एक था बुश!
बुश अब मर चुका है. जब तक जिया, मुंबई के ब्रीच कैंडी इलाके का चहेता बना रहा. आखिर क्या था बुश के नाम के पीछे का राज?
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यूं तो इस देश में लाखों लोग फुटपाथ पर रहते हैं. पर हम आपको मुम्बई की भूलाभाई सड़क के किनारे रहने वाले एक कुत्ते की कहानी सुना रहे हैं. जिसका नाम था जॉर्ज डब्लू बुश. बुश सड़कों पर घूमने वाला आवारा कुत्ता था. कद में बाकी कुत्तों से छोटा एक सिंपल सड़कछाप कुत्ता. पर भारत का अमेरिका से बदला. बुश के नाम के पीछे बड़ी रोचक कहानी है. दरअसल 2001 में अमेरिका के 43वें राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश ने अपनी बिल्ली का नाम 'इंडिया' रखा था. जिसका भारत में इसका पुरजोर विरोध हुआ. इसके बाद भारत में 'कांस्युलेट जनरल ऑफ़ द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका' माने अमेरिकी एंबेसी के मुंबई ऑफिस के बाहर रहने वाले कुत्ते का नाम एंबेसी की सुरक्षा में तैनात एक पुलिस अधिकारी ने जॉर्ज डब्लू बुश रख दिया. बुश उस इलाके का सबसे चहेता कुत्ता था. उस वक्त जब बीएमसी की गाड़ियां आवारा कुत्तों को पकड़ने आया करती थीं. तो एंबेसी की सिक्योरिटी में तैनात पुलिस वाले बुश को अपने सैंडबैग वाले बंकर में छिपा लेते थे. कारण था कि उस वक्त बीएमसी वाले कुत्तों को लोहे के मोटे-मोटे डंडों से मार के पकड़ा करता थे और उन्ही डंडों के मदद से उनकी गर्दन झटका मारकर तोड़ देते थे. यही उन्हें मारने का तरीका था. कभी-कभी कुत्तों को बिजली के झटके देकर भी मारा जाता था. अभी कुछ हफ्तों पहले बुश की मौत हो गई. मौत के वक्त बुश 18 साल का था. बुश के साथ वो सिक्योरिटी वाले अपना खाना भी साझा करते थे. लोगों का इसके बाद से आवारा कुत्तों के प्रति नजरिया बदला है. कई लोग ऐसे कुत्तों को अपने घर भी ले गए. जिनके घर में कुत्तों को रखने की जगह नहीं है वो भी मदद करते हैं. कोई उन्हें कम्बल दे जाता है कि उन्हें ठण्ड न लगे. कोई पानी भरकर रख जाता है. 2015 में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी आया जिसमे कहा गया है कि उन कुत्तों को छोड़कर जो कि बहुत बुरी तरह से बीमार हैं या जो बुरी तरह से चोटिल हैं उन्हें छोड़कर किसी भी कुत्ते को मारा नहीं जा सकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इससे जानवरों के प्रति हिंसा में बढ़ावा होता है. जिंदगी के आखिरी दिनों में बुश की सेवा करने वाले एक 'एनजीओ वेलफेयर ऑफ स्ट्रे डॉग्स' ने बुश की मौत के बाद उसकी तस्वीर को अपने फेसबुक पेज पर लगाया जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया और जिसपर बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी यादें ताजा कीं. कई लोगों ने बुश की मौत पर उससे जुड़ी हुई यादें फेसबुक पर साझा कीं. रोचक ये है कि कलकत्ता की उस बिल्ली की मौत भी 18 साल में ही हुई थी जिसका नाम बुश की बिल्ली का नाम 'इंडिया' रखने के बाद बुश रखा गया था. लोगों का इसके बाद से आवारा कुत्तों के प्रति नजरिया बदला है. जिनके घर में कुत्तों को रखने की जगह नहीं है वो भी इसमें सहयोग देते हैं.
ये कुत्ते भी रहे हैं फेमस-
इसी तरह एक कुत्ता था जंजीर. जंजीर आवारा नहीं था. वो पुलिसिया कुत्ता था. धांसू जॉब प्रोफाइल थी उसकी. 8 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई. 1993 के दौरान जंजीर ने मुंबई के मुम्बारा और थाणे इलाकों में धमाके रोकने में बड़ा रोल निभाया था. उसने पहले एक स्कूटर बम को पहचाना जिसमें आरडीएक्स और जिलेटिन की छड़ें थीं. फिर उसने सिद्धिविनायक मंदिर के बाहर एक सूटकेस में 200 ग्रेनेड, पांच 9 एमएम की पिस्टल और 3 ऐके 56 राइफल पकड़वाकर सैकड़ों लोगों की जान बचाई. पिछले महीने ऐसे ही एक कुत्ते मैक्स ने सुर्खियाँ बटोरीं थीं- 26/11 मुंबई हमलों के दौरान ताज होटल के बाहर 8 किलो आरडीएक्स मैक्स के कारण ही पकड़ी गई थी. 2011 के झावेरी बाजार विस्फोट के दौरान भी इसने बड़ी मात्रा में मैक्स ने एक्स्प्लोसिव पकड़ने में सहायता की थी. इन कुत्तों की मौत के बाद उन्हें मुंबई के अखबारों की पहले पेज की सुर्ख़ियों में जगह मिली.
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