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पुलवामा हमला: डाकू मलखान सिंह बोला - हमें बॉर्डर पर भेजो, पाक को धूल चटा देंगे

पूर्व डकैत ने कहा- 15 साल बीहड़ों में कथा नहीं बांची. मेरे पास 700 बागी, देश के लिए मर मिटने को तैयार.

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चंबल में कभी डकैत रहे मलखान पुलवामा हमले के बाद गुस्से में.
छह फुट लंबाई, बड़ी-बड़ी मूछें और बदन पर खाकी वर्दी. और खौफ का तो पूछो मत. हम बात कर रहे हैं दस्यु सरगना मलखान सिंह की. जो एक वक्त चंबल में खौफ का पर्याय था. पर 1982 में मलखान ने हथियार डाल दिए थे. अध्यात्मिक मार्ग अपना लिया. पर अब वो एक बार फिर चर्चा में हैं. पुलवामा हमले के बाद उनका बयान आया है. उनका कहना है कि हमने हथियार छोड़े हैं चलाना नहीं भूले हैं. मलखान ने 20 फरवरी को कानपुर में कहा -
मध्यप्रदेश में 700 बागी बचे हैं. अगर सरकार चाहे तो बिना शर्त, बिना वेतन हम बॉर्डर पर देश के लिए मर मिटने को तैयार हैं. हमने 15 साल बीहड़ों में कथा नहीं बांची है. मां भवानी की कृपा रही, तो मलखान सिंह का कुछ नहीं बिगड़ेगा. हां, पाकिस्तान को जरूर धूल चटा दूंगा. उसको उसकी औकात दिखा दूंगा.
मलखान सिंह ने कहा कि हमसे लिखवा लिया जाए कि हम मारे जाएं तो कोई जुर्म नहीं. बचा हुआ जीवन हम लगाने को तैयार हैं. अगर इसमें पीछे हट जाए तो नाम मलखान सिंह नहीं है. वो ये भी बोले कि -
मैं गांव व जिले का बागी रहा हूं. देश का नहीं.
मलखान सिंह ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कही.
मलखान सिंह ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कही.
शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ चुनाव लड़ने की बात कही
मलखान पुलवामा आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि के एक कार्यक्रम में कानपुर आए थे. वहां जब पत्रकारों ने उनसे चुनावी मैदान में उतरने की बात पूछी तो वो बोले अगर लोकसभा चुनाव में टिकट मिलती है, तो जरूर लड़ूंगा. साथ ही बीजेपी पर तंज भी कसा. कहा, जब वादे पूरे नहीं करोगे तो हारोगे ही. मप्र में इसीलिए हार गए.
मलखान बोले कि मैंने 1982 में आत्मसमर्पण किया था. तब अर्जुन सिंह मप्र के मुख्यमंत्री थे. मैंने तब ही मंच से ऐलान किया था कि यदि कोई महिला शिनाख्त कर दे कि मलखान ने उसकी चांदी की भी अंगूठी उतारी हो तो इसी मंच के सामने फांसी पर लटक जाऊंगा. इसीलिए मैं कहता हूं कि हम अन्याय के खिलाफ राजनीति करेंगे. हम राजनीती पेट भरने के लिए नहीं करेंगे. मलखान ने ये भी कहा कि चुनाव होंगे और होते रहेंगे लेकिन पुलवामा में हुए आतंकी हमले का बदला जरूर लेना चाहिए. अगर कश्मीर पर फैसला नहीं लिया गया तो कोई भी राजनीति पर विश्वास नहीं करेगा.


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