आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि विकास दुबे को ऐसी जगह पर गोली मारी गई है जो जानलेवा नहीं थी. मतलब पुलिस की मंशा उसे मारने की नहीं बल्कि घायल करके पकड़ने की थी. कमीशन ने ऐसी ही क्लीन चिट एनकाउंटर में मारे अमर दुबे, प्रवीन कुमार पांडे और प्रभात मिश्रा के एनकाउंटर में दी है. प्रशासन की मिली भगत पर क्या बोला आयोग? आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यूपी पुलिस और प्रशासन पर अपराधी के साथ मिली भगत को लेकर गंभीर बातें लिखी हैं. द इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक रिपोर्ट में लिखा गया है कि
“ पुलिस और राजस्य विभाग के अधिकारी विकास दुबे और उसके गैंग को संरक्षण देते थे. अगर कोई विकास दुबे या उसके सहयोगी के खिलाफ शिकायत करने जाता था तो पुलिस शिकायत करने वाले को अपमानित करती थी. यहां तक कि उच्चाधिकारियों के शिकायत दर्ज करने के निर्देशों को भी लोकल पुलिस अनसुना करती थी.”रिपोर्ट कहती है कि विकास दुबे की पत्नी का जिला पंचायत सदस्य और उसके भाई की पत्नी का ग्राम प्रधान चुना जाना दिखाता है कि उसकी लोकल प्रशासन से कितनी मिली भगत थी.

उत्तर प्रदेश के कानपुर का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे. 1990 के पहले से शुरू हुई गांव की दबंगई हत्या, ज़मीनें हड़पना, हत्या की साज़िश रचने के आरोपों तक पहुंची. जांच कमीशन ने पाया कि उसे किसी भी गंभीर आरोप में सजा न मिलने के पीछे पुलिस और प्रशासन की मिली भगत रही.
रिपोर्ट आगे कहती है कि
“विकास दुबे और सहयोगियों के खिलाफ दर्ज कराई गई किसी भी शिकायत की निष्पक्षता से जांच नहीं की गई. चार्जशीट फाइल करने से पहले ही गंभीर धाराएं हटा ली गईं. ट्रायल के दौरान ज्यादातर गवाह मुकर गए. विकास दुबे और उसके साथी कोर्ट से इतनी जल्दी बेल पा गए कि जैसे उनके सामने सरकार की तरफ से कोई गंभीर वकील है ही नहीं. सरकारी अथॉरिटीज़ ने कभी इस बात की जरूरत नहीं समझी कि उसके केस में किसी खास वकील से सलाह ली जाए. सरकार ने उसकी बेल ऐप्लिकेशन के खिलाफ न तो कोर्ट में कोई अर्जी दी और न ही ऊपर के कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.”रिपोर्ट में लिखा गया है कि जब पुलिस बिकरू पहुंची तो पुलिस रेड की जानकारी पहले से ही विकास दुबे को हो गई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि
“कानपुर की इंटेलिजेंस यूनिट यह पता लगाने में पूरी तरह से फेल हो गई कि विकास दुबे के पास खतरनाक हथियार हैं. रेड करने से पहले किसी भी तरह की सावधानी नहीं बरती गई और कोई भी पुलिसवाला बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहने था. रेड डालने वालों में से सिर्फ 18 लोगों के पास हथियार थे, बाकी खाली हाथ थे या उनके पास सिर्फ डंडे थे."आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश भी की है कि उन सरकारी कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए जिन्होंने विकास दुबे की जांच से जुड़े कागजात गायब कर दिए.