भारतीय एथलीट प्रियंका गोस्वामी ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए महिला 10 हजार मीटर रेस वॉक यानी पैदल चाल में सिल्वर मेडल जीत इतिहास रच दिया है. इसके साथ ही प्रियंका अपना पर्सनल बेस्ट करते हुए देश को 10 हजार मीटर रेस वॉक में मेडल जिताने वाली पहली महिला एथलीट भी बन गयी हैं. प्रियंका ने 43:38.82 सेकंड में रेस पूरी की. प्रियंका रेस की शुरुआत में आगे चल रही थीं फिर तीसरे स्थान पर पहुंच गयीं. लेकिन आखिर के दो किलोमीटर में उन्होंने शानदार वापसी करते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया.
CWG 2022: कैसे जिमनास्टिक्स करने वाली लड़की एथलेटिक्स में जीत लायी ऐतिहासिक मेडल?
प्रियंका गोस्वामी देश को 10 हजार मीटर रेस वॉक में मेडल जीताने वाली पहली महिला एथलीट बन गयी हैं.

ऑस्ट्रेलिया की जेमिमा मोंटाग ने 42:34.30 सेकंड में रेस पूरी कर गोल्ड मेडल जीता. वहीं केन्या की एमिली वामुस्यी नगी ने ब्रॉन्ज मेडल जीता. बता दें प्रियंका गोस्वामी ने टोक्यो ओलिंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था लेकिन वहां वो 17वें स्थान पर रहीं. लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में इस खिलाड़ी ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए इतिहास रच दिया.
मुज़फ्फरनगर की इस एथलीट ने पहली बार किसी बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मेडल जीता है. इस इवेंट में एक अन्य भारतीय एथलिट भावना जाट 47:14.13 सेकंड के पर्सनल बेस्ट के साथ आठवें और अंतिम स्थान पर रहीं. बता दें रेस वॉक में पहला मेडल हरमिंदर सिंह ने साल 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में 20 किमी रेस वॉक इवेंट में जीता था. उन्होंने इस इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया था.
CWG 2022 में ऐतिहासिक सिल्वर मेडल जीतने वाली 26 साल की प्रियंका की रेस वॉक की जर्नी की बात करें तो ये खेल उनका पहला स्पोर्ट था ही नहीं. उन्हें 2012 के ओलंपिक्स के पहले इस इवेंट के बारे में पता भी नहीं था. ‘द ब्रिज’ के अभिजीत नायर को दिए इंटरव्यू में प्रियंका ने बताया,
‘मैं स्कूल में काफी एक्टिव रहती थी. और हर प्रकार की एक्टिविटीज में शामिल होती थी. इस दौरान मेरे एक टीचर ने मुझे खेलों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया और मुझे मेरे शहर मेरठ के स्टेडियम में जिमनास्टिक से परिचित करवाया. मैंने उस स्टेडियम में कुछ समय तक जिमनास्टिक किया और फिर मैं लखनऊ के केडी सिंह स्टेडियम के गवर्नमेंट हॉस्टल में चली गयी.’
उन्होंने इस इंटरव्यू में आगे बताया कि कैसे उन्होंने जिमनास्टिक्स से एथलेटिक्स का रुख किया,
‘केडी सिंह स्टेडियम में एक फिजिकल ट्रेनिंग के दौरान हमें 800मीटर दौड़ना था. जिसमें मुझे पहला स्थान मिला. और इसी के साथ मैं एथलेटिक्स की ओर प्रभावित होने लगी. भले ही मैं केडी सिंह स्टेडियम में जिमनास्टिक्स के लिए तैयारी के लिए गयी थी. लेकिन मैं वहां सबसे एथलेटिक्स में स्विच कैसे करें पूछती रहती थी. क्यूंकि मुझे कोई एथलेटिक्स में जाने नहीं देना चाहता था.
इसके बाद मैंने हॉस्टल छोड़ दिया क्यूंकि मुझे जिमनास्टिक्स में मजा नहीं आ रहा था. मैंने इसके बाद खेलों से 3-4 साल का ब्रेक लिया. इसके बाद मैंने हिम्मत जुटाकर मेरठ के स्टेडियम में एंट्री ली. जहां मुझे एक एथलेटिक्स कोच मिले जिन्होंने मुझे ट्रैन करना शुरू कर दिया.'
उन्होंने आगे बताया,
‘मैंने डिस्ट्रिक्ट एथलेटिक्स में हिस्सा लिया, जहां विनर को जीतने पर एक बैग मिलता था. इसके चलते मैंने वहां 800 मीटर, 1500 मीटर जैसे कई इवेंट्स में हिस्सा लिया. लेकिन मैं एक में भी जीत नहीं पायी. मैंने जब अपने दोस्तों को जीतने पर बैग मिलते देखा तो मैं दुखी थी. तब कई कोच ने मुझे वॉकिंग में हाथ आज़माने को कहा.
तभी से मैंने रेस वॉकिंग में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. मुझे 2012 ओलंपिक्स के पहले रेस वॉकिंग के बारे में पता तक नहीं था. लेकिन मेरे कोच की मदद और गाइडेंस से मैंने इस खेल में खुद को पारंगत कर लिया. 2020 में हुए नेशनल्स से मुझे ये कॉन्फिडेंस मिला कि मैं बड़े इवेंट्स में इंडिया को इस खेल में रिप्रेजेंट कर सकती हूं.'
उन्होंने इस इंटरव्यू में अपने परिवार से मिले सपोर्ट पर कहा,
‘मेरे परिवार ने मुझे कुछ भी करने से कभी नहीं रोका. मैं भले ही गांव से आती हूं लेकिन मैं बचपन में लड़कों के साथ खेलती थी. और ऐसा करने में मुझे कोई रोक टोक का सामना नहीं करना पड़ा. मेरे चाचा और रिश्तेदारों को भले ही मेरा खेलना खटकता रहा पर मेरे पेरेंट्स ने हमेशा मेरा साथ दिया. मैं खेलों के साथ पढाई में भी अच्छी थी ऐसे में परिवार का सपोर्ट हमेशा बना रहा.’
घर से मिले सपोर्ट के बाद आज प्रियंका भारत की सिल्वर मेडलिस्ट हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने देश को एक मेडल दिया है.
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