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दी केरला स्टोरी के पीछे का असली सच क्या है?

केरल के मुख्यमंत्री का कहना है कि फ़िल्म बनाने वाले राज्य में धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दे रहे हैं, संघ परिवार के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि इस फ़िल्म में आतंकी साज़िश का सच दिखाया गया है.

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दी केरला स्टोरी पर मचा है हंगामा.

आज एक फ़िल्म रिलीज़ हुई है - द केरला स्टोरी. पिछले साल नवंबर में फ़िल्म का टीज़र आया था और तभी से इस पर बवाल थमा नहीं है. अप्रैल में ट्रेलर आया, तो बवाल का पारा फिर चढ़ा. इंडस्ट्री से लेकर जनप्रतिनिधियों तक, सबकी राय बंटी हुई है. केरला के मुख्यमंत्री का कहना है कि फ़िल्म बनाने वाले राज्य में धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दे रहे हैं, संघ परिवार के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि इस फ़िल्म में आतंकी साज़िश का सच दिखाया गया है.
हाई कोर्ट में फ़िल्म को रोकने की अर्ज़ी लगी, तो अदालत ने कहा कि फ़िल्म नहीं रुकेगी. लेकिन साथ में मेकर्स को ये निर्देश भी दिए कि वो अपने तथ्य दुरुस्त करें.

पहले तो फ़िल्म का सब्जेक्ट मैटर क्या है, वो समझिए. फ़िल्म के टीज़र से ही अंदाज़ा लग जाता है कि मेकर्स कहना क्या चाहते हैं. एक मिनट लंबे टीज़र में बुर्का पहने एक लड़की दिखती. उसका नाम है शालिनी उन्नीकृष्णन. वो कहती है कि नर्स बनकर इंसानियत के लिए कुछ करना चाहती थी, लेकिन अब वो फातिमा बा है. ISIS की एक आतंकवादी. वो कहती है कि अब वो अफ़ग़ानिस्तान की जेल में है और वो यहां अकेली नहीं है. उसके मुताबिक़, 32,000 लड़कियों का धर्मांतरण कर उन्हें सीरिया और यमन जैसे देशों में भेजा गया है. फ़िल्म यही है: उस लड़की की जर्नी. लड़की का किरदार निभाया है एक्ट्रेस अदा शर्मा ने. फ़िल्म के डायरेक्टर हैं सुदीप्तो सेन. प्रोड्यूसर - विपुल अमृतलाल शाह. मेकर्स का दावा है कि ये फ़िल्म वास्तविक घटनाओं पर आधारित है. सुदिप्तो ने ट्वीट भी किया था -- "पिछले पांच सालों से शालिनी, गीतांजलि, निमाह और आसिफ़ा ने मेरी ज़िंदगी पर छाप छोड़ी है. मुझे उनकी कहानी बताने पर मजबूर किया है." ये फ़िल्म के किरदारों के नाम हैं.

फ़िल्म के पब्लिक डोमेन में आते ही इस पर भरपूर पॉलिटिकल रिऐक्शन्स आए. सांसद शशि थरूर, केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन, केरल के गवर्नर आरिफ़ मुहम्मद ख़ान और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बोले. 

असल में कलह का सबसे बड़ा कारण है एक संख्या. फ़िल्म का शुरूआती दावा था कि 32 हज़ार लड़कियों का धर्मांतरण किया गया. इसके पीछे सबूत क्या? सुदीप्तो कहते हैं कि, “साल 2010 में केरल के तत्कालीन CM ओमन चांडी ने विधानसभा के सामने एक रिपोर्ट रखी थी. उन्होंने कहा था कि हर साल लगभग 2 हज़ार 800 से 3 हज़ार 200 लड़कियां इस्लाम धर्म अपना रही हैं. बस इससे अगले 10 सालों का हिसाब लगा लें. ये संख्या 30 से 32 हज़ार होती है.”

