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तस्वीर: कंधे पर कलम लेकर चल पड़ा किसान हमारे हर सवाल का जवाब बो देता है!

गांव में किसान इन दिनों कौन सी कविता लिख रहे हैं?

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तस्वीरें PTI के 'खेत' से साभार.
लड़ने के लिए महामारी इकलौती दुश्मन नहीं है इंसानियत के सामने. इंसान के साथ ही पैदा हो गई थी भूख भी.

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इसलिए खेतों में एड़ियां गड़ाए किसान आने वाली भूख के बहीखाते में मिट्टी का हिसाब जमा करा रहा है. दो बैलों की जोड़ी दम साधे पानी भरे खेत में बार-बार बना रही हैं शून्य. जिससे उपजेगा सारा भारत.

क़ुदरत से गुना गणित का सारा भार उठा रखा है इन्हीं कंधों ने. इसीलिए हर बरस थोड़ा और झुकते जाते हैं.

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धरती के अंधियारे अनंत कुंए में बीज डालकर अनाज खींच लाने का फ़न अच्छी तरह जानता है किसान. अच्छा, कहीं किसानों के पुरखे तो नहीं शेषनाग. फन पर उठा रखी है धरती सारी.

घुटने भर पानी में बैठकर किसान ने लिख दी है खेतों में सबसे सुंदर हरी भरी कविता. मशीन की नाक में नकेल डाले बार-बार खेत की सियाही फेंटता किसान खेत की मिट्टी से धुलकर साफ़ सुथरा लग रहा है.

कंधे पर कलम लेकर चल पड़ा किसान हमारे हर सवाल का जवाब बो देता है चुपके से गीली मिट्टी में. पीठ पर लादकर हमारे चूल्हों का मुकद्दर, हमारी ख़ुशियों पर लगाता है दम भर चक्रवृद्धि ब्याज.

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दिन दूना, रात चौगुना बढ़ रहा है क़ारोबार हंसी का. समंदर के मुहाने पर लंगर डालते जहाज़ की तरह फेंक रहा है बीज के झुरमुट. लहलहाती हरी नदी पर अपने जहाज़ का कप्तान है किसान. दिमाग़ में बारिशों के नक़्शे और क़र्ज़ की दूरबीन से टापू नापता हुआ कप्तान.


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