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तस्वीर: आओ दुआ करें कि Covid-19 और बाढ़ मिलकर असम में तबाही न लाने पाएं

ये घर लौटें, या घर से दूर चले जाएं?

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असम की ये सारी तस्वीरें PTI की हैं.

एक तरफ़ कोरोना के बढ़ते केस. दूसरी तरफ़ बाढ़. ये दो आपदाएं भारत के छोटे से राज्य असम को तड़पाने के लिए कम न थीं. लेकिन फिर एक बाढ़ और है. लोगों की बाढ़. जो घर लौटना चाहती है. अलग-अलग राज्यों से अपने घर, अपने राज्य असम लौटना चाहती है. इनमें से आधे से ज़्यादा लोग आधे से ज़्यादा सफ़र तय कर चुके हैं. आप बताइए? क्या इनको घर से कहीं दूर चले जाना चाहिए, या जल्द से जल्द घर लौट आना चाहिए?

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कुछ दूरियां आंकड़ों में नहीं नापी जा सकतीं, जैसे आंकड़ों में नहीं नापा जा सकता दर्द. दालान के दरकने का छतों के बैठ जाने का या घर लौटने के रास्तों के खत्म हो जाने का. घर लौटने के रास्ते दो तरह से खत्म होते हैं, या तो चलकर नाप लिए जाएं रास्ते या रास्तों के मिटने का पता चल जाए. कभी-कभी जान लेना भी, जान देने सा लगता है. 'जरा सा चूक जाने का' भय जाता क्यों नहीं है? घर के रास्ते सबसे लंबे क्यों होते है? पहचानी हुई राहों पर सबसे ज़्यादा अड़ंगे क्यों होते हैं? घर तक की दौड़ सबसे क्यों लंबी होती है? और क्यों जीवन का बोझ, सबसे भारी होता है? जीवन का बोझ भी क्या आंकड़ों में नापा जा सकता है? 'प्रकृति पर किसका जोर चलता है', एक स्वार्थी पंक्ति है. उतनी ही स्वार्थी, जितने स्वार्थी होते हैं आंकड़े.
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