“अपने पति को लट्टू ना समझें!” ऐसी हिदायत दी है सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला को- जो अपने पति के साथ रहने को तैयार नहीं हैं.
'पति को लट्टू न समझने' की हिदायत सुप्रीम कोर्ट ने किसे दिया?
सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को हिदायत दी कि वो अपने पति को “लट्टू” न समझें और अहंकार छोड़कर बच्चों के भले के लिए सोचे. कोर्ट ने कहा कि झगड़ों से बच्चों पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए पति-पत्नी को आपसी समझ से हल निकालना चाहिए.


बात सिर्फ इतनी सी नहीं है. जो कपल है- उनके दो बच्चे हैं. सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि सालों से पति-पत्नी के बीच अनबन की वजह से बच्चों के दिमाग पर गहरा असर पड़ा है- चूंकि वो अपने पिता से भी दूर रहते हैं. इसी कॉन्टेक्स्ट में कोर्ट का कहना था कि एक कपल के ऊपर जब बच्चों की रेस्पोंसिबिलिटी पड़ जाती है, उसके बाद उन्हें बच्चों की ज़रूरतों को सबसे ऊपर रखना चाहिए. उन्हें अपने आपस के भेदभाव से परे- बच्चों के हित के बारे में सोचना चाहिए.
मामला ये था कि कपल की शादी साल 2018 में हुई. उसके बाद उनके बच्चे भी हुए. लेकिन शादी के कुछ समय बाद से ही उनके बीच अनबन शुरू हुई. झगड़े शुरू हुए. साथ रहने की इच्छा पत्नी के अंदर से मरने लगी. पत्नी ने ससुराल छोड़ना सही समझा. चली गयीं पटना जहां वो RBI में नौकरी कर रही हैं और अपने मां-पिता के साथ रहती हैं. उनके पति दिल्ली में रेलवे की नौकरी कर रहे हैं.
लड़की के घरवालों ने अपनी बेटी के पति पर केस कर दिया. केस में कहा कि पति अपने पत्नी से अलग ही रहना चाहता है- और इसी आधार पर शादी को निरस्त कर देना चाहिए. लड़की के घरवालों का मन था कि पति भी पटना आ कर पत्नी के घरवालों के साथ ही रहें. लेकिन पति ने इस बात पर हामी नहीं भरी. पति का कहना है कि चूंकि उनके बच्चे हैं तो ऐसे में ज़रूरी है कि वो साथ रहें, साथ बच्चों की देख-भाल करें. पति ने पत्नी के सुविधानुसार ये भी सुझाया कि वो पटना में एक अलग घर ले कर साथ रह सकते हैं लेकिन पत्नी ने इससे भी इंकार कर दिया.
पत्नी ससुराल में अपने सास-ससुर के साथ नहीं रहना चाहती थी. लेकिन पति इसके लिए राज़ी नहीं था. उसका कहना था कि अपने मां-पिता की देखभाल उसके अलावा कौन करेगा?
इस पर भी बेंच में बैठे जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर. महादेवन ने अपनी राय रखी- कोर्ट ने कहा कि पति के माता-पिता की स्थिति बहुत मुश्किल है, क्योंकि बहू उनके साथ नहीं रहना चाहती और इस वजह से उनसे अपना ही घर छोड़ने को कहा जा रहा है. जो ग़लत है.
जजों ने कहा- “सोचिए, माता-पिता को अपना घर छोड़ना पड़ रहा है क्योंकि बहू उनके साथ नहीं रहना चाहती.”
बस कोर्ट ने इसी सन्दर्भ में कपल को सलाह दी कि वो फिर से बातचीत यानी मीडिएशन शुरू करें ताकि दोनों आपसी समझ से कोई हल निकाल सकें, और बच्चे के भले को ध्यान में रखें. और अंत में वो बात कही गयी जो अब सोशल मीडिया पर वायरल है. कोर्ट ने पत्नी को सीधे-सीधे हिदायत दी कि वो अपने पति को लट्टू न समझें. और शादी जैसे रिश्ते में अपने ईगो को- अहं को किनारे कर दें.
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