'जम्हूरीयद्दा सोमालीलैंड' सोमालीलैंड का आधिकारिक नाम है, जिसे पिछले 35 सालों से ग्लोबल जमात ने एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता नहीं दी है. इसके पास अपनी करेंसी है, सेना और अपना पासपोर्ट भी है. यह अफ्रीकी महाद्वीप में सोमालिया का एक हिस्सा है और खुद को एक आजाद देश बताता है लेकिन शुक्रवार, 26 दिसंबर 2025 को इजरायल दुनिया का वो पहला देश बना है, जिसने रिपब्लिक ऑफ सोमालीलैंड को देश के तौर पर मान्यता दी है.
सोमालीलैंडः जिसे सारी दुनिया 'देश' नहीं मानती, उसे इजरायल ने मान्यता देकर बवाल मचा दिया
Somaliland अपने स्कूल-कॉलेज और हॉस्पिटल और सरकारी दफ्तर चलाता है. यहां के लोगों के लिए सरकार का मतलब सोमालीलैंड पर काबिज सरकार से ही है. एजुकेशन, मेडिकल, विदेशी मामले, सुरक्षा, टैक्स सिस्टम सबकुछ सोमालीलैंड सरकार के हाथों में है.


बाकी दुनिया केवल सोमालिया को ही देश मानती है, लेकिन इजरायल ने लीक से हटकर सोमालीलैंड को मान्यता देने का फैसला किया. यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया जब सोमिलिया को कुछ दिन बाद जनवरी 2026 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अध्यक्षता मिलनी है.
दुनिया भर के देशों ने इजरायल के इस कदम की आलोचना की है. सोमालिया ने इजरायल के इस कदम को 'आक्रामकता' और अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया है. सोमालिया ने मांग की है कि इजरायल इस फैसले को वापस ले. इस मान्यता को चुनौती देने के लिए सोमालिया ने राजनयिक कोशिशें भी तेज करने का संकल्प लिया है. संयुक्त राष्ट्र (UN) और अफ्रीकी यूनियन (AU) उसके समर्थन में भी हैं. वहीं, 20 से ज्यादा देशों, खासकर मिडिल-ईस्ट और अफ्रीकी देशों ने भी इस मामले में सोमालिया का साथ दिया है और इजरायल का विरोध किया है.
इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के साथ मिलकर इन देशों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है, जिसमें इजरायल के सोमालीलैंड को मान्यता दिए जाने के कदम को एक खतरनाक मिसाल बताते हुए खारिज किया गया है. उन्होंने इसे ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ और इस बड़े क्षेत्र में सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताया. ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ यानी 'अफ्रीका की सींग' पूर्वी अफ्रीका का वो इलाका है, जिसमें जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया और सोमालिया जैसे देश आते हैं.
सोमालीलैंड को इजरायल की मान्यता पर सऊदी अरब, मिस्र, कतर, कुवैत, इराक और जॉर्डन सहित अरब देशों का कहना है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है.

सोमालीलैंड को भले दुनिया ने मान्यता न दी हो लेकिन इसके पास अपना झंडा, करेंसी (सोमालीलैंड शिल्लिंग), पासपोर्ट, पुलिस, आर्मी सब है. सोमालीलैंड अपने स्कूल-कॉलेज और हॉस्पिटल और सरकारी दफ्तर चलाता है. यहां के लोगों के लिए सरकार का मतलब सोमालीलैंड पर काबिज सरकार से ही है. एजुकेशन, मेडिकल, विदेशी मामले, सुरक्षा, टैक्स सिस्टम सबकुछ सोमालीलैंड सरकार के हाथों में है.

अदन की खाड़ी में सोमालीलैंड का सामरिक महत्व है. सोमालिया के पूर्व तानाशाह जनरल सियाद बर्रे के खिलाफ आजादी की लड़ाई के बाद 1991 में सोमालीलैंड का जन्म हुआ था. 18 मई 1991 में सोमालीलैंड ने सोमालिया से आजाद होने की घोषणा की थी. राजधानी हरगीसा में हर साल 18 मई को आजादी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. somalilandmfa.com की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमालीलैंड ने सोमालिया से अलग होने का फैसला 27 अप्रैल से 15 मई 1991 तक बुराओ में हुई कबीलों के बुजुर्गों की ग्रैंड कॉन्फ्रेंस में लिया था.

