फर्टिलाइज़ नहीं होने पर एग यूटरस की लाइनिंग में डिसॉल्व हो जाता है. और उसके 12-14 दिन बाद ये लाइनिंग झड़कर वजाइना के रास्ते बाहर आती है. और औरतों को पीरियड्स होते हैं.
महिलाओं का रीप्रोडक्टिव सिस्टम. फोटो- Designed by freepikएग फ्रीज़िंग में ओव्युलेशन पीरियड के दौरान अंडे को शरीर से निकालकर फ्रीज़ कर दिया जाता है. ये अंडा कितने भी सालों तक ऐसे ही रखा जा सकता है. इसकी क्वालिटी वैसी की वैसी बनी रहती है. और बाद के सालों में जब औरत मां बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो तब वो इस अंडे की मदद से मां बन सकती है.
ये कुछ-कुछ बैंक के लॉकर में सोना रखने जैसा है. लॉकर में सोने के सुरक्षित रहने की संभावना कहीं ज्यादा होती है. तो उसे हम वहां रखते हैं और ज़रूरत पड़ने पर सोना लॉकर से निकालकर हम पहन लेते हैं. इस लॉकर के लिए हम हर महीने या सालाना तौर पर कुछ किराया देते हैं.
एग फ्रीज़िंग को मेडिकल टर्म्स में ऊसाइट क्रायोप्रिज़र्वेशन कहते हैं. इसे लेकर ज्यादा जानकारी के लिए हमने बात की डॉक्टर प्रियंका से. वो दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में IVF डिपार्टमेंट में प्रैक्टिस करती हैं. एग फ्रीज़िंग से जुड़े हमारे सवालों के जवाब उन्होंने दिए. क्यों करवाते हैं एग फ्रीज़िंग? तीन सबसे कॉमन वजहें हैं जिनकी वजह से लोग एग फ्रीज़ करवाते हैं.
1- अगर किसी महिला या लड़की को कैंसर डिटेक्ट हुआ है. कैंसर के इलाज यानी कीमोथैरेपी और रेडिएशन महिला की ओवरीज़ की सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं. कैंसर के इलाज के बाद कई पेशेंट्स में ओवेरियन फेलियर की शिकायत आती है. ऐसे में कैंसर से जूझ रही महिलाएं ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले अपने एग्स फ्रीज़ करवा लेती हैं. ताकि कैंसर से ठीक होने के बाद जब वो मां बनना चाहें तो उन्हें कोई परेशानी न हो.
कैंसर पेशेंट महिलाएं या लड़कियां ट्रीटमेंट शुरू होने से पहले अपने एग फ्रीज़ करवा लेती हैं. क्योंकि कीमोथैरेपी और रेडिएशन थैरेपी का ओवरीज़ की हेल्थत पर बुरा असर पड़ता है. फोटो- Pixabay2- ओवरीज़ में उम्र के साथ ओव्युलेशन के दौरान क्रोमोज़ोमल एनामलीज़ बढ़ती है. ऐसे में 35-40 की उम्र के बाद कंसीव करने में दिक्कत आती है. कंसीव कर भी लें तो मिसकैरिएज का खतरा ज्यादा रहता है. इसी वजह से वो औरतें जो बच्चा करना चाहती हैं, लेकिन उनके पार्टनर नहीं हैं, या वो औरतें जो बाद में बच्चा करने के इच्छुक हैं वो अपने एग्स फ्रीज़ करवाती हैं.
3- जो महिलाएं IVF ट्रीटमेंट करवा रही होती हैं, महीने के साइकल के हिसाब से जिस दिन उनका एग और उनके पार्टनर का स्पर्म लेकर फर्टिलाइज़ करना होता है, अगर उस दिन उनके पार्टनर सैम्पल नहीं दे पाए, तो उस केस में महिला का एग निकालकर फ्रीज़ कर लिया जाता है. ताकि जब उनके पार्टनर सैम्पल दें तब फर्टिलाइज़ करके एम्ब्रयो (भ्रूण) बनाया जा सके. उम्र का असर ओवरीज़ पर पड़ता है तो यूटरस पर भी तो पड़ता होगा? डॉक्टर प्रियंका बताती हैं कि एक लड़की की ओवरीज़ में कितने एग्स बनेंगे ये उसके जन्म से पहले ही डिसाइड हो जाता है. अविकसित अंडों को ऊसाइट्स कहते हैं. गर्भ के अंदर शुरुआती 20 हफ्तों में 60 से 70 लाख ऊसाइट्स फीमेल भ्रूण के अंदर होते हैं. जन्म तक आते-आते ये घटकर 10-12 लाख तक बचते हैं. प्यूबर्टी आते-आते तीन से चार लाख ऊसाइट्स ही लड़की की ओवरीज़ में बचते हैं. पूरी मेंस्ट्रुअल लाइफ में इनमें से करीब 400-500 अंडे इस्तेमाल होते हैं. कुछ ऊसाइट्स उम्र के साथ नष्ट हो जाते हैं. इस वजह से उम्र बढ़ने के साथ अंडों की संख्या और क्वालिटी में गिरावट आती है. इसे रीजनरेट नहीं किया जा सकता है. इस पर रिसर्च चल रही है, पर अभी तक ये संभव नहीं हो पाया है.