हालांकि, जब सुदिप्तो के कहे की तफ़्तीश की गई तो मालूम हुआ कि ओमन चांडी ने 2010 में नहीं, बल्कि 25 जून 2012 को कोर्ट में इस मसले पर बयान दिया था. और, सुदिप्तो के दावे से अलग ओमन चांडी ने अपने बयान में ये नहीं बोला था कि केरल में हर साल ढाई हज़ार लड़कियों का इस्लाम में धर्म परिवर्तन हुआ. उन्होंने जो आंकड़ा दिया, वो क़रीब साढ़े छह साल के दरमियां का था. एक बात ये भी ध्यान देने वाली है कि महिलाओं के ISIS में शामिल होने पर ओमन चांडी ने कुछ नहीं बोला था.

ये सच है कि केरल से कुछ लोगों के ISIS में शामिल होने की बात सामने आई थी और इनमें कुछ महिलाएं भी थीं. यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट 'Country Reports on Terrorism 2020: India' के मुताबिक़, नवंबर 2020 तक भारत से 66 लोग ISIS में शामिल हुए थे. अमेरिकी विदेश विभाग आतंकवाद के ख़ातमे के लिए ये रिकॉर्ड तैयार करता है, जो अलग-अलग देश की एजेंसियों और आंकड़ों के आधार पर होता है. इस तथ्य में एक ज़रूरी आंकड़ा और है. 2019 में प्रकाशित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट. इसमें कहा गया है कि भारत की ज़्यादातर IS भर्तियां केरल से हुई हैं. लगभग 30%.

2017 में कथित लव जिहाद को लेकर हदिया मामले पर खूब विवाद हुआ था. NIA जांच तक हुई थी. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इसी नतीजे पर पहुंची थी कि हदिया ने अपनी पसंद से शादी की, इस्लाम अपनाया. जिस लव जिहाद पैटर्न का दावा किया जा रहा था, वो न्यायालय में स्थापित नहीं हुआ. इसीलिए केरला स्टोरी जिस कथित सच को उद्घाटित करने का दावा करती है, उसके स्केल पर सवाल उठाए गए. कई संगठनों और आम मलयाली लोगों ने निर्माताओं को चुनौती दी कि अगर वो अपने दावे को साबित कर दें, तो भारी भरकम रकम मिलेगी. किसी ने 1 करोड़ का इनाम रखा, किसी ने 10 लाख तो किसी ने 11 लाख.

जब दबाव बढ़ने लगा, तो केरला स्टोरी के निर्माता बैकफुट पर आए. 26 अप्रैल को ट्रेलर आया और 2 मई को ट्रेलर के यूट्यूब डिस्क्रिप्शन से 32 हज़ार वाला आंकड़ा हटा कर तीन कर दिया गया. माने संख्या में हज़ार गुना से ज़्यादा की गिरावट हुई. बदले डिस्क्रिप्शन में लिखा गया --  The Kerala Story केरल के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाली तीन युवा लड़कियों की सच्ची कहानियों का संकलन है... सच्चाई हमें आज़ादी दिलाएगी! हजारों मासूम महिलाओं का व्यवस्थित तरीके से धर्म परिवर्तन करवाया गया, कट्टरपंथी बनाया गया और उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी गई.

मामला केरल हाई कोर्ट पहुंचा, तो मेकर्स ने ये आश्वासन भी दिया है कि वो टीज़र सारे सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म से हटा लेंगे क्योंकि टीज़र में 32 हज़ार वाला दावा था. हाई कोर्ट की बात आ गई, तो वहां की ख़बर भी जान लीजिए. केरल स्टोरी की रिलीज़ पर रोक लगाने के लिए एक याचिका दायर की गई थी. दरअसल, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने फ़िल्म को 'ए' सर्टिफ़िकेट दिया था. माने 18 साल से कम के लोग ये फिल्म नहीं देख सकते. याचिकाकर्ताओं ने फ़िल्म के A सर्टिफ़िकेट को अवैध घोषित करने की मांग की थी. A अंतिम सर्टिफ़िकेशन है. अगर वो भी निरस्त हो जाए या अवैध क़रार दिया जाए, तो फ़िल्म रिलीज़ नहीं हो सकती. इसके बाद CBFC ने काउंटर-एफ़ेडेविट दायर की. लिखा कि फ़िल्म असलियत की सटीकता का दावा नहीं करती. सभी घटनाओं को इतिहासकारों, विशेषज्ञों और अलग-अलग रिपोर्टर्स ने वेरिफ़ाई किया है. फ़िल्म काल्पनिक है और घटनाओं का एक नाटकीय संस्करण है.

