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टाइटन बची ना 5 लोग, पर 82 साल पहले पनडुब्बी डूबी तो एक आदमी कैसे बच आया?

1941 में पनडुब्बी डूबने, 60 लोगों के मरने और एक के बचने की कहानी, जिसने दुनिया को चौंका दिया था. बाद में डॉक्यूमेंट्री भी बनी थी.

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1941 में डूबी थी पर्सियस, सिर्फ जॉन केप्स बचे! (साभार - बीबीसी)

टाइटैनिक जहाज का मलबा देखने गई पनडुब्बी ‘टाइटन’ पर सवार 5 लोगों की मौत की पुष्टि हो गई है. गुरुवार, 22 जून को यूएस कोस्ट गार्ड को अटलांटिक सागर की तलहटी में इसका मलबा मिला. इसके कुछ देर बाद उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. इसमें कहा गया, “हमें जो मलबा मिला, वो टाइटन का ही है.”

इस पनडुब्बी की चर्चा के बीच एक और पनडुब्बी की कहानी याद की जा रही है. नाम है एचएमएस पर्सियस. 1941 में ये पनडुब्बी डूब गई थी. सीधे समूद्र की सतह से जा टकराई थी. पर जिस बात ने दुनिया को चौंकाया था, वो ये थी कि इसमें एक आदमी की जान बच गई थी. पर कैसे? ये बहुत दिलचस्प है. विस्तार से बताते हैं.

HMS Perseus

1929 में बनाई गई इस सबमरीन को ब्रिटिश साम्राज्य ने मिस्र के एलेक्जेंड्रिया को सौंप दिया था. पर्सियस का काम एलेक्जेंड्रिया से माल्टा तक जरूरी सामान पहुंचाना था. कई साल ये सिलसिला बिना किसी समस्या के चलता रहा. फिर 26 नवंबर 1941 के दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसका किस्सा सुन आपके कान खड़े हो जाएंगे.

HMS Permeus (साभार - बीबीसी)

1941. दूसरा विश्व युद्ध अपने चरम पर था. इतालवी नेवी फ्रांस और ब्रिटिश जहाजों को रोकने के लिए लगातार नए-नए दांव खेल रही थी. ऐसे ही एक दांव ने पर्सियस को चपेट में ले लिया. 26 नवंबर को ये सबमरीन माल्टा से निकला, जिसे एलेक्जेंड्रिया की ओर जाना था. 10 दिन तक सफर में सबकुछ ठीक रहा. 6 दिसंबर को पर्सियस एक इतालवी माइन से टकरा गई. इस पर 61 लोग सवार थे, पर हादसे के बाद सिर्फ एक बचा. इस आदमी का नाम जॉन केप्स था. दिलचस्प ये भी है कि जब पर्सियस माइन से टकराई, तब जॉन अपने बंकर में लेटे हुए थे.

कैसे बचे जॉन केप्स?

जॉन को ज़ोरदार धमाके की आवाज आई. ज़ोरदार झटका भी लगा. झटके की वजह से जॉन अपने बंकर के बाहर आ गिरे. पूरी सबमरीन की बत्ती गुल हो गई. पनडुब्बी तेज़ी से पानी की गहराई में डूबने लगी. फिर जॉन ने क्या किया? 61 में से अकेले बचने वाले इस शख़्स ने क्या पैंतरा अपनाया?

ओसेनेग्राफिक के मुताबिक जॉन की किस्मत ने भी उनका जबर साथ दिया. उनके हाथ एक टॉर्च लगी. उसे जलाते ही 31 साल के इस आदमी ने देखा कि सबमरीन में बहुत तेज़ी से समूद्र का खारा पानी भर रहा है. जॉन ने बताया था कि वो लगभग 24 लाशों के ऊपर पैर रखकर निकलते रहे, बाहर की ओर. उन्हें पनडुब्बी पर सवार तीन जिंदा लोग भी मिले. केप्स उनके साथ हो लिए और चारों लोग एस्केप चेंबर पहुंच गए. यहां से इन सबने एस्केप सूट पहने. एस्केप सूट में ऑक्सीजन की व्यवस्था होती है. पर इससे भी जटिल समस्या मुंह बाए खड़ी थी.