बाद में सोमालीलैंड की जनता ने जनमत संग्रह के बाद इसका समर्थन किया, जिसमें सोमालीलैंड को सोमालिया से अलग एक स्वतंत्र संप्रभु देश के तौर पर फिर से स्थापित करने की पुष्टि हुई. 97.1 फीसदी लोगों ने अलग सोमालीलैंड देश और उसकी संप्रभुता के पक्ष में वोट दिया था.
सोमालीलैंड ने एक बहुत ही अनोखी चीज दुनिया को दिखाई है. बिना किसी अंतरराष्ट्रीय दखल के खुद से युद्ध के बाद पुनर्निर्माण किया. इसके नतीजे में सोमालीलैंड में शांति, लोकतंत्र और अच्छा शासन स्थापित हुआ. यहां तक कि दावा किया जाता है कि खुद सोमालिया में इतनी शांति नहीं है, जितनी सोमालीलैंड में है.
2003 से सोमालीलैंड में कई लोकतांत्रिक चुनाव हुए, जिसके चलते सत्ता का सुचारू रूप से हस्तांतरण हुआ है. यह राजनीतिक परिपक्वता का एक ऐसा स्तर दिखाता है, जो कई मान्यता प्राप्त देशों में भी नहीं है.
लगभग 60 लाख की आबादी वाला यह स्वघोषित गणराज्य सोमालिया, इथियोपिया और मिस्र से जुड़े कई क्षेत्रीय विवादों का केंद्र रहा है. BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल जमीन से घिरे इथियोपिया और सोमालीलैंड के बीच एक बंदरगाह और सैन्य अड्डे के लिए समुद्र तट के एक हिस्से को पट्टे पर देने के समझौते से सोमालिया नाराज हो गया था.
1980 के दशक के आखिर में गृहयुद्ध के बाद हरगीसा शहर का ज्यादातर हिस्सा बर्बाद हो गया था. शहर की आबादी बिखर गई थी. कई लोग पड़ोसी इथियोपिया के शरणार्थी कैंपों में चले गए थे. सोमालीलैंड ने बेहद मुश्किल हालात और 'असाधारण अकेलेपन' में खुद को फिर से बनाया. अलजजीरा की रिपोर्ट में राजनीतिक विश्लेषक मैथ्यू ब्राइडन के हवाले से यह सब बताया गया, जो सोमालीलैंड के बनने के बाद से ही उससे जुड़े हुए हैं.
अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होगा सोमालीलैंड
मान्यता देने पर इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि इजरायल कृषि, स्वास्थ्य, टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सोमालीलैंड के साथ सहयोग को गहरा करने के लिए तेजी से कदम उठाएगा. उन्होंने सोमालीलैंड के राष्ट्रपति अब्दिरहमान मोहम्मद अब्दुल्लाही को बधाई दी. नेतन्याहू ने उनके नेतृत्व की तारीफ की और उन्हें इजरायल आने का न्योता दिया.
नेतन्याहू ने कहा कि यह मान्यता 'अब्राहम अकॉर्ड की भावना' के तहत दी गई है, जो अमेरिका की मध्यस्थता वाले समझौते हैं. यह समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान शुरू किया गया था, जिसने 2020 से शुरू होकर कई अरब देशों के साथ इजरायल के संबंधों को सामान्य बनाया.
इजरायली बयान के अनुसार, नेतन्याहू, विदेश मंत्री गिदोन सार और अब्दुल्लाही ने आपसी मान्यता की एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किए. अब्दुल्लाही ने कहा कि सोमालीलैंड अब्राहम अकॉर्ड में शामिल होगा. उन्होंने इस कदम को क्षेत्रीय और वैश्विक शांति की दिशा में एक कदम बताया.
हालांकि, अमेरिका ने साफ किया है कि वो इजरायल के रास्ते पर नहीं चलेगा. अमेरिका ने सोमालिया को ही सपोर्ट देने की बात कही है. NDTV की खबर के अनुसार, सोमालीलैंड को मान्यता देने के बारे में पूछे जाने पर ट्रंप ने कहा,
"नहीं... क्या कोई जानता है कि सोमालीलैंड असल में क्या है?"
वहीं, इजरायल और सोमालीलैंड फुल डिप्लोमैटिक रिलेशन बना रहे हैं. इसके तहत दोनों एक-दूसरे के यहां एंबेसी खोलेंगे और अपने-अपने राजदूत तैनात करेंगे.
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