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'मेरे ही देश से मुझे निकाल दिया था...', खालिदा जिया के मरते ही तस्लीमा नसरीन ने ये मांग कर दी

Bangladesh की निर्वासित लेखिका Taslima Nasreen की प्रतिक्रिया इसलिए भी अहम है, क्योंकि Khaleda Zia ने ही साल 1994 में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था.

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तस्लीमा नसरीन (दाएं) ने खालिया जिया (बाएं) पर गंभीर आरोप लगाए हैं. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया नहीं रहीं. उनके निधन पर लेखिका तस्लीमा नसरीन की प्रतिक्रिया आई है. तस्लीमा की प्रतिक्रिया इसलिए भी अहम है, क्योंकि खालिया जिया ने ही साल 1994 में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था. जिसके बाद तस्लीमा को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा और अब वे भारत में रहती हैं. तस्लीमा ने जिया पर गंभीर आरोप लगाए हैं. 

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बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता तस्लीमा नसरीन ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा,

क्या उनकी मृत्यु के साथ ही उन किताबों पर लगे बैन नहीं हटेंगे जिन पर उन्होंने प्रतिबंध लगाए थे? उन्हें हट जाना चाहिए. उन्होंने 1993 में मेरी पुस्तक 'लज्जा' पर बैन लगाया. उन्होंने 2002 में 'उत्ताल हवा' पर प्रतिबंध लगाया. उन्होंने 2003 में 'का' पर बैन लगाया. उन्होंने 2004 में 'दोस डार्क डेज़' पर प्रतिबंध लगाया.

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तस्लीमा नसरीन ने आरोप लगाया कि अपने जीवनकाल में खालिदा ने उन किताबों पर लगे प्रतिबंधों को हटाकर अभिव्यक्ति की आजादी के लिए कोई आवाज़ नहीं उठाई. आगे लिखा,

1994 में, उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष, मानवतावादी, नारीवादी लेखिका के खिलाफ "धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने" का मामला दर्ज करके जिहादियों का साथ दिया. उन्होंने लेखिका के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया. और फिर उन्होंने अन्यायपूर्वक मुझे, यानी उस लेखिका को, मेरे ही देश से निष्कासित कर दिया.

नसरीन ने जिन किताबों का जिक्र किया, उनमें 'लज्जा' (उपन्यास) भी शामिल है. यह बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992) के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों पर आधारित है. 

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NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पुस्तक पर बांग्लादेश में पहली बार 1993 में बैन लगाया गया था, लेकिन बाद में अस्थायी रूप से प्रतिबंध हटा लिया गया था. हालांकि, लगातार विरोध प्रदर्शनों के बीच, किताब पर दूसरी बार बैन लगा दिया गया.

इसके बाद, मई 1994 में ही उनकी चार और किताबों पर बैन लगा दिया गया. यह सब जिया की BNP से जुड़े कट्टरपंथी समूहों से मिली जान से मारने की धमकियों के बाद हुआ. इसकी वजह से नसरीन को अपना देश छोड़ना पड़ा. 1994 में वे स्वीडन पहुंची और फिर एक दशक बाद भारत चली आईं. उनके पास स्वीडिश नागरिकता है.

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मंगलवार, 30 दिसंबर की सुबह 80 साल की उम्र में खालिया जिया का निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार चल रही थीं. उनका 23 नवंबर से ढाका के एवरकेयर अस्पताल में इलाज चल रहा था. बीते कुछ दिनों से उनकी हालत गंभीर हो गई थी. इसके बाद 11 दिसंबर से वह वेंटिलेटर सपोर्ट पर थीं. दो दिन पहले उनके पर्सनल डॉक्टर ने पुष्टि की थी कि उनकी हालत "बेहद गंभीर" है.

वीडियो: बांग्लादेश की पहली प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया की पूरी कहानी

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