रमेशबाबू प्रज्ञानानंद (R Praggnanandhaa) और रमेशबाबू वैशाली (R Vaishali). आजकल अक्सर ही ये नाम आपको सुनने को मिलते होंगे. और हो सकता है कि आपने इन नामों पर कभी उतना ध्यान ना दिया हो. अगर ऐसा है तो अफसोस. बहुत जरूरी नामों को आप मिस कर रहे हैं. क्योंकि इन दो नामों के बारे में आपको जानना ही चाहिए. ये कोई नॉर्मल इंसान नहीं हैं, बल्कि दो ऐसे चेस प्लेयर हैं जिन्होंने देश का झंडा दुनियाभर में बुलंद कर रखा है. इसका सबसे हालिया उदाहरण है नॉर्वे चेस टूर्नामेंट (Norway Chess Tournament). जहां वैशाली महिला वर्ग और प्रज्ञानानंद पुरुष वर्ग की टेबल में टॉप पर हैं.
प्रज्ञानानंद ने 29 मई की देर रात खेले गए मुकाबले में दुनिया के नंबर-1 प्लेयर मैग्नस कार्लसन को पटखनी दी है. प्रज्ञानानंद ने क्लासिकल चेस में पहली बार कार्लसन को हराया है. 5.5 पॉइंट्स के साथ उन्होंने प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में लीडर्स पोजीशन हासिल की है. प्रज्ञानानंद ने कार्लसन के अलावा फैबियानो करुआना और नाकामुरा जैसे दिग्गजों को भी पछाड़ रखा है.
एक ही परिवार से निकले भारत को दो बेहतरीन शतरंज खिलाड़ी, जिन्होंने देश का नाम बुलंद कर रखा है
R Praggnanandhaa और R Vaishali ने Norway Chess Tournament में गदर काट रखा है. दोनों ही प्लेयर्स का चेस की दुनिया में कमाल करने तक का सफर शानदार रहा है.

वहीं प्रज्ञानानंद की बहन आर वैशाली भी महिला वर्ग में टॉप पर हैं. 22 साल की वैशाली ने भारत की नंबर एक महिला खिलाड़ी कोनेरू हंपी को मात दी थी. जबकि अगले मैच में उन्होंने अन्ना मुजीचुक के खिलाफ ड्रॉ खेला. 5.5 अंक के साथ वैशाली टॉप पर हैं. अब ये दोनों प्लेयर्स हैं कौन और वो यहां तक पहुंचे कैसे? सबकुछ विस्तार से जानते हैं.
3 साल की उम्र से खेलने लगे चेसशुरुआत प्रज्ञानानंद से करते हैं. प्रज्ञानानंद का जन्म 10 अगस्त 2005 को चेन्नई में हुआ. महज 3 साल की उम्र में चेन्नई के इस लड़के ने शतरंज खेलना शुरु कर दिया था. चेस बोर्ड क्यों मिला जानते हैं? क्योंकि वो अपनी बहन वैशाली का गेम खराब करते थे. यानी उन्हें परेशान करते थे. वैशाली प्रैक्टिस करती, तो प्राग (घर का नाम) उनका बोर्ड खराब कर देते थे. इसके बाद प्राग को भी तीन साल की उम्र में चेस बोर्ड दे दिया गया. छोटे भाई ने बहन को देखते-देखते शतरंज की बारीकियां सीखीं. चार साल बाद सिर्फ 7 साल की उम्र में उन्होंने वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप जीत ली. उन्हें मास्टर का टाइटल मिला.
10 साल के हुए तो इंटरनेशनल मास्टर बने, 12 साल 10 महीने और 13 दिन की उम्र में ग्रैंडमास्टर. इस उम्र में ये कारनामा करने वाले वो उस समय दूसरे सबसे कम उम्र के शतरंज खिलाड़ी बने थे. उम्र जब 14 साल पहुंची तो Elo Rating System में उनके नंबर 2600 तक पहुंच गए, वो भी उस समय एक रिकॉर्ड था. प्रज्ञानानंद के कोच आरबी रमेश अक्सर एक लाइन कहते हैं, ‘प्राग जैसा बनो.’ लेकिन प्राग जैसा बनना आसान नहीं, वो ऐसा क्यों कहते हैं, ये भी बता देते हैं.
एक इंटरव्यू के दौरान रमेश ने बताया था कि प्राग वीडियो गेम और सोशल मीडिया को समय नहीं देते, क्योंकि उन्होंने शतरंज पर फोकस करने के लिए इन चीजों से दूर रहने का फैसला किया है. प्रज्ञानानंद ने जुलाई 2019 में डेनमार्क में एक्स्ट्राकॉन शतरंज ओपन जीता. जबकि दिसंबर 2019 में 14 साल 3 महीने और 24 दिन की उम्र में वो 2600 की रेटिंग हासिल करने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के प्लेयर बन गए. शतरंज विश्व कप 2023 के दौरान 18 साल की उम्र में प्रज्ञानानंद फाइनल में पहुंचने वाले भारत के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने.
रमेशबाबू वैशाली की बात करें तो उनका जन्म 21 जून 2001 को हुआ. वैशाली ने साल 2012 में अंडर-12 जबकि साल 2015 में अंडर-15 वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया. वैशाली का नाम तब सबसे ज्यादा चर्चा में आया, जब उन्होंने एक प्रदर्शनी मुकाबले में मैग्नस कार्लसन को हरा दिया. साल 2021 में वैशाली को इंटरनेशनल मास्टर का टाइटल मिला. जबकि इस साल मई में वो आधिकारिक तौर पर भारत की तीसरी महिला ग्रैंडमास्टर बन गईं. उनसे पहले द्रोणावल्ली हरिका और कोनेरू हंपी ने ये उपलब्धि हासिल की थी.
अब जिस तरह से दोनों भाई बहन कमाल कर रहे हैं, आने वाले समय अगर ये प्रज्ञानानंद और वैशाली दुनिया के सबसे बेहतरीन चेस प्लेयर्स बन जाते हैं तो हमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए.
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