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अबॉर्शन राइट्स के मामले में भारत की महिलाओं की स्थिति अमेरिका से बेहतर है?

कुछ लोग अमेरिका की स्थिति की तुलना भारत से करते हुए कह रहे हैं कि हम इनसे दशकों आगे हैं.

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गर्भपात इमोशनल और फिजिकल दोनों पेन लेकर आता है

Abortion हिंदी में कहूं तो गर्भपात.

पिछले कुछ दिनों से इसपर खूब चर्चा हो रही है. इस चर्चा के तार जुड़े हैं अमेरिका (America) से. वहां की सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात से जुड़ा 50 साल पुराना फैसला - 'Roe vs Wade' को पलट दिया. अब वहां पर महिलाओं के पास गर्भपात का संवैधानिक अधिकार यानी Right to Abortion नहीं होगा. अब कुछ लोग अमेरिका की स्थिति की तुलना भारत से करते हुए कह रहे हैं कि हम इनसे दशकों आगे हैं.

आज हम इसी सवाल का जवाब खोजेंगे कि क्या अबॉर्शन के मामले में  भारत में महिलाओं की स्थिति अमेरिका से बेहतर है? भारत में गर्भपात से जुड़े क्या कानून हैं? और साथ ही उन महिलाओं के अनुभव भी सुनेंगे जिन्होंने भारत में गर्भपात करवाया है.

Abortion Rights India में कब मिलीं?

बात है साल 1971 की. अमेरिका में रो जेन नाम की महिला ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. वो तीसरी बार प्रेगनेंट हुईं थी, लेकिन बच्चा नहीं चाहती थीं. लेकिन वहां पर अबॉर्शन की इजाज़त केवल विशेष परिस्थितियों में ही थी.  अबॉर्शन के अधिकार के लिए रो जेन ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. उसके बाद 1973 में अमेरिका की महिलाओं को अबॉर्शन का अधिकार मिला था. ये अधिकार अब एक बार फिर छीन लिया गया है.

जिस साल रो जेन कोर्ट पहुंचीं, उसी साल यानी 1971 में भारत में एमटीपी यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून आया था. समय-समय पर इस कानून में संशोधन हुए और 2021 में ही इसमें संशोधन आया है. ये कानून एक सीमा तक महिलाओं को अबॉर्शन कराने की अनुमति देता है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि भारत में महिलाओं को अबॉर्शन कराने की खुली छूट है. एमटीपी एक्ट में कई टर्म्स एंड कंडीशन्स दी गई हैं. अगर आपका कारण उस क्राइटेरिया को पूरा करता है, तब ही आप गर्भपात करा पाएंगी.

भारत में abortion से जुड़े क्या कानून हैं?

एमटीपी एक्ट में अबॉर्शन राइट्स को तीन कैटेगरी में डिवाइड किया गया है.

1. प्रेग्नेंसी के 0 - 20 हफ्ते तक अबॉर्शन के लिए-

- अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है

- अगर कांट्रासेप्टिव मेथर्ड या डिवाइस फेल हो गया और ना चाहते हुए महिला प्रेग्नेंट हो गई तब वो गर्भपात करा सकती है.

अबॉर्शन एक रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा होना ज़रूरी है.

2. प्रेग्नेंसी के 20 - 24  हफ्ते तक अबॉर्शन के लिए-

- अगर मां या बच्चे की मानसिक या शारीरिक स्वास्थ को किसी भी तरह का खतरा है तब महिला गर्भपात करा सकती है .

इसके लिए अबॉर्शन के दौरान दो रजिस्टर्ड डॉक्टरों का होना ज़रूरी है.

3. प्रेग्नेंसी के 24  हफ्ते बाद अबॉर्शन के लिए-

- यदि महिला रेप का शिकार हुई है और उस वजह से प्रेगनेंट हुई है तब वो प्रेग्नेंसी के 24  हफ्ते बाद भी अबॉर्शन करवा सकती है.  
- यदि महिला विकलांग है तब वह 24  हफ्ते बाद भी गर्भपात की मांग कर सकती है. 
-  यदि बच्चे के जीवित बचने के चांस कम है या प्रेगनेंसी की वजह से मां की जान को खतरा हो.

24 हफ्ते के बाद गर्भपात पर फैसला लेने के लिए एमटीपी बिल में राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड्स का गठन किया जाता है. इस मेडिकल बोर्ड में एक गायनेकोलॉजिस्ट, एक बाल रोग विशेषज्ञ, एक रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट शामिल होते हैं. ये बोर्ड गर्भवती की जांच करता है और अबॉर्शन में महिला की जान पर कोई खतरा न होने की स्थिति में ही अबॉर्शन करने की इजाज़त देता है.