एक औरत के शरीर में कितने अंडे बनेंगे ये उसके जन्म से पहले ही तय हो जाता है. एग्स को रीजनरेट नहीं किया जा सकता. फोटो- Pixabayवहीं, यूटरस यानी गर्भाशय की बात करें तो हर मेंस्ट्रुअल साइकल के साथ हमारे यूटरस की लाइनिंग यानी एंडोमीट्रियम रीजनरेट होता है. मीनोपॉज़ के बाद भी IVF से प्रेग्नेंसी के लिए इंजेक्शन वगैरह की मदद से यूटरस की लाइनिंग को रीजनरेट करके उसे ऐसा बनाया जा सकता है कि उसमें एक भ्रूण को नौ महीने रखा जा सके. कैसे करते हैं Egg Freezing? इसका प्रोसेस IVF जैसा ही है. इसमें पीरियड के दूसरे दिन से महिला को इंजेक्शंस दिए जाते हैं. ओव्युलेशन इंड्यूस करने के लिए. यानी ओव्यूलेशन बढ़ाने के लिए. इसके बाद अल्ट्रासाउंड से चेक करते हैं कि कितने फॉलिकल बन रहे हैं. 9 से 12 दिन में अंडे रिट्राइव करने के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके बाद पेशेंट को एक और इंजेक्शन दिया जाता है. ये HCG इंजेक्शन होता है, जिससे एग्स निकाले जाने के लिए मैच्योर होते हैं. इस इंजेक्शन के 36 घंटों बाद महिला को एनिस्थीशिया देकर एग्स निकाले जाते हैं.
लेकिन अंडा तो बिना इंजेक्शंस दिए भी नॉर्मल ओव्युलेशन पीरियड में निकाल सकते हैं?
इस पर डॉक्टर प्रियंका कहती हैं कि नॉर्मली हमारी ओवरी से हर महीने एक एग निकलता है. ज़रूरी नहीं कि वो एक एग फर्टिलाइज़ होने लायक हेल्दी हो. इसलिए, फ्रीज़िंग या आईवीएफ के लिए हमें ज्यादा अंडे चाहिए होते हैं, ताकि उनमें से जो हेल्दी अंडे हैं उन्हें सुरक्षित किया जा सके. डॉक्टर प्रियंका ने बताया कि 8 से 15 अंडे आइडियल होते हैं. बहुत ज्यादा एग्स का बनना भी औरत के लिए नुकसानदेह होता है.
अंडे निकालने के बाद उन्हें कल्चर किया जाता है, यानी उनकी जांच की जाती है. और जो हेल्दी अंडे होते हैं उन्हें लैब में फ्रीज़ करके रख दिया जाता है.
जिस तरीके से IVF के लिए एग्स निकालते हैं, एग फ्रीज़िंग के लिए भी वही तरीका इस्तेमाल होता है. फोटो- Pixabayक्या इसमें कोई रिस्क नहीं होता? रिस्क तो होता ही है. कुछ महिलाओं में ओवर स्टिमुलेशन होता है. ऐसे में उनकी ओवरीज़ में ज्यादा ऊसाइट्स मैच्योर हो जाते हैं, ज्यादा अंडे बनते हैं. ये महिला के लिए खतरनाक होता है. इसी वजह से अल्ट्रासाउंड से चेक करते हैं कि फॉलिकल कितने बन रहे हैं. उस हिसाब से ही डिसाइड करते हैं कि ओव्युलेशन इंड्यूस करने वाले इंजेक्शन का डोज़ कम देना है या ज्यादा.
