The Lallantop

रूस के हमले की कीमत यूक्रेन की औरतें अपनी 'इज्जत' से क्यों चुकाएं?

युद्ध में बलात्कार का इतिहास: कभी सेक्स गुलाम तो कभी 'कम्फर्ट विमेन' बनाया गया.

Advertisement
post-main-image
एनरहोदर शहर की एक महिला ने कहा कि रूसी क़ब्ज़े वाले शहर इरपिन में हालात 'नरक' की तरह हैं (दोनों तस्वीरें सांकेतिक हैं, AFP/Reuters)
Russia-Ukraine War को एक महीना हो चुका है. आधिकारिक तौर पर ये युद्ध 24 फरवरी को शुरू हुआ था. युद्ध तो फिर युद्ध ही होता है. और युद्ध में सबका नुकसान होता है. यूक्रेन के लोग अब नाउम्मीद हो रहे हैं. सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं कि वे मौत का इंतज़ार कर रहे हैं.
इसी बीच रूसी सैनिकों पर महिलाओं के रेप के आरोप भी लग रहे हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार, ब्रोविया जिले की 30 साल की एक महिला अनस्तासिया तरन ने कहा कि रूसी क़ब्ज़े वाले शहर इरपिन में हालात 'नरक' की तरह हैं. उन्होंने रूसी आर्मी पर लोकल लोगों के साथ क्रूर व्यवहार करने के आरोप लगाए. अनास्तासिया ने कहा,
"वे महिलाओं का बलात्कार करते हैं और मृतकों को बस में फेंक दिया जाता है."
इससे पहले यूक्रेनी सांसद लेसिया वासिलेंको ने कहा था कि कीव के बाहरी इलाक़े में रूसी सैनिकों ने बुज़ुर्ग महिलाओं का यौन शोषण किया. ये भी दावा किया कि हिंसा से बचने के लिए कई बुज़ुर्ग महिलाओं ने आत्महत्या कर ली थी.
23 मार्च की सुबह यूक्रेन की सांसद इन्ना सोवसुन ने ट्वीट किया कि ब्रोविया में हुए रेप केस की जांच शुरू हो गई है. World War II: कोरियाआई औरतों पर जापान की ज्यादती दूसरे विश्वयुद्ध की कहानियां याद कीजिए. धरती पर आग बरस रही थी. पूरी दुनिया सहमी हुई थी. सैनिक तो सैनिक हज़ारों की संख्या में आम लोग मारे जा रहे थे. यूरोप में जर्मनी और एशिया में जर्मनी का सहयोगी जापान लगातार दूसरे देशों पर हमले कर रहे थे. जापान के क़ब्ज़े में मंचूरिया और कोरिया थे और इस बीच कुछ ऐसा हुआ, जिसे इतिहास की भाषा में 'वॉर क्राइम' कहा जाता है. जापान ने उस दौर में जो कुछ किया, वो यह बताता है कि युद्ध आम नागरिकों के लिए त्रासदी तो लेकर आता ही है, लेकिन इसके सबसे डराने वाले परिणाम औरतों को भुगतने पड़ते हैं.
जापान के जिस वॉर क्राइम की बात हम कर रहे हैं - वो है कोरिया की लाखों महिलाओं का जापानी सैनिकों द्वारा किया गया बलात्कार. जापान ने अपनी इस दरिंदगी को छिपाने के लिए इन औरतों को ‘कम्फ़र्ट विमेन’ (Comfort Women) का नाम दिया. मतलब वे औरतें जो आराम पहुंचाती हों.
Comfort Women Victims
94 साल की ली ओक सियोन, जिन्हें जापानी सैनिक 14 साल की उम्र में किडनैप करके चीन ले गए थे.

