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विकास दुबे कथित एनकाउंटर की जांच करने वाले आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में क्या कहा?

आयोग ने कहा, 'पुलिस विकास के खिलाफ़ शिकायत करने वाले को अपमानित करती थी'

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8 पुलिसवालों की हत्या करने के आरोपी विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर लाए जाने के दौरान कथित तौर पर मुठभेड़ में मारा गया. इस मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एक जांच आयोग ने इसकी जांच की थी.
कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे (Vikas Dubey) को ढेर करने वाली पुलिस की टीम को क्लीन चिट मिल गई है. बिकरू कांड की जांच के लिए बने न्यायिक आयोग ने पुलिस की टीम को क्लीन चिट दी है और एनकाउंटर को सही पाया है. बता दें कि एनकाउंटर की सचाई जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यों का एक आयोग बनाया था. इसके अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज डॉ बीएस चौहान थे. इसके अन्य दो सदस्य इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज शशि कांत अग्रवाल और यूपी के पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता थे. आयोग ने 132 पेज की रिपोर्ट बनाई है. जिसमें पुलिस और न्यायिक सुधार संबंधी कई सिफारिशें की गई हैं. रिपोर्ट के साथ ही 665 पेज की फेक्चुअल जानकारी भी राज्य सरकार को सौंपी गई है. आयोग की ये रिपोर्ट 19 अगस्त को यूपी विधानसभा में पेश की गयी. आयोग ने भले ही पुलिस को एनकाउंटर में क्लीन चिट दी है लेकिन इस बात को माना है कि विकास दुबे और उसके गैंग को लोकल पुलिस के साथ ही जिले के राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण मिला हुआ था. एनकाउंटर पर जांच आयोग ने क्या कहा? कानपुर के बिकरू गांव में 2-3 जुलाई 2020 की रात को रेड मारने गए 8 पुलिसवालों की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी. इसमें डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्रा भी शामिल थे. मामले में 21 लोगों के खिलाफ FIR लिखाई गई जिसमें से 6 को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया है. विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर लाते वक्त पुलिस ने दावा किया था कि पुलिस की गाड़ी पलटी थी, जिसका फ़ायदा उठाकर विकास दुबे पुलिस पर हमला करके भागने लगा. पुलिस ने कहा कि जवाबी फ़ायरिंग में मुठभेड़ हुई और विकास दुबे की मौत हो गयी. इसी कथित मुठभेड़ की जांच के लिए ही आयोग का गठन किया गया था. मामले की जांच के बाद आयोग ने कहा कि पुलिस पक्ष और घटना से संबंधित सबूतों के खंडन के लिए मीडिया और जनता में से कोई भी सामने नहीं आया है. उन्होंने कहा कि विकास दुबे की पत्नी ऋचा ने एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए एक एफिडेविट दिया था लेकिन वो आयोग के सामने पेश नहीं हुईं. इसीलिए पुलिस पर शक नहीं किया जा सकता. मजिस्ट्रेट जांच में भी यही निष्कर्ष सामने आया था.
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पाया है कि विकास दुबे को ऐसी जगह पर गोली मारी गई है जो जानलेवा नहीं थी. मतलब पुलिस की मंशा उसे मारने की नहीं बल्कि घायल करके पकड़ने की थी. कमीशन ने ऐसी ही क्लीन चिट एनकाउंटर में मारे अमर दुबे, प्रवीन कुमार पांडे और प्रभात मिश्रा के एनकाउंटर में दी है. प्रशासन की मिली भगत पर क्या बोला आयोग? आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यूपी पुलिस और प्रशासन पर अपराधी के साथ मिली भगत को लेकर गंभीर बातें लिखी हैं. द इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक रिपोर्ट में लिखा गया है कि
“ पुलिस और राजस्य विभाग के अधिकारी विकास दुबे और उसके गैंग को संरक्षण देते थे. अगर कोई विकास दुबे या उसके सहयोगी के खिलाफ शिकायत करने जाता था तो पुलिस शिकायत करने वाले को अपमानित करती थी. यहां तक कि उच्चाधिकारियों के शिकायत दर्ज करने के निर्देशों को भी लोकल पुलिस अनसुना करती थी.”
रिपोर्ट कहती है कि विकास दुबे की पत्नी का जिला पंचायत सदस्य और उसके भाई की पत्नी का ग्राम प्रधान चुना जाना दिखाता है कि उसकी लोकल प्रशासन से कितनी मिली भगत थी.
Vikas Dubey
उत्तर प्रदेश के कानपुर का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे. 1990 के पहले से शुरू हुई गांव की दबंगई हत्या, ज़मीनें हड़पना, हत्या की साज़िश रचने के आरोपों तक पहुंची. जांच कमीशन ने पाया कि उसे किसी भी गंभीर आरोप में सजा न मिलने के पीछे पुलिस और प्रशासन की मिली भगत रही.

रिपोर्ट आगे कहती है कि
“विकास दुबे और सहयोगियों के खिलाफ दर्ज कराई गई किसी भी शिकायत की निष्पक्षता से जांच नहीं की गई. चार्जशीट फाइल करने से पहले ही गंभीर धाराएं हटा ली गईं. ट्रायल के दौरान ज्यादातर गवाह मुकर गए. विकास दुबे और उसके साथी कोर्ट से इतनी जल्दी बेल पा गए कि जैसे उनके सामने सरकार की तरफ से कोई गंभीर वकील है ही नहीं. सरकारी अथॉरिटीज़ ने कभी इस बात की जरूरत नहीं समझी कि उसके केस में किसी खास वकील से सलाह ली जाए. सरकार ने उसकी बेल ऐप्लिकेशन के खिलाफ न तो कोर्ट में कोई अर्जी दी और न ही ऊपर के कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.”
रिपोर्ट में लिखा गया है कि जब पुलिस बिकरू पहुंची तो पुलिस रेड की जानकारी पहले से ही विकास दुबे को हो गई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि
“कानपुर की इंटेलिजेंस यूनिट यह पता लगाने में पूरी तरह से फेल हो गई कि विकास दुबे के पास खतरनाक हथियार हैं. रेड करने से पहले किसी भी तरह की सावधानी नहीं बरती गई और कोई भी पुलिसवाला बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहने था. रेड डालने वालों में से सिर्फ 18 लोगों के पास हथियार थे, बाकी खाली हाथ थे या उनके पास सिर्फ डंडे थे."
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश भी की है कि उन सरकारी कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए जिन्होंने विकास दुबे की जांच से जुड़े कागजात गायब कर दिए.

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