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शबनम: 12 साल पहले अपने पूरे परिवार का गला काटने वाली लड़की

आज भी गांव में कोई अपनी बेटी का नाम शबनम नहीं रखता

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तस्वीर में बायीं तरफ शबनम, दायीं तरफ सलीम. बीच में वारदात की जगह की तस्वीर.
एक ही परिवार के सात लोगों का कत्ल. वजह- प्यार, लेकिन घरवाले शादी कराने के लिए तैयार नहीं थे. नतीजा? घरवालों की जान चली गई. जांच बैठी. पुलिस ने माथापच्ची की. कातिल पकड़े गए. दोनों को मौत की सज़ा हुई. सुप्रीम कोर्ट तक याचिका गई. खारिज हुई. अब पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) डाली गई है. कोर्ट में वकील आनंद ग्रोवर ने उनकी सजा में रहम की मांग की है.
क्या था मामला?

उत्तर प्रदेश का जिला अमरोहा. हसनपुर कोतवाली क्षेत्र में बावनखेड़ी गांव. यहां पर रहता था शौकत का परिवार. घर में शौकत की बीवी हाशमी, बेटा अनीस, बहू अंजुम, पोता अर्श, दूसरा बेटा राशिद, भांजी राबिया और बेटी शबनम साथ-साथ रहते थे. शबनम शिक्षा मित्र के तौर पर काम कर रही थी.

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Shabnam 700 शबनम के परिवार के सभी लोग मौत के घाट उतार दिए गए. पुलिस ने बाहर से आने वाले लुटेरों वाली कहानी पर भरोसा नहीं किया. (तस्वीर: newstrend)

शबनम को सलीम नाम का लड़का पसंद आ गया था. उसके पिता की गांव में ही आरा मशीन चलती थी. दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन शौकत को अपनी बेटी के लिए वो लड़का पसंद नहीं था. लोग बताते हैं कि दोनों परिवारों की हैसियत बराबर नहीं थी. कुल जमा ये कि शबनम और सलीम को इस बात से खासी दिक्कत थी. तो उन्होंने निर्णय लिया कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी. न रहेगा परिवार, न होगी उन्हें दिक्कत.
14 अप्रैल, 2008 को रोज की तरह पूरा परिवार खाना खाने के बाद चाय पीने बैठा. उसके बाद सभी सोने चले गए. उनमें से किसी ने अगली सुबह नहीं देखी. शबनम ने चाय में नशीली गोलियां मिला दी थीं.
जब सब गहरे नशे में चले गए, तब सलीम घर पहुंचा. कुल्हाड़ी लेकर. रात के एक बजे के आसपास का समय था. एक-एक कर उसने सभी घरवालों के सिर धड़ से अलग कर दिए. उसके बाद वहां से चला गया. शबनम ने इसके बाद दो बजे के करीब रोना-पीटना शुरू किया. बालकनी से चिल्लाती शबनम की चीख सुनकर आस-पास के लोग इकट्ठा हो गए. पुलिस आई. उसे शबनम ने बताया कि बदमाशों ने छत के रास्ते आकर परिवारवालों को मार डाला. पुलिस ने इसी बयान के आधार पर जांच-पड़ताल शुरू की.
Shabnam Salim 700 तस्वीर में बायीं तरफ शबनम, दायीं तरफ सलीम. शबनम पढ़ी लिखी थी, नौकरी कर रही थी, सलीम दसवीं पास भी नहीं था.

लेकिन छत से नीचे आने के लिए कोई रास्ता मौजूद नहीं था. सीढ़ी लगाने के कोई निशान नहीं मिले. इकलौते पानी के पाइप पर भी चढ़ने-उतरने के कोई निशान नहीं मिले. तब पुलिस का माथा ठनका. जांच आगे बढ़ी, तो उन्होंने देखा कि घर के अन्दर आने वाला लोहे का दरवाजा खुला हुआ था. यानी किसी ने भीतर से ही वो दरवाजा खोला था. शक की सुई शबनम की तरफ घूमी. कैसे वो इकलौती बच गई, जब घर में सभी मार डाले गए. पुलिस ने कड़ाई से जवाब-सवाल करने शुरू किए. शबनम के फोन रिकॉर्ड चेक किए गए.
पता चला तीन महीने में 900 से ज्यादा बार एक ही नम्बर पर कॉल किया गया था. ये नम्बर सलीम का था. पुलिस ने दोनों को हिरासत में लेकर पूछताछ की. शबनम कुछ समय तक लुटेरों की कहानी दुहराती रही. लेकिन ज्यादा समय तक उसकी कहानी टिक नहीं पाई. दोनों ने जुर्म कबूल कर लिया. पोस्टमार्टम में पूरे परिवार के शरीर में नशीली दवाइयों के अंश पाए गए.
Murder Pic 700 क़त्ल की जगह की एक धुंधली तस्वीर. हत्या के समय अर्श की उम्र मात्र दस महीने थी.

इस घटना को अंजाम देने वाली शबनम और उसके प्रेमी सलीम को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों पर सामूहिक हत्या का मुकदमा चलाया गया. इस मामले पर सुनवाई करते हुए अमरोहा के तत्कालीन जिला जज ए.ए. हुसैनी ने शबनम और सलीम को मामले का दोषी करार दिया और उन दोनों को सजा-ए-मौत सुनाई. दोनों को फांसी दिए जाने का फरमान दिया. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, दोनों में ये सज़ा बरकरार रखी गई. अब पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है.
बावनखेड़ी गांव में आज भी कोई अपनी बेटी का नाम शबनम नहीं रखता. जब हत्याएं की गईं, तब शबनम के पेट में बच्चा था. जेल में ही उसने बच्चे को जन्म दिया. सात साल की उम्र तक वो जेल में ही पला-बढ़ा. अब वो एक पत्रकार के पास है.


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