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आज़ादी के बाद सात दशकों में कैसे बदला भारत का फैशन?

मधुबाला और देवानंद से लेकर इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर तक, कैसे बदला हम भारतीयों का स्टाइल?

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जिस भारतीय फैशन की दुनिया दीवानी है क्या वो हमेशा से ऐसा ही था या समय के साथ बदला?

फैशन क्या है? कोई अगर ये सवाल मुझसे पूछे तो मेरे लिए तो फैशन अभिव्यक्ति का एक जरिया है यानी वे ऑफ़ एक्सप्रेशन.. मैं किसी भी दिन क्या पहन रही हूं?  हेयरस्टाइल कैसा बनाया हुआ है? ये सब डिपेंड करता है कि उस दिन मेरा मूड कैसा है. ये सिर्फ मेरी कहानी नहीं है. ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा होता है. अच्छा इसके इतर एक और सत्य भी है जिसे नकारा नहीं जा सकता है और वो ये कि किसी दिन अगर आपका मूड खराब है, आपका कुछ करने का मन नहीं कर रहा है तो अच्छे से तैयार होकर देखिए. आपको अच्छा लगने लगेगा. इस पर आधारित कोई रिसर्च तो नहीं है लेकिन भाई अनुभव भी तो कोई चीज़ होती है. खैर ये तो हो गई इधर-उधर की बातें. अब थोड़ा ज्ञान की बात कर लेते हैं. हम सब आज़ादी के 75 वर्षों को सेलिब्रेट कर रहे हैं. अगर आप जुदाई फिल्म के परेश रावल होते तो आपके दिमाग में कई सवाल आ चुके होते. मेरे भी दिमाग में आये. और उनमें से एक सवाल ये भी था कि पिछले सात दशकों में भारतीय फैशन कितना बदला? उसमें क्या-क्या बदलाव आये? ये कैसे इवॉल्व हुआ? जिस भारतीय फैशन की दुनिया दीवानी है क्या वो हमेशा से ऐसा ही था या समय के साथ बदला? तो चलिए इस सवाल का जवाब आज खोजते हैं.

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50s की सादगी

फैशन की ये खासियत है कि ये हर टेस्ट के लोगों को केटर कर सकता है. आपको इसमें कल्चरल हेरिटेज, एलिगेंस और कलरफुलनेस तो देखने मिलती ही है साथ ही दशकों से चली आ रही खूबसूरती की झलक भी दिख जाएगी. ये आरामदायक भी हैं और सोफेस्टिकेटेड भी और सबसे अच्छी बात इसने समय के साथ बदलना भी सीखा है. आज़ादी से पहले हाथ से काती हुई खादी स्वदेशी मूवमेंट का एक हिस्सा बन कर उभरी थी. इस दौरान फिल्म हावड़ा ब्रिज में मधुबाला का डीप कट ब्लाउज और कैप्री काफी ज्यादा पॉपुलर हुए. 

मीना कुमारी की ज्वेलरी और साड़ियों की लड़कियां दीवानी थीं. इस दौर के फैशन में यूरोपियन कल्चर की भी हल्की झलक नज़र आती थी. खासकर पुरुषों के कपड़ों में. देव आनंद इस ज़माने के ट्रेंड सेटर हुआ करते थे.

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60s के रंग

1960 का दौर वो दौर था जिसने मधुबाला का अनारकली सूट और मुमताज़ की ऑरेंज साड़ी फैशन की दुनिया को दी. इस दौर में महिलाओं के कपड़ों में फैशन, ब्राइट कलर्स और प्रिंट्स ने जगह बना ली थी. बॉडी हगिंग चूड़ीदार सूट्स, फिटेड शॉर्ट ब्लाउज के साथ पूफी हेयरस्टाइल और विंगड आईलाइनर इस दौर की ख़ास पहचान बन गया था और हां, बेहद पॉप्युलर साधना कट भी इसी दौर की ही देन है. 

1967 में आई फिल्म 'एन इवनिंग इन पेरिस' में शर्मीला टैगोर का स्विमसूट भी लड़कियों के बाच हॉट फेवरेट बन गया था. पुरुषों की बात करें तो ये वो समय था जब जवाहरलाल नेहरु का बंदगला सूट पसंदीदा फॉर्मल वियर हुआ करता था. इसके अलावा चेक शर्ट्स, पोलो और टर्टल नैक टीशर्ट और बेल बॉटम पैन्ट्स लोग पहनना पसंद कर रहे थे.

70s की हिप्पी वाइब्स

1970 का दशक फैशन की दुनिया के लिए बहुत कुछ लेकर आया. फिल्म बॉबी में डिम्पल कपाड़िया के आईकॉनिक पोल्का डॉटेड ब्लाउज हों या हरे रामा हरे कृष्णा में ज़ीनत अमान का हिप्पी लुक, परवीन बॉबी की बिकिनी हो या हेलेन के कैबरे फेदर्स, ये दौर फैशन के लिए एक इम्पोर्टेन्ट दौर माना जाता है. बेल बॉटम्स, क्रॉप्ड शर्ट्स, ओवरसाइज़्ड ग्लासेज, प्लेटफार्म हील्स और पोल्का डॉट्स इसी दौर में हमें मिला. पुरुष राजेश खन्ना की तरह 'गुरु कुर्ता' पहन रहे थे. 

