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इंटरनेट ऐड्स में 'प्लस साइज़' मॉडल्स को देखने से फूहड़ नजारा कोई नहीं होता

ये नजारा इसलिए भद्दा नहीं है क्योंकि मॉडल्स मोटी होती हैं...

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बॉडी पॉजिटिविटी के नाम पर तारीफ पाने वाली इस तरह की फैशन रेंज लड़कियों का सबसे ज्यादा नुकसान करती हैं. जानती हैं क्यों? क्योंकि ये हमें पुरुषवादी समाज में स्वीकार्यता पाने का टिकेट दे रही होती हैं.
जब लोगों को समझ में नहीं आता है कि वो किसी औरत को कौन सी गाली दें (जिससे उनकी ज़बान भी न खराब हो) तो मोटी कह देते हैं. क्योंकि मोटा होना औरत के लिए सबसे बड़ी गाली होती है. लडकियां मोटी नहीं होना चाहतीं क्योंकि मोटापा उनके लिए केवल शारीरिक ही नहीं, एक मानसिक परेशानी भी है. जैसे-जैसे उनके कपड़े कसते जाते हैं, उनका आत्मविश्वास कम होता जाता है. और ये बात उन लड़कियों की नहीं जो छोटे शहरों की हों, जहां लड़कियों को जज करने का इकलौता मानक केवल उनका शरीर हो. मोटापे से डर एक ऐसा फोबिया है जो हर औरत में दिखता है--पढ़ी-लिखी, सक्षम महिलाओं में भी.

PP KA COLUMN

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ये सच है कि मोटापा तमाम बीमारियां लेकर आता है. और लड़कियों के लिए ये अधिक खतरनाक है क्योंकि ये उनके हॉर्मोन के साथ खिलवाड़ करता है जिससे उनको पीरियड और प्रेगनेंसी से जुड़ी तमाम परेशानियां हो सकती हैं. मगर स्वास्थ्य वो वजह नहीं है जिससे से अधिकतर लड़कियां दुबली होना चाहती हैं. वजह है समाज में अपनाए न जाने और कपड़े फिट न आने का डर, जो पुरुषों के मुकाबले औरतों में अधिक दिखता है.
हालांकि कई औरतें हैं जो लगातार बॉडी पॉजिटिविटी यानी हर तरह का शरीर सुंदर होता है, इस बात पर भरोसा करने का संदेश दे रही हैं. कमाल की बात तो ये है कि बाज़ार इसे अच्छे से भुना रहा है और अधिकतर शॉपिंग साइट्स ने प्लस साइज़ कपड़ों की रेंज लॉन्च कर दी है. मोटी मॉडल्स हर तरह के कपड़े पहनकर पोज करती हैं. ये दिखाने का प्रयास किया जाता है कि वजनी लड़कियां भी शॉर्ट ड्रेस पहन सकती हैं. वो भी 'सेक्सी' लग सकती हैं.
मगर बॉडी पॉजिटिविटी के नाम पर तारीफ पाने वाली इस तरह की फैशन रेंज लड़कियों का सबसे ज्यादा नुकसान करती हैं. जानती हैं क्यों? क्योंकि ये हमें पुरुषवादी समाज में स्वीकार्यता पाने का टिकेट दे रही होती हैं.
प्लस साइज़ फैशन रेंज से फूहड़ शायद ही कुछ गूगल पर दिखा हो.
प्लस साइज़ फैशन रेंज से फूहड़ शायद ही कुछ गूगल पर दिखा हो.


सोशल मीडिया और गूगल पर दिखने वाले इश्तेहारों में मुस्कुराती मोटी मॉडल्स मुझे सब्जे ज्यादा फूहड़ लगती हैं. इसलिए नहीं कि उन्हें छोटे कपड़े पहनने का हक नहीं है. या उनका शरीर मॉडलिंग के लिए नहीं बना. बल्कि इसलिए कि वो मुझे बता रही होती हैं कि तुम मोटी हो तो क्या हुआ, तुम भी इस पुरुषवादी समाज में फिट हो सकती हो. तुम भी पुरुषवादी मानकों के मुताबिक़ सुंदर दिख सकती हो. तुम्हारा शरीर भी चाहा जा सकता है.
इंडियन ब्रांड्स की प्लस साइज़ मॉडल्स हमेशा गोरी-चिट्टी दिखती हैं. जैसे काली लड़कियां मोटी हो ही नहीं सकतीं. असल बात तो ये है कि पहले ही आपकी मॉडल मोटी है. वो काली भी होगी तो आपके प्रोडक्ट कौन खरीदेगा. मॉडल्स का मोटा शरीर भी शेप में रहता है. सच तो ये है कि मोटे होने के बावजूद भी वो किसी आम लड़की की तरह नहीं दिखतीं. क्योंकि अगर आप आम हैं तो पुरुषवादी समाज की नज़र के लिए आप अच्छी नहीं हैं. आपको हमेशा कुछ ऐसा बनना पड़ता है जो आप नहीं हैं.
प्लस साइज़ मॉडल्स कभी ब्यूटी प्रोडक्ट्स के ऐड में क्यों नहीं दिखतीं?
प्लस साइज़ मॉडल्स कभी ब्यूटी प्रोडक्ट्स के ऐड में क्यों नहीं दिखतीं?


