अमर उजाला में छपी ख़बर के मुताबिक़ बुलंदशहर के रहने वाले एक मुस्लिम दंपत्ति को दो अलग-अलग फिरकों के मौलवियों ने चकरघिन्नी बना के रख दिया है. वो गए तो थे समस्या का हल मांगने, लेकिन समस्या को दोबाला करवा के लौटे हैं. दरअसल ये पति-पत्नी का जोड़ा अलग-अलग फिरकों का अनुयायी है. पति बरेलवी विचारों का है और पत्नी देवबंदी ख़यालात की. ज़ाहिर है दोनों के धार्मिक विश्वासों में कुछ फर्क है.देवबंदी विचारधारा में मज़ारों पर चादर चढ़ाना, ताजिये में हिस्सा लेना जैसी चीज़ें मना है. जबकि बरेलवियों का इन सब कामों में अक़ीदा है. आपसी दूरियों का आलम ये है कि दूसरे फिरके के इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने तक से कतराते हैं लोग. बरेलवी अपने आप को अहले सुन्नत कहते हैं और देवबंदियों से परहेज़ ही करते हैं. कई मस्जिदों के बाहर ऐसे बोर्ड भी लगे हैं जहां देवबंदियों के आने पर सख्त मनाही की बात लिखी गई है.

बरेलवियों की एक मस्जिद के बाहर लिखा बोर्ड.
बहरहाल ये आपसी जंग जब फिरके से निकल कर परिवार में घुस आई, तो उसने अजीब ही गुल खिलाया.
शकील अहमद की शादी 2004 में सितारा बेग़म से हुई थी. कुछ अरसा तो सब ठीक-ठाक चला. फिर राज़ खुला कि सितारा बेग़म तो देवबंदी अक़ीदे की है और उन तमाम कामों को नापसंद करती है जिनकी देवबंदी फिरका इजाज़त नहीं देता. जैसे मजारों पर फूल चढ़ाना वगैरह-वगैरह. ज़ाहिर सी बात है इन चीज़ों को लेकर टकराव रहने लगा. सितारा बेग़म ने अपने पति को रोकने की कोशिशें की. गुज़रते वक़्त के साथ बात और खराब होने लगी और रोज़ाना झगड़े होने लगे. जब दोनों रोज़-रोज़ की चिकचिक से तंग आ गए, तो उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने-अपने फिरकों के उलेमाओं से राय ली जाए. बस यही से मामला बिगड़ गया.
बरेलवी उलेमाओं ने शकील अहमद को कहा कि उनका तो निकाह ही नाजायज़ है. उन्हें पहले अपनी बीवी को बरेलवी ख़यालात अपनाने पर राज़ी करना होगा. उसके बाद दोबारा निकाह करना होगा.ज़ाहिर सी बात है जोड़ने का हल सुझाने की बजाय तोड़ने की रेसिपी चिपकाने वाले इन फतवों से दोनों ही मियां-बीवी भौंचक्के रह गए. अब धर्मसंकट की सी स्थिति में इस जोड़े ने मानवाधिकार का दरवाज़ा खटखटाया है. दोनों फतवों की कॉपी उन्होंने मानवाधिकार आयोग में भेज दी है और उलेमाओं के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
उधर देवबंदी उलेमाओं ने अपने फतवे में सितारा बेग़म से कहा कि वो किसी भी तरह से अपने शौहर को बरेलवी ख़यालात से निकालकर देवबंदी ख़यालात में लाने की कोशिश करे. और इसके लिए अगर उससे जुदा भी होना पड़े तो पीछे न हटे.
दोनों मियां-बीवी अगर अपने-अपने विश्वास पर बने रहते और दूसरे को अपनी मान्यताओं के साथ जीने की आज़ादी देते तो ये नौबत ही नहीं आती. काश दोनों ने ही सरशार सैलानी का ये शेर सुना होता.
“चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है हम ही हम हैं तो क्या हम हैं, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो”
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