दरअसल इन सूट्स की मदद से कोई भी इंसान 100 फीट की गहराई से बच सकता है. इससे ज्यादा गहराई हो, तो ये सूट किसी काम का नहीं. सबमरीन की रीडिंग बता रही थी कि पनडुब्बी 270 फीट गहराई पर है. हालांकि, ये रीडिंग गलत थी. असली गहराई 170 फीट थी. पर ये भी 100 फीट से ज्यादा ही थी. यानी सतह तक पहुंचने भर का ऑक्सीजन नहीं था. ऐसे केस में आप क्या करते?

चारों ने तय किया, जो होगा, देखा जाएगा. चीयर्स भी हुआ. चारों ने सबमरीन से निकलने के पहले शराब के घूंट मारे. फिर चारों वहां से निकल गए. बता दें, जॉन को छोड़ बाकी सारे लोग हादसे की वजह से घायल हो चुके थे. जॉन ने आपबीती में बताया था कि जब वो बोट से निकले, तब पानी का दबाव इतना था मानों हड्डियां टूट जाए. इसी वजह से ही जॉन को छोड़ बाकी सबके शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया. पर जॉन ने हार नहीं मानी. वो जैसे-तैसे सतह तक आ पहुंचे. सतह पर पहुंचकर उन्हें एक द्वीप नज़र आया. अंदाज़न, ये द्वीप जॉन से लगभग पांच मील की दूरी पर था. हाथ-पैर मारने का सिलसिला एक बार फिर शुरू हुआ. आखिरी सांसे चल रही थीं, पर जॉन इस टापू तक पहुंच गए.

समूद्र के किनारे आते ही जॉन बेहोश हो गए. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस टापू पर ग्रीक मछुआरों ने उन्हें देखा और अपने घर ले गए. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस टापू पर इटली का कब्ज़ा था. इन मछुआरों ने जॉन को 18 महीनों तक छुपाए रखा.

कैसे लौटे जॉन?

18 महीने की जद्दोजहद के बाद जॉन केप्स बचते-बचाते एक मछुआरे की सहायता से केफेलोनिया पहुंच गए. यहां से उन्हें तुर्की के लिए जहाज मिला. तुर्की के बाद एलेक्जेंड्रिया तक का रास्ता तय किया गया. जॉन को उनकी बहादुरी और शानदार जज्बे के लिए ब्रिटिश एंपायर मेडल से भी सम्मानित किया गया.

एचएमएस पर्सियस का मलबा

'झूठी है जॉन की कहानी'

कई लोगों ने जॉन की कहानी पर सवाल उठाए. कहा, ऐसा संभव नहीं है. दलील दी गई कि पर्सियस पर सफर कर रहे यात्रियों की लिस्ट में जॉन का नाम था ही नहीं. फिर वो बोट पर कैसे हो सकते हैं? वहीं तकनीकी सवाल खड़े भी किए गए. जॉन के पास यात्रा से संबंधित कोई सबूत भी नहीं था. सिर्फ कहानी थी, और कहानी को झुठलाना आसान होता है. पर...

कैसे साबित हुई जॉन की सच्चाई?

1985 में जॉन की मौत हुई. पर उनकी कहानी के सबूत उनकी मौत के 12 साल बाद मिले. जॉन की बताई गई जगह पर ही पर्सियस का मलबा मिला. सबमरीन का बंकर, एस्केप चेंबर का गेट और शराब की बोतलें, सारी बातें जॉन के बयान से हूबहू मिल गईं. इस कहानी पर आगे चलकर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गई. इसका नाम 'द पर्सियस सर्वाइवर' (The Perseus Survivor) रखा गया. निर्देशक एवजेनी टोमाशोव ने इस डॉक्यूमेंट्री को 2000 में रिलीज़ किया था.

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