अगर आप देश की राजनीति पर नजर रखते हैं, तो आपने अविश्वास प्रस्ताव या कहें तो नो-कॉन्फिडेंस मोशन का नाम जरूर सुना होगा. विपक्षी दल सरकार के खिलाफ निचले सदन में इस प्रस्ताव को लाते हैं, जिसका सीधा मतलब होता है कि सरकार सिद्ध करे कि उसके पास बहुमत है. लेकिन सितंबर का महीना शुरू हुए अभी 5 दिन ही बीते हैं और इन्हीं पांच दिनों में देश के दो राज्यों की विधानसभा में एक मोशन पास किया गया. जिसका नाम था विश्वास प्रस्ताव या ट्रस्ट वोट. एक सितंबर को दिल्ली की केजरीवाल सरकार (AAP Government) और आज, 5 सितंबर को झारखंड की हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सरकार ने सदन में विश्वास प्रस्ताव पारित किया. तो इस आर्टिकल में जानेंगे, क्या होता है विश्वास प्रस्ताव और भारतीय राजनीति में इसका क्या महत्व है.
अविश्वास प्रस्ताव तो बहुत सुना, विश्वास प्रस्ताव क्या होता है जिसे जीत सोरेन फूले नहीं समा रहे?
केजरीवाल ने भी एक सितंबर को दिल्ली विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव जीता था.

विश्वास प्रस्ताव बिल्कुल अविश्वास प्रस्ताव जैसा ही होता है. अंतर सिर्फ इतना ही है कि विश्वास प्रस्ताव सदन के नेता, जो लोकसभा में प्रधानमंत्री और विधानसभा में मुख्यमंत्री होते हैं, वो लाते हैं, जबकि अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष द्वारा लाया जाता है. विश्वास प्रस्ताव लाने पर सदन के नेता को फ्लोर पर ये साबित करना होता है कि सरकार बनाने या सरकार में बने रहने के लिए उसके पास पूर्ण बहुमत है. ये प्रस्ताव सिर्फ निचले सदन यानी लोकसभा या विधानसभा में ही लाया जाता है क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से सरकार इन्हीं सदनों में चुनकर आती है. उच्च सदन यानी राज्यसभा और विधान परिषद में चुनाव अप्रत्यक्ष यानी इनडायरेक्ट होता है. इन सदनों में सदस्यों की संख्या से सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
विश्वास प्रस्ताव की जरूरत दो तरह की स्थितियों में होती है. पहली, सरकार बनने के ठीक बाद प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत सिद्ध करना होता है. दूसरी, राज्यपाल के कहने पर. प्रस्ताव लाने के बाद सदन में अगर बहुमत सिद्ध नहीं होता तो सरकार गिर जाएगी. और बहुमत जीतने का मतलब है कि सरकार को कोई खतरा नहीं है.
अविश्वास प्रस्ताव के साथ एक नियम जुड़ा होता है कि एक बार इस प्रस्ताव के लाने पर अगर सरकार ने बहुमत सिद्ध कर लिया तो अगले 6 महीने तक विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकता है. तो सवाल ये उठता है कि क्या अब झारखंड की हेमंत सोरेन या दिल्ली की केजरीवाल सरकार को कोई खतरा नहीं है?
इसका जवाब थोड़ा टेढ़ा है. हेमंत सोरेन ने आज विश्वास प्रस्ताव जीत लिया. लेकिन अगर कुछ दिन बाद उनके विधायकों में तोड़फोड़ हो जाए तो ऐसी स्थिति में विपक्ष, स्पीकर से अविश्वास प्रस्ताव लाने की गुजारिश कर सकता है. इस स्थिति में स्पीकर ये कह सकते हैं कि कुछ दिन पहले ही सरकार ने विश्वास प्रस्ताव पारित कर बहुमत सिद्ध किया है तो अब दोबारा परीक्षण की जरूरत नहीं है.
लेकिन इसके बाद भी विपक्ष के पास एक जरिया है. विपक्ष गवर्नर या ले. गवर्नर के पास जाकर ये कह सकता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है. ऐसी स्थिति में अगर गवर्नर विपक्ष की इस बात से सहमत हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि सरकार को बहुमत सिद्ध करने की जरूरत है, तो वो सरकार को आदेश दे सकते हैं कि सदन में ट्रस्ट वोट साबित करे.
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