प्लस साइज़ मॉडल्स हमेशा प्लस साइज़ कपड़ों के ही विज्ञापनों में दिखती हैं. वे कभी क्रीम के विज्ञापन में नहीं दिखतीं. न कभी शैम्पू के विज्ञापन में दिखती हैं. ब्यूटी प्रोडक्ट्स छोड़िए, वो तो कभी आपको आटे और तेल के विज्ञापन में भी नहीं दिखेंगी, क्योंकि बाज़ार में मोटी लड़कियों का सिर्फ एक ही काम है. कि दूसरी मोटी लड़कियों को बताना कि बहन दिल न छोटा करो, फैशन इंडस्ट्री तुम्हें भी एकाध टुकड़े डाल देगी.
मैं खुद को एक औसत बॉडी टाइप मानती हूं. मेरे बॉडी टाइप की जाने कितनी लड़कियां होंगी इस देश में. मगर फैशन इंडस्ट्री के मुताबिक़ मेरे कपड़ों का साइज़ लार्ज या एक्स्ट्रा लार्ज आता है. यानी साइज़ के मामले में मुझसे नीचे भी 4 केटेगरी होती हैं. मैं कल्पना भी नहीं कर सकती की अगर मैं एक्स्ट्रा लार्ज पहनती हूं, तो एक्स्ट्रा स्माल साइज़ किस महिला के लिए बनाया जाता है?
अगर 30 इंच कमर वाली औरत को लार्ज साइज़ आता है तो स्मॉल किसके लिए बना है?
अगर 30 इंच कमर वाली औरत को लार्ज साइज़ आता है तो स्मॉल किसके लिए बना है?


प्लस साइज़ कपड़ों के विज्ञापन मुझे क्रोधित करते हैं क्योंकि वो मुझसे चीखकर कहते हैं कि तुम प्लस साइज़ की बाउंड्री पर खड़ी हो और वो दिन दूर नहीं जब तुम नॉर्मल साइज़ को क्रॉस कर प्लस की केटेगरी में आ जाओगी. मुझे क्रोध आता है क्योंकि जब भी मैं मॉल में कपड़े खरीदने के लिए घुसती हूं, मुझे याद दिलाया जाता है कि मेरा शरीर किसी भी स्टैन्डर्ड शरीर से बड़ा है. मुझे और मेरी जैसी लाखों लड़कियों को हर दिन याद दिलाया जाता है कि 30 इंच की कमर 'लार्ज' है. जब फैशन इंडस्ट्री 30 से 32 इंच की कमर को लार्ज कहती हैं, वो दबे हुए शब्दों में ये भी कह रही होती है कि ये रेगुलर साइज़ नहीं है और तुम्हें अपनी कमर घटाकर 28 करनी ही होगी, ठीक वैसी ही, जैसी फिल्मों और टीवी पर औरतों की होती है.
एक औसत मल्टीनेशनल ब्रांड का साइज़ चार्ट बताता है कि उनका 'औसत' क्या है. उनके मुताबिक़ मीडियम साइज़ की लड़की का शरीर ऐसा होना चाहिए:
हाइट: 5 फूट 8 इंच सीना: 34 इंच कमर: 28 इंच कूल्हे: 38 इंच
ये इस देश की औरतें जानती हैं कि हमारे शरीर ऐसे नहीं होते. फैशन साइट्स पर कपड़ों की नुमाइश कर रही औरतों के मेज़रमेंट यही होते हैं. जो औसत भारतीय औरत, खासकर जो 25 की उम्र पार कर चुकी हो, के लिए पाना एक संघर्ष है.
ये औरतें 'प्लस' हैं तो लार्ज और एक्स्ट्रा लार्ज कौन हैं?
ये औरतें 'प्लस' हैं तो लार्ज और एक्स्ट्रा लार्ज कौन हैं?


आप मुझे बता सकते हैं कि मोटा भी खूबसूरत होता है. तो मैं आपसे बताऊंगी कि मोटा हो या पतला, मुझपर सुंदर होने का बोझ ही क्यों हो? आप मुझसे बता सकते हैं कि कपड़ों के अंदर 'शेपवियर' पहनकर और तारों वाली ब्रा पहनकर मुझे समाज में एक सुन्दर औरत के तौर पर स्वीकार कर लिया जाएगा. तो मैं आपसे कहूंगी कि मुझे माफ़ कीजिए, एक ऐसे सिस्टम में, जो महिलाओं को फैशन के नाम पर कभी कसे कोरसेट, कभी तारों वाली ब्रा तो कभी लोहे के जूते पहनाता आया हो, में मैं स्वीकार्यता नहीं खोज रही हूं.


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