'हैदर' फ़िल्म के इस वीडियो में शाहिद का कैरेक्टर कश्मीर और 370 पर क्या बोलता है?
डायरेक्टर विशाल भारद्वाज ने इस सीन में कश्मीरी लोगों के मन को खोलकर रख दिया था.
उस दृश्य में हैदर मीर (शाहिद कपूर) का किरदार जो पागल हो जाता है. और पागलपन में सच्ची बातें करने लगता है.
8 अगस्त 2019 (अपडेटेड: 8 अगस्त 2019, 03:15 PM IST)
हम हैं कि हम नहीं,
हम हैं तो कहां हैं,
और नहीं हैं तो कहां गए,
हम हैं तो किसलिए?
और कहां गए तो कब...
फिल्म है - हैदर. कहानी एक सामान्य कश्मीरी लड़के हैदर की. जो फिल्म के एक सीन में ये प्रश्न पूछता है. वही सीन अब 2019 में वायरल हो रहा है. क्योंकि इसमें आर्टिकल 370 का जिक्र है. वही 370 जिसकी चर्चा पिछले तीन-चार दिनों से देश भर के गली, क़स्बों, चाय की दुकानों से लेकर लुटियंस दिल्ली के कॉफ़ी हाउस तक में हो रही है. जैसे ही सरकार ने जम्मू और कश्मीर पर से आर्टिकल 370 का अधिकतर हिस्सा हटा लिया, वैसे ही इसके समर्थक लोग मारे ख़ुशी के तिरंगा लेकर चौराहों पर निकल आए. तो कुछ लोग कश्मीरी लड़कियों की फोटो डालकर अपनी फ्रस्ट्रेशन निकाल रहे हैं.
दूसरी तरफ नेता लोग बिहारवासियों को कश्मीर में रोजगार देने की बात करने लगे. इसी हो-हल्ले के बीच डायरेक्टर विशाल भारद्वाज की 2014 में आई फिल्म 'हैदर' का वीडियो शेयर हो रहा है. फिल्म की कहानी संक्षेप में जानें तो हैदर मीर (शाहिद कपूर) को पढ़ने के लिए अलीगढ़ भेजा जाता है. ताकि वह कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद के प्रभाव में न आए. फिर हैदर को एक दिन अपने पिता के लापता होने की खबर मिलती है. वह कश्मीर वापस लौटता है तो अपने घर को एकदम उजड़ा हुआ पाता है. फिर वो यहां के हालातों को देखता है और हैमलेट की तर्ज पर उसकी भी कहानी आगे बढ़ती है.
अंत में हैदर लगभग पागल हो जाता है. फिर ये सीन आता है जब वो कश्मीर के एक चौराहे पर खड़े होकर व्यंग्य और विडंबना जताते हुए अपनी भड़ास निकालता है. जो कहीं न कहीं बाकी लोगों की आवाज़ भी होती है. हैदर कहता है -
यूएन काउंसिल रेजोल्यूशन न.47 ऑफ़ 1948,
आर्टिकल 2 ऑफ़ द जेनेवा कन्वेंशन एंड
आर्टिकल 370 ऑफ़ द इन्डियन कंस्टीटूशन,
बस एक सवाल उठाता है
सिर्फ एक!
हम हैं कि हम नहीं,
हम हैं तो कहां हैं,
और नहीं हैं तो कहां गए,
हम हैं तो किसलिए?
और कहां गए तो कब !
जनाब!
हम थे भी कि हम थे ही नहीं !
चुत्स्पा हो गया हमारे साथ,
चुत्स्पा जानते हैं?
इसे समझाने के लिए हैदर एक छोटी सी कहानी कहता है -
एक बार एक बैंक में डकैती हुई. ढिचक्याऊं-ढिचक्याऊं,
डकैत ने कैशियर के सिर पर पिस्तौल रखी. बोला, पैसे दे वरना मौत ले.
कैशियर ने सारे पैसे झट से उठाके डकैत को दे दिए.
डकैत अगले काउन्टर पर गया -
एक्सक्यूज़ मी! एक फॉर्म दीजिए, मुझे एक अकाउंट खोलना है
ये होता है चुत्स्पा!
बेशर्म, गुस्ताख़ जैसे अफ्स्पा!'
आगे हैदर कहता है -
न लॉ है, न है ऑर्डर,
जिसका लॉ है, उसका ऑर्डर,
मिड ऑन ऑर्डर, लॉ एंड ऑर्डर,
इंडिया पाकिस्तान ने मिलकर
खेला हमसे बॉर्डर-बॉर्डर!
अब न हमें छोड़े हिंदुस्तान,
अब न हमें छोड़े पाकिस्तान,
अरे कोई तो हमसे भी पूछे,
कि हम क्या चाहते?
इस पार भी लेंगे आजादी,
उस पार भी लेंगे आजादी,
हम लेके रहेंगे आजादी,
आजादी! आजादी! आजादी!'
वैसे तो ये चंद लाइनें हैं. फिल्म का संवाद है जो आकर चला जाता है. लेकिन इसे मानवीय दृष्टि से देखें तो पाते हैं ये कश्मीर के पिछले 70 सालों का इतिहास है.
आर्टिकल 370 में बदलाव के समर्थक हैं तो विरोध करने वाली आवाजें भी हैं. इन सहमतियों-असहमतियों के बीच कश्मीर को लेकर एक व्यू यह भी है. जिसे विशाल भारद्वाज ने फिल्म में जबरदस्त तरीके से फिल्माया है. 1948 के जिस यूएन काउंसिल रेजोल्यूशन नं. 47 का जिक्र किया है उसे भी समझ लेते हैं. साल1948 में यूएन ने एक रेजोल्यूशन अडॉप्ट किया था. जिसका सार कुछ इस तरह था-
#पाकिस्तान को कश्मीर से अपने नागरिक वापस बुला लेने चाहिए.
#भारत को कश्मीर से अपनी आर्मी हटा लेनी चाहिए. और सिर्फ इतनी ही आर्मी रखे जितनी लॉ एंड आर्डर के लिए आवश्यक हो.
#कश्मीर में एक जनमत संग्रह कराना चाहिए. भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही इस रेजोल्यूशन को अलग अलग कारणों से नहीं माना. भारत का कहना था कि इस रेजोल्यूशन से पाकिस्तान को कश्मीर पर दावेदारी का मौका मिल रहा है जो कि भारत के अनुसार गलत है. वहीं पाकिस्तान कश्मीर में इन्डियन आर्मी की किसी भी प्रकार की उपस्थिति के समर्थन में नहीं था. जिस फिल्म हैदर' का ये डायलॉग है उसकी कहानी वर्ष 1995 के कश्मीर पर आधारित है. ये वो दौर था जब आम कश्मीरी एक तरफ आतंकियों के आतंक से परेशान था. तो दूसरी तरफ इंडियन आर्मी के भय से. बाद में जो हुआ या हो रहा है वह भविष्य के गर्भ में 'छुपा' हुआ इतिहास ही है.
दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रहे श्याम ने यह स्टोरी की है.
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