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"मोदी सरकार का विरोध करके मूर्ख बन गया", शशि थरूर की बात पर कांग्रेस के अंदर बहुत हल्ला होगा

कांग्रेस के सीनियर नेता और सांसद ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत के रुख की आलोचना करने वाले वह 'बेवकूफ' बन गए. उन्होंने कहा कि भारत के पास ऐसा प्रधानमंत्री है जो दो हफ्तों के अंतराल में रूस और यूक्रेन दोनों के ही राष्ट्रपति को गले लगा सकता है.

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शशि थरूर

कांग्रेस नेता शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने कहा है कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) में भारत के रुख का विरोध करके ‘बेवकूफ’ बन गए. उन्होंने कहा कि भारत ने जो नीति अपनाई थी, उसके कारण वह अब ऐसी स्थिति में है जहां स्थायी शांति के लिए बदलाव लाया जा सकता है. कांग्रेस के सीनियर नेता  ने यूक्रेन पर रूस के हमले के समय भारत के रुख की आलोचना की थी. उन्होंने भारत सरकार से रूस की निंदा करने की मांग की थी. तब थरूर ने कहा था कि भारत के रुख से यूक्रेन और उसके समर्थक निराश होंगे.

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‘रायसीना डायलॉग’ (Raisina Dialogue 2025) में संवाद सत्र के दौरान शशि थरूर ने कहा, ‘’मैं अभी भी अपनी शर्मिंदगी कम करने की कोशिश कर रहा हूं, क्योंकि संसदीय बहस में मैं एकमात्र व्यक्ति हूं, जिसने फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारतीय रुख की आलोचना की थी." कांग्रेस सांसद ने आगे कहा कि सरकार के खिलाफ उनकी आलोचना इस आधार पर थी कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन हुआ है. यूक्रेन की संप्रभुता पर हमला किया गया है और भारत हमेशा से अंतरराष्ट्रीय विवादों को निपटाने के लिए बल प्रयोग को नकारता रहा है.

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लेकिन अब शशि थरूर का कहना है,

“इन सभी सिद्धांतों का एक पक्ष (रूस) ने उल्लंघन किया गया था. हमें इसकी निंदा करनी चाहिए थी. अब 3 साल बाद ऐसा लगता है कि मैं ही ‘मूर्ख’ बन गया हूं. लेकिन उस समय भारतीय पॉलिसी का मतलब था कि भारत के पास वास्तव में एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो यूक्रेन के राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति दोनों को दो हफ्ते के अंतराल पर गले लगा सकता है. वह दोनों जगहों पर स्वीकार किया जा सकता है. भारत अब ऐसी स्थिति में है, जहां वह स्थायी शांति के लिए बदलाव ला सकता है. बहुत कम देश ही ऐसा कर पाएंगे.”

थरूर ने आगे कहा, “मैं विपक्ष में हूं. भारत सरकार की ओर से बोलने का अधिकार नहीं रखता, लेकिन मेरा मानना है कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच कोई सहमति से शांति समझौता होता है, तो भारत वहां पर शांति सैनिक (Peacekeepers) भेजने पर विचार कर सकता है. कई कारक हैं, जिससे भारत को इस भूमिका में देखा जा सकता है. इनमें से एक प्रमुख है यूरोप से भारत की भौगोलिक दूरी. यूरोपीय देशों की तरह भारत इस संघर्ष में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं है. इससे वह तटस्थ और विश्वसनीय मध्यस्थ बन सकता है.”

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कांग्रेस सांसद का मानना है कि रूस ने स्पष्ट कर दिया है कि वह नाटो (NATO) देशों से आने वाले शांति सैनिकों को स्वीकार नहीं करेगा. ऐसे में शांति सैनिकों की तैनाती के लिए यूरोप के बाहर के देशों की ओर देखना होगा. उन्होंने 2003 में इराक में भारतीय सैनिक भेजने के प्रस्ताव की याद दिलाई. तब भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर फैसला लिया था कि किसी भी परिस्थिति में भारतीय सेना को अमेरिकी आक्रमण के बाद इराक नहीं भेजा जाएगा.

थरूर ने कहा, "हालांकि यूक्रेन के मामले में ऐसी स्थिति नहीं दिख रही. अगर सभी पक्षों के बीच सहमति बनती है तो भारत इस पर विचार कर सकता है." कांग्रेस सांसद ने भारत के 49 से अधिक शांति मिशनों में भागीदारी का हवाला देते हुए कहा कि भारत का वैश्विक स्थिरता में योगदान पहले से ही साबित है.

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