तर्क दिया जाता है कि एशिया में स्पिन गेंदबाज़ी पर साहा बेहतर विकेटकीपर हैं. ऐसे में विदेशों में पंत की बल्लेबाज़ी ज़्यादा काम आ सकती है. हालांकि विदेशी पिचों पर तेज़ गेंदबाज़ी पर भी बेहतरीन स्किल के विकेटकीपर की ज़रूरत पड़ती है.
पिछले तीन विदेशी दौरों- इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में पंत ही भारत के विकेटकीपर रहे हैं. न्यूज़ीलैंड के खिलाफ आखिरी सीरीज़ के लिए तो साहा पूरी तरह से फिट थे लेकिन फिर भी ऋषभ पंत को ही आज़माया गया.
लेकिन ऋषभ पंत की खराब फॉर्म की वजह से अब मैनेजमेंट का उन पर से विश्वास उठ रहा है. पंत ने हाल में प्रेक्टिस मैच में बेहतरीन शतक बनाया. लेकिन फिर भी टीम मैनेजमेंट ने टेस्ट के लिए साहा को ही पहली पसंद बनाए रखा.
हालांकि साहा के प्रदर्शन पर नज़र मारें तो उनका प्रदर्शन ऑस्ट्रेलिया में बहुत खास नहीं रहा है. ऑस्ट्रेलिया में साहा ने कुल तीन टेस्ट खेले हैं, जिसमें उन्होंने 18.5 की औसत से महज़ 111 रन बनाए हैं. अब देखना होगा कि वो इस सीरीज़ में क्या कर पाते हैं.
# बात स्पिन डिपार्टमेंट की:
एशिया की पिचों को हमेशा स्पिन फ्रेंडली माना जाता रहा है. जहां पर टीम इंडिया के स्पिनर रविचन्द्रन अश्विन का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है. लेकिन विदेशों में कुछ तो अश्विन का प्रदर्शन और कुछ मैनेजमेंट का भरोसा उन पर बनता नहीं दिखता.
साल 2018-19 ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ को ही उठा लें तो अश्विन को उस सीरीज़ के पहले मैच में इस्तेमाल किया गया. अश्विन ने छह विकेट भी निकाले. लेकिन उसके बाद बाकी बचे एक भी मैच में उन्हें मौका नहीं दिया गया.
नतीजा ये रहा कि वो पूरी सीरीज़ में विकेट के मामले में रविन्द्र जडेजा से भी पीछे रहे. जबकि उस सीरीज़ में जडेजा ने दो मैचों में कुल सात विकेट चटकाए. ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि 2018-19 में विकेट पूरी तरह से पेसर्स के लिए मददगार थी. क्योंकि दूसरी ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर नैथन लायन 21 विकेटों के साथ सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले स्पिनर थे.
पहले टेस्ट में अश्विन को इसलिए भी प्लेइंग इलेवन में जगह मिली है क्योंकि रविन्द्र जडेजा पूरी तरह से फिट नहीं हैं, और ऑस्ट्रेलियंस स्पिन को ध्यान में रखते हुए भी विकेट तैयार कर सकते हैं. अब आगे के मैचों में टीम मैनेजमेंट उन पर कितना भरोसा दिखाती है, ये भी देखना होगा.
# पेस अटैक है कमाल, बल्लेबाज़ी में है बेस्ट संयोजन:
बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी में भारतीय टीम बेहतरीन संयोजन के साथ उतर रही है. टीम में विराट कोहली, अजिंक्ये रहाणे, चेतेश्वर पुजारा मौजूद हैं. वही गेंदबाज़ी में बुमराह और शमी भारत का बेस्ट पेस अटैक हैं. बुमराह पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे पर 21 विकेटों के साथ सबसे सफल गेंदबाज़ थे. वहीं शमी भी 16 विकेटों के साथ ज़्यादा पीछे नहीं थे.
भारतीय टीम ने पिछली सीरीज़ में भी तीन पेसर और एक स्पिन के कॉम्बिनेशन के साथ सफलता हासिल की थी.
# पहले टेस्ट में भारत ने इशांत, बुमराह, शमी के साथ अश्विन का इस्तेमाल किया तो उसे जीत मिली. # वहीं जब दूसरे टेस्ट में हम बिना स्पिनर के गए तो टीम हार गई. # सीरीज़ के तीसरे मैच में टीम फिर से तीन पेसर और एक स्पिन वाले प्लान के साथ उतरी तो जीत के साथ सीरीज़ भी जीत गई. # जबकि आखिरी टेस्ट में हमने दो स्पिनर्स खिलाए. तो मैच ड्रॉ पर खत्म हुआ.
अब देखना होगा कि विराट कोहली एंड कंपनी का ये संयोजन कितना सटीक बैठता है.