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किस्सा दुर्गा भाभी का, जिन्होंने भगत सिंह की 'पत्नी' बनकर उन्हें अंग्रेजों से बचा लिया

बम बनाना जानती थीं, पिस्तौल चलाने में माहिर थीं

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दुर्गावती वोहरा को भारत की अग्नि भी कहा जाता है. आज़ादी की लड़ाई में भाग लेकर अंग्रेजों को थर्राने वाली महिलाओं में इनका नाम आता है. बाईं तरफ उनकी एक पुरानी तस्वीर. दाईं तरफ उनके आखिरी दिनों से कुछ पहले की तस्वीर. (तस्वीर: ट्विटर/ The Better India)

17 दिसंबर, 1928.

लाहौर

ब्रिटिश पुलिस अफसर जॉन सौन्डर्स की हत्या कर दी गई थी. हत्या के आरोप में भगत सिंह और राजगुरु को अंग्रेज सरकार ढूंढ रही थी. लाहौर के चप्पे-चप्पे पर जांच जारी थी. ट्रेन के स्टेशनों पर पुलिस तैनात थी. जो भी नौजवान लाहौर छोड़कर निकल रहे थे, उन पर CID की कड़ी नज़र थी. दो दिन तक भगत सिंह और राजगुरु छुपे हुए थे. उन्हें निकल भागने के लिए एक तगड़े प्लान की ज़रूरत थी. लेकिन वो सिर्फ दो लोगों के साथ संभव नहीं था. राजगुरु के दिमाग में एक योजना पक रही थी. लेकिन उसे काम में लाने के लिए एक और इंसान तक पहुंचना ज़रूरी था. और वो थीं दुर्गा भाभी. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी (HSRA) की मेंबर. क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा की पत्नी.
राजगुरु ने उनसे मदद मांगी. कहा, हमें लाहौर से बाहर जाना है. दुर्गा भाभी अपने बेटे के जन्म के बाद से क्रांतिकारी गतिविधियों से थोड़ी दूर थीं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि भगत सिंह और राजगुरु को उनकी ज़रूरत है, वो फ़ौरन तैयार हो गईं.
उसके बाद जो हुआ, वो इतिहास का एक ऐसा किस्सा है, जो कई बार फिल्मों और नाटकों में दोहराया जा चुका है. वो किस्सा जब भगत सिंह अपनी ‘पत्नी’ और ‘बच्चे’ के साथ, अंग्रेजों के नाक के नीचे से निकल गए थे.
Durga Bhabhi दुर्गा भाभी की उस समय की तस्वीर जब वो क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया करती थीं. (तस्वीर: ट्विटर)

क्या हुआ था 20 दिसंबर 1928 की सुबह?

एक रात पहले राजगुरु दुर्गा भाभी से मिलने पहुंचे. अपने साथ एक सजीले नौजवान को लेकर. भाभी से मिलवाया, कहा, मेरे दोस्त हैं. दुर्गा भाभी ने स्वागत किया. इस नौजवान को उन्होंने नहीं पहचाना. तब राजगुरु ने उन्हें बताया, ये भगत सिंह हैं. अंग्रेजों से अपनी पहचान छुपाने के लिए भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी हटा दी थी. सिर पर पग की जगह अंग्रेजी हैट पहन रखा था. दुर्गा भाभी भौंचक रह गईं.
अगले दिन यानी 20 तारीख की सुबह उन्होंने लाहौर से कलकत्ता जाने वाली ट्रेन के तीन टिकट लिए. भगत सिंह और उनकी ‘पत्नी’ दुर्गा अपने बच्चे के साथ पहले दर्जे में बैठने वाले थे. उनके ‘नौकर’ राजगुरु के लिए तीसरे दर्जे का टिकट कटा. स्टेशन पर पहुंचते हुए सबके दिल में धुकधुकी लगी हुई थी. कि कहीं कोई पहचान न ले. कुछ हो न जाए.
लेकिन अंग्रेज तो एक पगधारी सिख को ढूंढ रहे थे. अंग्रेजी सूट-बूट और हैट में सज़ा लड़का उनकी नज़रों में आया ही नहीं. ऐसा लड़का, जिसके साथ उसकी पत्नी और छोटा बच्चा भी था. किसी को कोई शक नहीं हुआ.
Soha Durga Vohra फिल्म 'रंग दे बसंती' में एक्ट्रेस सोहा अली खान ने इन्हीं का किरदार निभाया था. (तस्वीर: ट्विटर)

स्टेशन के भीतर जाकर उन्होंने कानपुर की ट्रेन ली, फिर लखनऊ में ट्रेन बदल ली, क्योंकि लाहौर से आने वाली डायरेक्ट ट्रेनों में भी चेकिंग जारी थी. लखनऊ में राजगुरु अलग होकर बनारस चले गए. वहीं भगत सिंह, दुर्गा भाभी, और उनका छोटा बच्चा हावड़ा के लिए निकल गए. कलकत्ता में ही भगत सिंह की वो मशहूर तस्वीर ली गई थी जिसमें उन्होंने हैट पहन रखा है.
इस तरह भगत सिंह को अंग्रेजों की नाक के नीचे से निकाल लाईं उनकी ‘पत्नी’ दुर्गावती बोहरा, उर्फ़ दुर्गा भाभी.
Bhagat Singh भगत सिंह की वो तस्वीर जो अब आइकॉन बन चुकी है. (तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)

दुर्गावती देवी- बोहरा से दुर्गा भाभी तक

सात अक्टूबर 1907 को जन्मीं. शहजादपुर गांव में पंडित बांके बिहारी के यहां.  पिता ने संन्यास ले लिया था, रिश्तेदारों ने दस साल की उम्र में शादी करा दी. भगवती चरण वोहरा से. ये क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी के मास्टर कहे जाते थे. उनके साथ मिलकर दुर्गा भाभी ने भी आज़ादी की लड़ाई के लिए काम करना शुरू कर दिया.  वोहरा की पत्नी होने की वजह से सभा के सभी सदस्य उन्हें भाभी कहते थे. उन्हें पिस्तौल चलाने में महारथ हासिल थी. बम बनाना भी जानती थीं..
Durga Bhabhi With Kid अपने बेटे सचिन्द्र के साथ दुर्गा भाभी. (तस्वीर साभार: The Better India)

जब उनके बेटे सचिन्द्र का जन्म हुआ, तब उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों से दूरी बना ली. लेकिन भगत सिंह की मदद के लिए जब उनसे गुजारिश की गई, तो वो फ़ौरन तैयार हो गईं. इस घटना के बाद वो लाहौर लौट आई थीं. जब 1929 में भगत सिंह और राजगुरु ने आत्म समर्पण किया, तब उन्होंने अपनी सारी बचत उनके ट्रायल में लगा दी थी. गहने भी बेच दिए थे. और उस समय तीन हजार रुपयों का इंतजाम किया था.  1930 में उनके पति भगवती चरण वोहरा की बम बनाते हुए विस्फोट में मौत हो गई. वो एक शिक्षिका के तौर पर काम करती रहीं.
आज़ादी के बाद उन्होंने गाज़ियाबाद में रहना शुरू किया. मारिया मोंटेसरी, जिन्होंने मोंटेसरी स्कूलों की शुरुआत की, उनसे ट्रेनिंग लेकर उन्होंने लखनऊ में मोंटेसरी स्कूल खोला. इस स्कूल को देखने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी आए थे. 15 अक्टूबर 1999 को दुर्गा भाभी इस दुनिया से चली गईं.


वीडियो: भगत सिंह और दूसरे युवा देशभक्तों के वो सच जो हमसे छुपाए गए