जापानी सैनिकों की हैवानियत की शिकार हुई पीड़िताएं अब भी ज़िंदा हैं. कोरियन सरकार के बनाए गए घरों में रहती हैं. इन्हें दक्षिण कोरिया में ‘हाउस ऑफ शेयरिंग’ कहा जाता है. कई इतिहासकारों के अनुमान के हिसाब से कोरिया की क़रीब दो लाख महिलाओं और लड़कियों को जापान ने सेक्स स्लेव बनाया था. कइयों को जबरन ले गए. वहीं, कई औरतों और लड़कियों को कर्ज़ चुकाने के एवज में सेक्स स्लेव बनने के लिए मजबूर होना पड़ा था. 'यदि किसी संस्कृति को नष्ट करना हो, तो महिलाएं सबसे बड़ा टार्गेट हैं' UN प्लैटफ़ॉर्म फ़ॉर ऐक्शन (1995) ने बताया है कि कैसे आर्म्ड स्ट्रगल के दौरान जेंडर की वजह से लड़कियां और महिलाएं विशेष रूप से प्रभावित होती हैं. हर उम्र की महिलाएं युद्ध के अलग-अलग प्रभाव झेलती हैं. विस्थापन, घर-संपत्ति का नुक़सान, हत्या, बलात्कार, यौन शोषण, यातना, सेक्स स्लेवरी, पारिवारिक अलगाव और विघटन.
20वीं सदी के खत्म होते-होते आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट्स में बलात्कार के 20 से ज्यादा मामलों को डॉक्यूमेंट किया गया है.
1990 के दशक में ईस्ट यूगोस्लाविया में 'एथनिक क्लेन्ज़िंग' की तर्ज़ पर सैनिकों ने महिलाओं का बलात्कार कर उन्हें जबरन प्रेग्नेंट किया था. इस दौरान जो बच्चे पैदा हुए, उन्हें वॉर चिल्ड्रेन कहा गया.
ऐसे ही Rwanda Genocide के समय हुतु बहुसंख्यकों के नेतृत्व वाली सरकार ने HIV संक्रमित पुरुषों को संगठित करके तुत्सी समुदाय की महिलाओं का साजिशन बलात्कार करवाया था. ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक़, हुतु सरकार के सैनिकों और सहयोगी चरमपंथी मिलिशिया ने लगभग ढाई लाख तुत्सी महिलाओं का बलात्कार किया था.
बांग्लादेश, बर्मा, कोलंबिया, लाइबेरिया, सिएरा लियोन और सोमालिया के हालिया कॉनफ़्लिक्ट्स में भी मास रेप्स डॉक्यूमेंट किए गए हैं.
Rwanda Genocide
1994 में रवांडा नरसंहार के दौरान बलात्कार के परिणामस्वरूप पैदा हुई बेटी को गले लगाते हुए रवांडा की एक महिला की फोटो ने ब्रिटेन की राष्ट्रीय पोर्ट्रेट गैलरी का फोटोग्राफी पुरस्कार जीता (तस्वीर - रायटर्स)


लंदन की एक प्रख्यात मनोचिकित्सक थीं. रूथ सीफ़र्ट. सीफ़र्ट ने वॉर क्राइम्स के इतिहास पर एक रिसर्च किया. रिसर्च पेपर का शीर्षक है 'द सेकेंड फ्रंट: द लॉजिक ऑफ़ सेक्शुअल वायलेंस इन वॉर्स'. अपने पेपर में रूथ ने लिखा है, "यदि किसी संस्कृति को नष्ट करना हो, तो महिलाएं सबसे बड़ा टार्गेट होती हैं." परिवार के ढांचे में महिलाओं की ज़रूरी भूमिका का तर्क दे कर रूथ ने ऐसा कहा था. युद्ध की त्रासदी औरतों के लिए हमेशा ज़्यादा क्यों होती है? संयुक्त राष्ट्र के पूर्व पीस कमांडर मेजर जनरल पैट्रिक कैमर्ट का एक मशहूर कोट है-
"एक आर्म्ड कॉनफ़्लिक्ट में एक सैनिक की तुलना में एक महिला होना ज़्यादा ख़तरनाक है."
यूगोस्लाविया और रवांडा की कहानी हमने आपको बता दी. आज भी हाल कुछ कुछ ऐसा ही है. वुमन फ़ॉर वुमन ऑर्गेनाइज़ेशन के आंकड़ों के मुताबिक़, इराक में 80% से ज़्यादा सीरियाई महिला शरणार्थी रोज़ अब्यूज़ के ख़ौफ़ में जी रही हैं. लगभग 90% अफ़ग़ान महिलाएं अपने जीवनकाल में घरेलू शोषण का अनुभव करती हैं. DRC की 27% महिलाएं यौन हिंसा और 57% घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं. लेकिन सवाल अब भी वही है. क्यों? औरत ही क्यों?
युद्ध के समय अलग-अलग सामरिक नीतियों से दूसरे पक्ष को हराने के जतन किए जाते हैं. एक तरीक़ा होता है शक्ति प्रदर्शन. सीधा तरीक़ा. जिसके पास ज़्यादा बल है, वो जीत जाएगा. लेकिन यह मत्स्य न्याय है, लॉ ऑफ़ द लैंड. इंसानों ने अपने नए लॉ बनाए, तो नई नीतियां बनाईं. उन्हें समझ आया कि जंग केवल मटीरियल की क्षति नहीं होती. या केवल बल प्रदर्शन से नहीं जीता जाता. दूसरे पक्ष के मोराल को अगर तोड़ दिया जाए, तो तमाम बल के बावजूद बड़ी से बड़ी सेना हार सकती है. इन्हीं नीतियों के तहत मध्य काल में धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया. कोई भी धार्मिक स्थल किसी समाज का लोकस पॉइंट होता है. डरी, घबराई हुई जनता यहां तक कि सेना, अपने अपने ईश्वर के पास जाती है, कि कुछ भी हो यह हमें बचा लेंगे. दूसरे पक्ष के धार्मिक स्थल तोड़ने का मतलब था, इसी उम्मीद को तोड़ देना. बल की क्षति एक बार को रिकवर की जा सकती है, क्योंकि उसके अंदर बदले की भावना निहित है. लेकिन मोराल की क्षति रिपेयर नहीं की जा सकती.
Women In Syria
सीरियाई-तुर्की सीमा के पास अपने तंबू के अंदर कपड़े धोती हुई एक विस्थापित सीरियाई महिला (फोटो - रॉयटर्स)