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इस दौर में बंधगला और बैलबॉटम पैन्ट्स की जगह सफारी सूट्स और स्लिम पैन्ट्स ने ले ली थी. एंग्री यंग मेन अमिताभ बच्चन लेदर जैकेट और फ्लेयर्ड ट्राउज़र के साथ इस दौर के ट्रेंडसेटर बने.

80s की क्रिएटिविटी

इस दौर में लोगों के घरों में टेलीविज़न ने जगह बना ली थी जिसने फैशन को नए आयाम देने का काम किया. कुर्ता और चूड़ीदार, मैचिंग ब्लाउज के साथ प्रिंटेड साड़ी इस दौरान बहुत पसंद की गईं. उत्सव और उमराव जान जैसी आइकोनिक फिल्मों में ग्लैमरस दीवा रेखा की  हैवी ज्वेलरी से लोग आइडियाज़ लेने लगे. 1980 का दौर 'थोड़ा एक्स्ट्रा' अपने साथ लेकर आया. चटकीले रंग, चमकदार गहने, मेटैलिक, बिखरे हुए बाल और कलरफुल लेग वार्मर्स ये सब इसी दशक में ट्रेंड में आये. इसके अलावा इंडियन फैशन डिज़ाइनर्स रोहित खोसला और सत्या पॉल ने भी इसी दौर में फैशन इंडस्ट्री में कदम रखा. 1983 में भानु अथैया ने फिल्म गांधी की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग के लिए ऑस्कर जीता था. 

ये भारत के लिए पहला ऑस्कर था. 1986 में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फैशन की भी शुरुआत हुई थी. कलरफ़ुल टी-शर्ट्स और डेनिम जैकेट्स ने इस दौर के मेंस फैशन में अपनी ख़ास जगह बना ली थी.

90s के कूल बॉयज और गर्ल्स

ये दौर था इंडी- पॉप स्टार अलीशा चिनॉय और कल्ट फिल्म्स ‘कुछ कुछ होता है’ और ‘दिल तो पागल है’ की पॉप्युलैरिटी का. 1990 के दशक में कई ऐसे ट्रेंड्स बने जो आज भी काफी ज़्यादा पॉप्युलर हैं. डेनिम शर्ट्स, क्रॉप टॉप्स, चोकर्स, को-ऑर्ड्स, शिफॉन साड़ी और ओवरसाइज़्ड शर्ट्स, 90s ने हमें ये सब कुछ दिया. करिश्मा कपूर, माधुरी दीक्षित इस दौर की स्टाइल आईकॉन बन कर उभरीं.

 इस एरा में पुरुष बैगी पैन्ट्स काफी पसंद कर रहे थे. ‘कुछ-कुछ होता है’ में शाहरुख़ खान की बॉडी हगिंग टीशर्ट नेशनल क्रेज बन गई थी.

2000s का फॉरवर्ड फैशन

इस दौर में कई इंटरनेशनल फैशन ब्रांड्स ने इंडिया में अपने स्टोर्स खोलने शुरू कर दिए थे. ‘जब वी मेट’ की गीत हो या ‘कभी ख़ुशी कभी कभी गम’ की पू, करीना कपूर ने इस दौरान फैशन को एक नया डायरेक्शन देने का काम किया. 

ट्यूब टॉप, माइक्रो मिनीज़, और देसी फ्यूज़न आउटफिट्स लोगों के वार्डरॉब में जगह बनाने लगे थे. लो-वेस्ट जीन्स भी दौर में काफी पॉपुलर हुईं. इसके अलावा लडकिया एथनिक कुर्ते के साथ जीन्स पहनना भी काफी प्रेफर कर रही थीं. इस दौर में पुरुष कार्गो शॉर्ट्स और फटी हुई जीन्स के दीवाने थे.

10s का कम्फर्ट

अगर हाल के वक़्त की बात करें तो सोशल मीडिया के इस दौर ने हमें एक अलग प्लेटफॉर्म दिया.  इस दौरान हमने धीरे-धीरे सेक्सी और फिटेड कपड़ों को अलविदा कहना और कम्फर्टेबल कपड़ों को वार्डरॉब में ऐड करना शुरू किया. सेलिब्रिटी ट्रेंड्स की जगह लोगों ने स्ट्रीट स्टाइल को फॉलो करना शुरू किया. माइक्रो बैग्स, शीर टॉप्स, ओवरसाइज़्ड स्वेटशर्ट, साइकिलिंग शॉर्ट्स इस समय के वायरल ट्रेंड्स में से हैं. ये बदलाव का दौर रहा. लोगों ने सेलिब्रिटीज को फॉलो करने के बजाय इंफ्ल्युएंसर्स को फॉलो करना शुरू किया.

 इस दौरान पैंडेमिक के चलते फोकस ऐसे कपड़ों पर रहा जो कम्फर्टेबल होने के साथ साथ सोशियल मीडिया पोस्ट और स्टोरीज में भी अच्छे लगे.

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