
शीघ्र प्रकाश्य
गुलज़ार! वो जो किसी की कमर के बल पर नदी को मोड़ देता है. वो जो किसी की हंसी सुनवा के फ़सलों को पकवा देता है. वो जो गोरा रंग देकर काला हो जाना चाहता है. वो जिसका दिल अब भी बच्चा है. वो जिसके ख्वाब कमीने हैं. वो जो ठहरा रहता है और ज़मीन चलने लगती है. वो जिसकी आंखों को वीज़ा नहीं लगता. वो जो सांसों में किमाम की खुशबू लिए घूमता है. वो जिसका आना गर्मियों की लू हो जाता है. वो जो दिन निचोड़ रात की मटकी खोल लेता है. वो जो आंखों में महके हुए राज़ खोज लेता है. वो जो बिस्मिल है. वो जो बहना चाहता है. वो जो हल्के-हल्के बोलना चाहता है. वो जिसने कभी चाकू की नोक पर कलेजा रख दिया था. वो जो है तो सब कोरमा, नहीं हो तो सत्तू भी नहीं. वो जिसे अब कोई इंतज़ार नहीं. आज जन्मदिन है. गुलज़ार के शीघ्र प्रकाश्य संग्रह ‘कुछ तो कहिये...’ से चार रचनाएं हम आपके लिए लाए हैं. शुक्रिया वाणी प्रकाशन का. जिनके सौजन्य से ये रचनाएं हमें मिल सकीं.
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कोई अटका हुआ है पल शायद वक़्त में पड़ गया है बल शायद