एनिस्थीशिया के असर से महिलाओं को कुछ वक्त तक वॉमिटिंग, नॉज़िया की दिक्कत हो सकती है. इससे रिकवर होकर अपने डेली रूटीन में लौटने में उन्हें हफ्तेभर का टाइम लग कता है. फ्रीज़ किए हुए एग्स का सक्सेस रेट क्या होता है? डॉक्टर प्रियंका बताती हैं कि अगर कोई महिला अपने पार्टनर के साथ एग फ्रीज़ करवाने पहुंचती हैं तो उन्हें एग की जगह भ्रूण फ्रीज़ करवाने की सलाह दी जाती है. ऐसा इसलिए कि भ्रूण से बच्चा पैदा होने का सक्सेस रेट एग्स की तुलना में अधिक है.
वो बताती हैं कि एग्स फ्रीज़ करने के केस में ये रिस्क भी रहता है कि जो अंडा फ्रीज़ हुआ है, वो स्पर्म से मिलने के बाद भी फर्टिलाइज़ नहीं हो पाया तो? हालांकि, ये रिस्क उम्र बढ़ने के बाद कंसीव नहीं कर पाने के रिस्क से कम है. क्योंकि फ्रीज़िंग से पहले एग्स का क्वालिटी चेक होता है और केवल एक एग फ्रीज़ नहीं किया जाता है.
अगर कोई कपल एग फ्रीज़ कराने पहुंचता है तो डॉक्टर उन्हें एम्ब्र्यो फ्रीज़ करवाने की सलाह देते हैं, क्योंकि उसका सक्सेस रेट फ्रोज़ेन एग से ज्यादा है. फोटो- Pixabayअब आते हैं कीमत पर? डॉक्टर प्रियंका बताती हैं एग फ्रीज़ करने का प्रोसेस अभी भी इंडिया में खासा महंगा है. ओव्युलेशन इंड्यूस करने के लिए जो इंजेक्शन दिए जाते हैं उनकी कीमत ही करीब 50 से 60 हज़ार की पड़ती है. इसके बाद एग्स निकालने की प्रोसेस का खर्च अस्पताल-अस्पताल पर निर्भर करता है. इसके अलावा, फ्रोज़ेन एग्स को जिन लैब्स में रखा जाता है वहां भी रेंट देना होता है. जिस लैब में एग रखा होता है वहां साल दर साल मेंबरशिप रिन्यू भी करवानी पड़ती है.
ये तो हो गई ज़रूरत, प्रोसेस, सक्सेस और कीमत की बात. लेकिन एग फ्रीज़िंग को लेकर क्या कोई और चिंता है?
इस पर डॉक्टर प्रियंका बताती हैं कि कई बार ऐसा होता कि किसी कैंसर पेशेंट ने एग फ्रीज़ करवाया. लेकिन वो पेशेंट सर्वाइव नहीं कर पाई, ऐसे में उनके घरवाले एग क्लेम करने के लिए आते ही नहीं.
कैंसर के कई केसेज़ में महिलाओं की काउंसिलिंग भी करनी पड़ती है कि ट्रीटमेंट पूरा होने के बाद अगर उनकी 10-12 साल की लाइफ बचेगी, तो ऐसे में बच्चा करना उनके लिए एडवाइजेबल नहीं होगा, क्योंकि उनके बाद बच्चे की केयर कौन करेगा ये भी एक ईशू होगा. कुछ औरतें फिर भी सिक्योरिटी के लिए एग फ्रीज़ करवाती हैं. लेकिन उसे क्लेम करने नहीं आतीं.
कई केसेज़ में ये भी होता है कि किसी महिला ने बाद में कंसीव करने के मकसद से एग फ्रीज़ करवाया. लेकिन पांच-छह साल में उसने नैचुरली ही कंसीव कर लिया. ऐसे में उसने जो एग फ्रीज़ करवाया था उसकी ज़रूरत नहीं रही.
यानी फ्रीज़ हुए जिन एग्स को क्लेम करने वाला कोई नहीं है, उनका क्या करना है, इसे लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है.
तो ये थी एग फ्रीज़िंग से जुड़ी सारी जानकारी. अगर आप या आपकी कोई परिचित इस बारे में सोच रही हैं तो आप अपने आसपास की किसी फर्टिलिटी क्लिनिक या किसी ऐसे सरकारी अस्पताल में डॉक्टर से कंसल्ट कर सकती हैं जहां IVF की सुविधा उपलब्ध हो.













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