यदि प्रेग्नेंसी से गर्भवती के जीवन को खतरा है तो किसी भी स्टेज पर एक डॉक्टर की सलाह पर गर्भपात किया जा सकता है.

भ्रूण के लिंग की जांच के बाद गर्भपात करना भ्रूण हत्या के दायरे में आता है और कानून की नज़र में ये अपराध है.

भारत में abortion से जुड़ी समस्याएं 

भारत उन कुछ चुनिंदा देशों में से एक है जहां महिलाओं को क़ानूनी तौर पर गर्भपात का हक़ है, लेकिन यहां समस्याएं अलग तरह की हैं.

2015 में लैन्सेट की एक स्टडी आई थी. उसके मुताबिक, देश में 1.56 करोड़ गर्भपात हुए थे जिनमें से केवल 34 लाख मामले यानी 22 फ़ीसदी से कम मामले सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचे थे. 

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया में ज्वाइंट डायरेक्टर आलोक वाजपेयी कहते हैं,

"हमारे पास क़ानून है, लेकिन उसको लागू करने में ख़ामियां है. यहां उचित सुविधाओं की कमी हैं जिन तक महिलाओं की पहुंच हो, इस कारण महिलाएं इस क़ानून का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं"

भारत में आमतौर पर प्रेग्नेंसी का फैसला सिर्फ महिलाओं का नहीं होता. शादीशुदा घरों में यहां बहुत कुछ पति और परिवार पर निर्भर करता है. यही बात अबॉर्शन केसेस पर भी लागू होती है. जैसे कानून तो ये कहता है कि अगर प्रेग्नेंसी की वजह से किसी महिला को मानसिक आघात पहुंचता है तो वो गर्भपात करवा सकती है. लेकिन भारत में जिस तरह का सोशल स्ट्रक्चर है उसमें परिवार का दबाव, समाज का दबाव इतना हावी होता है कि महिला पर बच्चा पैदा करने का भारी दबाव होता है. ऐसे में अगर वो मानसिक रूप से तैयार नहीं होने की बात कहकर अबॉर्शन करवाना चाहे भी तो परिवार वाले उसे ऐसा करने नहीं देते.

बच्चा आएगा तो सब ठीक हो जाएगा
अरे हमें भी घबराहट हुई थी, लेकिन अब देखो कितना प्यार करते हैं हमारे बच्चे हमसे
तुम बस बच्चा पैदा कर दो, हम पाल लेंगे
अब बच्चा कोख में आ गया है तो जीव हत्या थोड़ी करोगी

अक्सर इस तरह की बातें सुनने में आती हैं. ये अपने आप में बड़ी आयरनी है कि एक महिला जब अपनी मर्ज़ी से अबॉर्शन करना चाहती है तो उस पर बच्चा पैदा करने का दबाव बनाया जाता है. लेकिन अगर पता चल जाए कि पेट में लड़की है तो जीव हत्या, ऊपर वाले को क्या मुंह दिखाओगी कहने वाले रिश्तेदार झट से बच्चा गिराने की राय देने लगते हैं. UNFPA की रिपोर्ट बताती है कि 2020 में जन्म से पहले लिंग परीक्षण की वजह से भारत में करीब 4.6 करोड़ लड़कियां मिसिंग हैं.

ये तो विवाहित महिलाओं की बात थी, लेकिन जब बात अविवाहित लड़कियों की आती है तो उसे कई स्तरों पर नेगेटिव बातों से जूझना पड़ता है. चूंकि शादी के बिना बनाए गए शारीरिक संबंधों को भारतीय समाज स्वीकार नहीं करता है और स्टिग्मा की तरह देखता है. ऐसे में जब कोई लड़की गर्भपात कराने जाती है, तो डॉक्टर्स भी उससे शादीशुदा हो, बच्चे का बाप कौन है, मां बाप को इस बारे में पता है टाइप के गैरज़रूरी सवाल पूछते हैं कई डॉक्टर्स लड़कियों को डांटने भी लगते हैं कि घरवालों का भरोसा तोड़ दिया आदि आदि. ऐसे वक्त में जब एक लड़की को सपोर्ट की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है वो लोगों के जजमेंट झेल रही होती है.

और गर्भपात तो दूर की बात है, आप किसी नार्मल सी प्रॉब्लम के लिए भी गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाओ तब भी वो दो चार गैर ज़रूरी सवाल पूछेंगी. सही समय पर शादी और बच्चा पैदा करने जैसी बिन मांगी सलाह दे देंगी.

भारत में एक अविवाहित लड़की का गर्भपात से जुड़ा अनुभव समझने के लिए मैंने एक लड़की से बात की. उनकी प्राइवेसी का ध्यान रहते हुए उनका नाम बदल रही हूं. काल्पनिक नाम है शिखा. शिखा ने बताया.