ये एक आम धारणा रही है कि जंग के समय किया गया सेक्शुअल वॉयलेंस एक तरह का 'स्पॉइल्स ऑफ़ वॉर' है. माने कि जंग या सैन्य गतिविधि जीतने पर निकली कोई लूट. लेकिन इसके उलट भी एक थियरी है. भारतीय लेखिका, पत्रकार, फ़िल्म निर्देशक और विमेन ऐक्टिविस्ट गीता सहगल ने बीबीसी न्यूज़ वेबसाइट से एक बातचीत में कहा था कि ये सोचना एक गलती है कि इस तरह के हमले मुख्य रूप से यौन संतुष्टि के लिए किए जाते हैं. उन्होंने कहा था कि बलात्कार एक नीति की तरह इस्तेमाल होता है.
"महिलाओं को समुदाय के रिप्रोड्यूसर्स और देखभालकर्ता के रूप में देखा जाता है. इसलिए अगर एक समूह दूसरे को नियंत्रित करना चाहता है तो वो अक्सर दूसरे समुदाय की महिलाओं को गर्भवती करके ऐसा करता है क्योंकि वो इसे विरोधी समुदाय को नष्ट करने के तरीक़े के रूप में देखते हैं."
मेडिसिंस सैन्स फ्रंटियर्स की एक रिपोर्ट कहती है कि 1990 के दशक में पहली बार बलात्कार को एक हथियार के रूप में देखा गया था. रिपोर्ट में कहा गया है,
"बोस्निया में एथनिक क्लेन्ज़िंग की रणनीति के तहत सिस्टेमैटिक बलात्कार किया गया था. महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था ताकि वे सर्बियाई बच्चों को जन्म दे सकें."
कुछ सवाल ख़ुद से पूछिए 1993 में UN मानवाधिकार आयोग ने सिस्टेमैटिक बलात्कार और आर्म्ड सेक्शुअल स्लेवरी को मानवता के ख़िलाफ़ अपराध की श्रेणी में डाल दिया. महिलाओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में दंडनीय घोषित किया. 1995 में UN के चौथे विश्व सम्मेलन ने निर्देश दिया कि युद्ध के दौरान आर्म्ड ग्रुप्स द्वारा बलात्कार एक वॉर क्राइम है. पूर्व यूगोस्लाविया और रवांडा के नरसंहार में किए गए अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया. 1998 में एक ऐतिहासिक मामले में, रवांडा की ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि 'बलात्कार और यौन हिंसा को नरसंहार कहा जाएगा.'
युद्ध का मतलब क्या है? युद्ध का मतलब है कि इंसानी सभ्यता के मानक, पैमाने, क़ायदे, क़ानून जो हमने एक लंबे समय में बनाए हैं, उन सब को भूलकर जंगल का क़ानून लागू कर देना कर लेना. और जैसा कि कवि गौरव त्रिपाठी कहते हैं, "जंगल का अकेला क़ानून यही है कि इस जगह का कोई क़ानून नहीं है."
जैसे-जैसे कोई समाज प्रगति करता है और हम और 'सभ्य' होते हैं. 'बराबरी', 'न्याय', 'लिबर्टी' जैसे कॉन्सेप्ट्स को महत्व मिलता है. मगर युद्ध में ये सभी कॉन्सेप्ट स्थगित हो जाते हैं. सभी हारते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा हारती हैं महिलाएं.
आखिर में एक सवाल छोड़ कर जा रहे हैं. सवाल जो हिंदी की फेमिनिस्ट लेखिका कमला भसीन ने पूछा था. कमला सितंबर, 2021 में इस दुनिया से रुखसत हो गईं. लेकिन उनका सवाल अब भी जवाब मांग रहा है-
"जैसे-जैसे हम एक सभ्य समाज के रूप में आगे बढ़े, हमने महिलाओं को समाज की प्रतिष्ठा बना दिया. हालांकि, हम उन्हें इंसान नहीं बनने देना चाहते थे. मैं पूछना चाहती हूं कि मेरी प्रतिष्ठा मेरी योनि में किसने डाली?"
 

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement