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कोर्ट के इन पांच फैसलों ने बताया- बिना शादी के साथ रहने वालों को मिलते हैं कौन-कौन से अधिकार?

औरत को अगर पता न हो कि वो शादीशुदा आदमी के साथ लिव-इन में है, तो क्या होगा?

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बाएं से दाएं. कपल्स के हाथों की प्रतीकात्मक तस्वीर और सुप्रीम कोर्ट (फोटो: आजतक/पीटीआई)
एक महिला. अपने पार्टनर के साथ लिव-इन में रहती थी. बाद में  पता चला कि उनका पार्टनर पहले से शादीशुदा था. वो महिला को छोड़कर अपनी पत्नी के पास वापस चला गया. महिला ने गुज़ारा भत्ते के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. ट्रायल कोर्ट ने मेल पार्टनर को आदेश दिया कि वो घरेलू हिंसा कानून, 2005 के तहत महिला को गुज़ारा भत्ता दे. मेल पार्टनर ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की. हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. गलत पाए जाने पर वापस करने होंगे पैसे हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि महिला के उस दावे की सबूतों के आधार पर जांच होगी, जिसमें उसने पुरुष के साथ लंबे समय तक लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) में रहने की बात कही है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर महिला का दावा झूठ निकलता है, तो पुरुष की तरफ से अंतरिम भत्ते के तौर पर मिला पैसा उसे ब्याज सहित लौटाना पड़ेगा.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबित महिला ने ट्रायल कोर्ट में अपील की थी कि वो जिस व्यक्ति के साथ लंबे समय तक लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) में रही, वो पहले शादी शुदा था. महिला के अनुसार व्यक्ति ने उससे कहा था कि उसकी पत्नी की मौत होने वाली है, ऐसे में वह अपने लिए लाइफ पार्टनर की तलाश कर रहा है. महिला ने यह भी बताया कि वो पहले ही अपने पति को तलाक दे चुकी थी. उसने व्यक्ति से कहा कि उसे उसके बच्चे का भी ख्याल रखना पड़ेगा. महिला के मुताबिक व्यक्ति राजी हो गया.
दिल्ली हाई कोर्ट.
दिल्ली हाई कोर्ट.

रिपोर्ट के अनुसार महिला ने आगे बताया कि दोनों के बीच शादी करने का एक फॉर्मल एग्रीमेंट भी बना था. साथ ही साथ बच्चे के स्कूल में पिता के तौर पर व्यक्ति का नाम दर्ज कराया गया और उसके बैंक अकाउंट्स के लिए व्यक्ति को नॉमिनी भी बनाया गया. मामले की सुनवाई के दौरान महिला ने ये सभी दस्तावेज दिल्ली हाई कोर्ट में पेश किए. दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.
महिला ने ट्रायल कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में यह भी कहा कि साथ रहने के दौरान दोनों के बीच मतभेद हो गए. ऐसे में वो चाहती है कि व्यक्ति उसे रेंट वाले घर से ना निकाले और साथ ही साथ उसे भत्ता भी दे. दूसरी तरफ व्यक्ति ने कहा कि महिला को यह पहले से ही पता था कि वो शादी शुदा है, ऐसे में उसे घरेलू हिंसा कानून के तहत भत्ता नहीं दिया जा सकता.
दरअसल, लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) को हमारे कानून में किसी विशेष तरीके से परिभाषित नहीं किया है. कानून इसे दो अविवाहित लोगों के बीच नेचर ऑफ मैरिज के तौर पर देखता है. सुप्रीम कोर्ट की वकील देविका के मुताबिक-
"लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों को वो सभी कानूनी सहायता मिलती है, जो बाकी लोगों को मिलती है. लेकिन कानून की नजर में लिव इन रिलेशनशिप की कुछ शर्तें हैं. सबसे पहली कि इस रिलेशनशिप में रहने वाले दोनों लोग अविवाहित होने चाहिए. रिलेशनशिप का टाइम बहुत मैटर करता है. ऐसा नहीं हो सकता है कि कुछ दिन साथ रहे फिर अलग हो गए. फिर कुछ महीने बाद साथ रहने लगे. एक साथ एक ही घर में रहना जरूरी है. समाज में एक कपल के दौर पर पेश आना जरूरी है. एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारियां निभाना जरूरी है. कानून की नजर में लिव इन रिलेशनशिप में रहना एक अधिकार है."
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने लगाया जुर्माना इस साल जनवरी के आखिर में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) से जुड़े मामले में विवादित टिप्पणी की थी. कोर्ट ने एक शादीशुदा महिला और उसके प्रेमी की याचिका को रद्द करते हुए दोनों के संबंधों को अनैतिक करार दिया था. साथ ही साथ कोर्ट ने याचिका डालने वालों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था.
इंडियन लीगल लाइव की रिपोर्ट के मुताबिक, सोनू नाम की महिला और उसके प्रेमी सुखवीर सिंह ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में एक याचिका डाली थी. जिसमें दोनों ने सोनू के पति और उसके ससुरालवालों से सुरक्षा प्रदान करने की अपील की थी. सोनू ने कोर्ट को बताया था कि उसकी शादी गुरजीत सिंह से हुई थी और उसके तीन बच्चे भी हैं. सोनू ने यह भी बताया कि छह महीने पहले उसकी मुलाकात सुखवीर सिंह से हुई और फिर वे दोनों प्यार में पड़ गए.
पंजाब और हरियाणा हापंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी शुदा महिला और उसके प्रेमी के रिश्ते को अनैतिक करार देते हुए दोनों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया. ईकोर्ट.
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी शुदा महिला और उसके प्रेमी के रिश्ते को अनैतिक करार देते हुए दोनों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया.