"मैं एक पढ़ी लिखी, फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट लड़की हूं. जैसे ही मुझे अपनी प्रेगनेंसी के बारे में पता चला तो मैं बहुत घबरा गई थी.  मैं इतना डर गई थी कि मैंने अपनी सबसे अच्छी सहेलियों तक को इस बारे में नहीं बताया था. जिसके साथ मेरा संबंध था, उससे रिश्ता खत्म हो चुका था, वो कोई ज़िम्मेदारी लेने तैयार नहीं था. मैं भी बच्चे की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी. लेकिन अबॉर्शन के लिए मैं किसी सरकारी अस्पताल नहीं जाना चाहती थी. मैंने आस पास के प्राइवेट सेंटर और अस्पतालों में कॉल किया. जैसे ही उन्हें पता चलता कि मैं अनमैरिड लड़की हूं और अनचाही प्रेग्नेंसी से निजात पाना चाहती हूं तो वो पैसे ऐठने की स्कीम बताने लगते. एक दिन का 25 हज़ार. इन सब से परेशान होकर मैंने अपने कज़िन भाई को इस बारे में बताया. उसकी एक जान पहचान की डॉक्टर थी जिसने हमें NGO के बारे में बताया, जो फ्री ऑफ़ कॉस्ट अबॉर्शन करवाते हैं. वहां पर रजिस्टर्ड डॉक्टर थीं. उन्होंने मुझसे गर्भपात की वजह पूछी. सिर्फ मेडिकल रिकॉर्ड में लिखने के लिए और कहा कि आगे मुझे कुछ एक्सप्लेन करने की ज़रूरत नहीं है. बेहद समझदारी और प्यार से पूरा प्रोसेस समझाया और MTP पिल्स की मदद से गर्भपात करवाया. उन्होंने सर्जरी का आप्शन न अडॉप्ट करने के लिए कहा. दो-  तीन घंटे के लिए ऑब्जर्वेशन पर भी रखा."

शिखा ने ये भी कहा कि गर्भपात इमोशनल और फिजिकल दोनों पेन लेकर आता है. लोग क्या कहेंगे, उनके बारे में क्या सोचेंगे इसके डर से उन्होंने अपने दोस्तों तक को इस बारे में कुछ नहीं बताया था. वो कहती हैं कि उस वक़्त जिसपर सबसे ज्यादा भरोसा किया उसने ही धोखा दिया था तो किसी और पर भरोसा करने की हिम्मत नहीं हुई. पर उस बारे में बताना चाहिए था. बात करनी चाहिए थी. ताकि कोई मेरे साथ हाथ पकड़कर अस्पताल तक जाता, कोई सहेली दर्द में साथ रहती. पर इसके अराउंड इतना स्टिग्मा है कि लड़कियां खुद ही मानने लगती हैं कि उनसे कोई गलती हुई हो. शिखा का कहना है कि आज भी बहुत से लोगों को नहीं पता कि भारत में एबॉर्शन लीगल है. और इसके लीगल होने का फायदा लोगों को नहीं मिल रहा क्योंकि रिसोर्सेज और जानकारी उनतक नहीं पहुंच रही.

गांव में तो हाल बहुत बुरा है. पपीता खाकर या गर्म चीजें खाने से गर्भपात होता है टाइप के मिथ फैले हुए हैं. वहां पर सुविधाओं के अभाव में लोग अनसेफ अबॉर्शन का रास्ता अपनाते हैं. घर में ही गर्भपात करने की कोशिश करते हैं.

अबॉर्शन के अधिकारों के मामले में इंडिया अमेरिका से आगे है?

जवाब होगा हां. यहां का कानून महिलाओं को ये फैसला लेने का हक देता है कि बच्चा रखना चाहती है या नहीं. लेकिन वजह फैमिली प्लानिंग वाली है. एक औरत का उसके शरीर पर अधिकार वाली नहीं. कानून तो हमारा दुरुस्त है लेकिन दिक्कत सोशल स्ट्रक्चर की है जहां पति और ससुराल वाले एक लड़की, उसके शरीर और उसके पूरे अस्तित्व पर अपना हक समझते हैं. इस वजह से कई महिलाएं अपने शरीर से जुड़े फैसले खुद नहीं ले पातीं, उसके लिए भी दूसरों पर निर्भर हो जाती हैं.

कानूनी हक के बावजूद सुविधाओं की कमी और सामजिक दिक्कतों के कारण वो पूरी तरह अपने हक़ का इस्तेमाल नहीं कर पातीं. हमें ज़रूरत है सुविधाओं को महिलाओं तक पहुंचाने और सामजिक रूप से कुरीतिओं को खत्म करने की ताकि महिलाएं अपने हक़ का इस्तेमाल कर सकें.