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सीता की सुंदरता सुंदर को भी सुंदर करने वाली है

आज एक कविता रोज़ में तुलसीदास.

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फोटो - thelallantop
प्रिय पाठको, आज एक कविता रोज़ में बातें तुलसीदास की. एक कवि के रूप में तुलसी और उनकी रचना ‘रामचरितमानस’ युगों से भारतीय लोक में कुछ इस कदर प्रतिष्ठित हैं कि इसके बगैर इस लोक की कल्पना ही मुमकिन नहीं है. यह एक ऐसा युग है जिसका कभी अंत नहीं हुआ. तुलसीदास के जन्म आदि को लेकर कई मतभेद हैं. हमें इन मतभेदों को भूल कर केवल इस तथ्य का ध्यान रखना चाहिए कि तुलसी ने एक लोक-भाषा यानी अवधी में एक महाकाव्य यानी ‘रामचरितमानस’ की रचना की, जो अब तक अपने मंगलकारी प्रभावों में हमारे सामने हैं. किस्से महाकवियों के आगे-पीछे मंडराते ही रहते हैं, तुलसी भी इससे अछूते नहीं हैं. कहते हैं कि होने वाली पत्नी की फटकार ने उनकी लौ राम से लगा दी और नतीजा : ‘रामचरितमानस’. ‘रामचरितमानस’ के अलावा ‘विनय पत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘गीतावली’ को भी तुलसी की प्रमुख रचनाओं में माना जाता है. मानने वाले ‘हनुमान चालीसा’ को भी तुलसीदास की ही रचना मानते हैं.

अब पढ़िए ‘रामचरितमानस’ के बालकांड से एक अंश :

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कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयं गुनि॥ मानहुं मदन दुंदुभी दीन्ही। मनसा बिस्व बिजय कहं कीन्ही॥ अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥ भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुं सकुचि निमि तजे दिगंचल॥ देखि सीय सोभा सुखु पावा। हृदयं सराहत बचनु न आवा॥ जनु बिरंचि सब निज निपुनाई। बिरचि बिस्व कहं प्रगटि देखाई॥ सुंदरता कहुं सुंदर करई। छबिगृहं दीपसिखा जनु बरई॥ सब उपमा कबि रहे जुठारी। केहिं पट तरौं बिदेहकुमारी॥ अब देखें इसका अर्थ : यह वर्णन फूलों की वाटिका में राम के द्वारा सीता को पहली बार देखने का है. यहां राम लक्ष्मण से कह रहे हैं कि हाथ में बजते कंगनों की आवाज सुन कर यों लग रहा है जैसे कामदेव ने इस संसार को जीतने के लिए डंके पर चोट मारी हो. सीता का चांद-सा सुंदर मुखड़ा देखने के लिए राम की आंखें चकोर हो गई हैं. आंखें जहां हैं, वहीं ठहर गई हैं. सीता के पिता जनक ने इस प्रसंग को देखना उचित नहीं समझा और सकुचाकर इस सीन से अपनी आंखें अलग कर लीं. सीता की सुंदरता से राम को बहुत सुख हो रहा है. उनके मन में लड्डू फूट रहे हैं, लेकिन मुंह से वह कुछ नहीं कह रहे हैं. यह सुंदरता ऐसी है कि जैसे दुनिया बनाने वाले ने अपनी सारी काबिलियत सीता को बनाने में ही खर्च कर दी हो. सीता की सुंदरता सुंदर को भी सुंदर करने वाली है. सुंदरता के घर में सीता जलते हुए दीपक की लौ की तरह हैं. अब तलक इस घर में अंधेरा था, सीता के रूप ने इसे रोशन कर दिया. आखिर में तुलसीदास कह रहे हैं कि सारी उपमाओं को तो कवियों ने जूठा कर दिया है, मैं सीता के रूप की तुलना किससे करूं? तो यह थे तुलसीदास. मुकेश की आवाज में 'बालकांड' यहां सुन भी सकते हैं : https://www.youtube.com/watch?v=h8jIWpDVIDU *** इनके बारे में भी पढ़ें : मीरा सूरदास जायसी

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