याचिका में आगे कहा गया कि जब सोनू के पति और ससुरालवालों को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने सोनू को जान से मारने की धमकी दी. जिसके बाद दोनों ने पटियाला के पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर सुरक्षा देने की अपील की. याचिका के मुताबिक पुलिस कमिश्नर ने सुरक्षा देने से मना कर दिया. दूसरी तरफ, सुनवाई के दौरान जस्टिस मनोज बजाज ने कहा कि बिना तलाक के सोनू और सुखवीर की रिलेशनशिप को कानूनी तौर पर वैध नहीं माना जा सकता. सुरक्षा जरूर मिलेगी दूसरी तरफ राजस्थान हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसमें एक व्यक्ति के शादी शुदा होने पर उसकी लिव इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) तो कानूनी तौर पर वैध नहीं मानी गई, लेकिन पुलिस प्रोटेक्शन जरूर दी गई.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान हाई कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि दो लोगों की रिलेशनशिप को अनैतिक और असामाजिक माना जा सकता है, लेकिन इसके बाद भी उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और आजादी का पूरा हक है.
राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि सभी के पास अनुच्छेद के तहत जीवन जीने और आजादी का अधिकार है.
राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि सभी के पास अनुच्छेद के तहत जीवन जीने और आजादी का अधिकार है.

इस टिप्पणी में राजस्थान हाई कोर्ट के जस्टिस सतीश कुमार शर्मा ने राजस्थान पुलिस एक्ट, 2007 के सेक्शन 29 को भी रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि राज्य के नागरिकों की जिंदगी और उनकी आजादी की सुरक्षा करना राज्य के प्रत्येक पुलिस ऑफिसर की ड्यूटी है. दूसरी तरफ राजस्थान हाई कोर्ट से इतर इलाहाबाद हाई कोर्ट कई मौकों पर इस तरह के मामलों में महिला और पुरुष को सुरक्षा देने से मना कर चुका है. घरेलू हिंसा से जुड़ा लिव इन रिलेशनशिप का फैसला लिव इन रिलेशनिप (Live In Relationship) को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले का खासा जिक्र किया जाता है. यह पूरा मामला इंद्रा शर्मा बनाम वीकेवी शर्मा के नाम से जाना जाता है. इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को घरेलू हिंसा कानून, 2005 की परिधि में लाते हुए एक अपवाद तय किया.
लीगल इन्फॉर्मेशन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक इंद्र शर्मा नाम की एक महिला अपनी नौकरी छोड़कर वीकेवी शर्मा के साथ रहने लगीं. दोनों की यह 'लिव इन रिलेशनशिप' 18 साल तक चली. बाद में वीकेवी शर्मा, इंद्रा शर्मा से अलग हो गए. फिर इंद्रा शर्मा की शिकायत पर दो ट्रायल कोर्ट ने वीकेवी शर्मा को घरेलू हिंसा कानून, 2005 का दोषी पाया. वीकेवी शर्मा को आदेश दिया गया कि वे इंद्रा शर्मा को भत्ते के तहत 18 हजार रुपये प्रति महीने दें.
सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट

वीकेवी शर्मा ने इन फैसलों के खिलाफ कर्नाटक हाई कोर्ट में अपील की. उन्होंने कहा कि इंद्रा शर्मा को पता था कि वे शादी शुदा हैं. इस आधार पर उन्हें घरेलू हिंसा कानून के तहत भत्ता देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. कर्नाटक हाई कोर्ट ने वीकेवी शर्मा की दलीलें मान लीं और पुराने फैसलों को रद्द कर दिया. दूसरी तरफ इंद्रा शर्मा ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील डाल दी.
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन इसके साथ ही एक अपवाद भी तय किया. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला किसी शादी शुदा आदमी के साथ यह ना जानते हुए रहती है कि वो आदमी शादी शुदा है, तो दोनों के साथ रहने को 'डोमेस्टिक रिलेशनशिप' माना जाएगा. कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्तिथि में घरेलू हिंसा कानून, 2005 पूरी तरह से लागू होगा और महिला अपने लिए भत्ता मांगने की हकदार होगी. हर तरह की रिलेशनशिप लिव इन नहीं लिव इन रिलेशनशिप के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का साल 2010 का एक फैसला बहुत महत्वपूर्ण है. डी वेलूसामी बनाम डी पतचईअम्मल के मामले में कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप की पूर्व शर्तें तय कीं. कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों को एक कपल की तरह पेश आना चाहिए और उनकी उम्र शादी के लिहाज से कानूनी तौर पर वैध होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर तरह की रिलेशनशिप को लिव इन रिलेशनशिप नहीं माना जाएगा और ऐसे में घरेलू हिंसा कानून, 2005 भी लागू नहीं होगा. उदाहरण के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आदमी किसी महिला को एक नौकर के तौर पर रखता है, महीने में तय रकम देता है और दोनों के बीच सिर्फ सेक्सुअल संबंध होते हैं, तो ऐसे रिश्ते को लिव इन रिलेशनशिप नहीं माना जाएगा.