सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को लेकर बने नए कानून पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है. शीतकालीन सत्र में इससे जुड़े विधेयक को मंजूरी मिली थी. बीती 9 दिसंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस पर मुहर लगा दी थी, जिसके बाद यह कानून लागू हो गया. कानून के हिसाब से, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में भारत के चीफ जस्टिस नहीं होंगे. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.
चुनाव आयुक्तों को लेकर बने कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई, किस आपत्ति पर कोर्ट पहुंचा मामला?
नए कानून के खिलाफ कांग्रेस नेता जया ठाकुर और नारायण राव मेशराम ने याचिका दाखिल की.

इस कानून के खिलाफ कांग्रेस नेता जया ठाकुर और नारायण राव मेशराम ने याचिका दाखिल की थी. 12 नवंबर को याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि वो दूसरे पक्ष को सुने बिना किसी तरह का रोक नहीं लगा सकते हैं.
कानून के खिलाफ याचिका क्यों?याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील विकास सिंह ने कोर्ट से कहा कि नया कानून शक्तियों के पृथक्करण (सेपरेशन ऑफ पावर) के सिद्धांत के खिलाफ है. विकास सिंह ने 2 मार्च, 2023 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमिटी की सलाह पर होगी.
हालांकि नए कानून के हिसाब से, इस कमिटी में चीफ जस्टिस को रखने का प्रावधान नहीं है. कानून का नाम है- मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) कानून, 2023. कानून के मुताबिक, इस चुनाव आयुक्तों को चुनने वाली सेलेक्शन कमिटी में प्रधानमंत्री अध्यक्ष होंगे. दो और सदस्य होंगे, एक प्रधानमंत्री की ओर से नॉमिनेटेड कैबिनेट मंत्री और दूसरा लोकसभा में विपक्ष का नेता. विपक्ष का नेता नहीं होने पर लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि इस कानून से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र व्यवस्था नहीं की गई. इसलिए ये निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन है. ये भी कहा गया कि नये कानून में CJI को बाहर रखना सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कमजोर करता है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विधायिका पलट नहीं सकती है. और शक्तियों का पृथक्करण संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का हिस्सा है.
याचिका पर कोर्ट ने जवाब दिया,
“बिना पक्ष सुने हम रोक नहीं लगा सकते हैं, लेकिन हम नोटिस जारी सकते हैं.”
इस मामले पर सुनवाई अब अप्रैल में होगी. यहां ये बताना जरूरी है कि 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ा कानून नहीं बनाती, तब तक प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी. ये फैसला 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने दिया था.
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कोर्ट ने अपने फैसले में बार-बार इस संस्था की निष्पक्षता का हवाला दिया था. हालांकि मौजूदा कानून में CJI को हटाकर कैबिनेट मंत्री को लाए जाने से आरोप लग रहे हैं कि मामला फिर से पुराना हो गया. वो ये कि इससे कमिटी में हमेशा सरकार की 2-1 से बहुमत बनी रहेगी.
संविधान के अनुच्छेद-324 में चुनाव आयोग का जिक्र है. कहा गया है कि संसद से लेकर राज्य विधानसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव कराने, निर्देश देने और चुनावी तैयारियों पर नियंत्रण का काम चुनाव आयोग का होगा. अनुच्छेद-324(2) में मुख्य चुनाव आयुक्त और कुछ चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संसद से कानून बनाने की बात कही गई. हालांकि अब तक इसे लेकर कोई कानून नहीं बन पाया था. अभी तक केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को मंजूरी देते आ रहे थे.
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