लेकिन नाटकीय संस्करण वाले डिस्क्लेमर के बावजूद ''छिपा हुआ सच'' बाहर लाने का दावा कहीं न कहीं बना रहा. इसीलिए केरल हाईकोर्ट में लंबी सुनवाई हुई. जस्टिस एन नागरेश और जस्टिस मोहम्मद नियास सी पी  की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि फ़िल्म ISIS के बारे में है. इसमें इस्लाम या मुसलमानों के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं है. सिर्फ फ़िल्म दिखाने से कुछ नहीं होगा. फिल्म का टीजर नवंबर में रिलीज हुआ था. क्या हुआ? यह कहने में क्या ग़लत है कि अल्लाह ही एकमात्र ईश्वर है? देश नागरिक को ये अधिकार देता है कि वो अपने धर्म और ईश्वर को माने. हिन्दी और तेलगु में ऐसी फिल्में है, जिनमें हिंदू संन्यासियों को तस्कर या बलात्कारी के रूप में दिखाया गया है. लेकिन इसका कोई विपरीत असर नहीं दिखता."

जब याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अभी तक किसी भी एजेंसी को केरल में 'लव जिहाद' को एक भी केस नहीं मिला है, तो इस पर बेंच ने पलट कर कहा कि होते तो भूत और वैम्पायर भी नहीं हैं, लेकिन फ़िल्मों में तो दिखते हैं न? आखिर में कोर्ट ने फिल्म पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. और निर्माताओं के उस वादे को रिकॉर्ड पर लिया कि वो उस सामग्री को हटाएंगे, जहां 32 हज़ार वाला दावा किया गया था.

फ़िल्म की रिलीज़ के ख़िलाफ़ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में भी दायर की गई थीं, मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.  कोर्ट ने कहा,
"हेट स्पीच की कई किस्में हैं. इस फिल्म को सर्टिफ़िकेशन मिला है और बोर्ड ने मंज़ूरी दी है. ऐसा नहीं है कि कोई व्यक्ति पोडियम पर आकर अनियंत्रित भड़काऊ भाषण दे रहा है. अगर आप फ़िल्म की रिलीज़ को चुनौती देना चाहते हैं, तो आपको सही तरीक़ों से सर्टिफ़िकेशन को चुनौती देनी चाहिए."
CJI ने ख़ुद कहा कि फ़िल्म के विरोध करने वालों को ऐक्टर्स, प्रोड्यूसर और क्रू के बारे में सोचना चाहिए... सबने मेहनत की है. ये बाज़ार तय करेगा कि फ़िल्म कैसी है.

फ़िल्म के आधिकारिक रिलीज़ के 3 दिन पहले इस फ़िल्म को JNU के कम्यूनिटी सेंटर में प्रीमियर किया गया था. हमारे साथी सिद्धांत ने ये फ़िल्म देखी है. उनका कहना है -

"ये फ़िल्म एक वक़्त पर सच्चाई दिखाने का दावा करती है. कहती है कि ये हिन्दू महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की कहानी कहती है, लेकिन आपको असल दिक़्क़त तब समझ में आती है, जब ये फ़िल्म एक मुसलमानों के प्रति घृणा वाले कॉन्टेंट में तब्दील होती दिखती है. फ़िल्म में एक भी मुस्लिम किरदार ऐसा नहीं है, जो सहृदय हो. इस फ़िल्म का हरेक मुस्लिम किरदार किसी न किसी साज़िश में शामिल है. तो ये फ़िल्म एक सवाल छोड़ती है. क्या इस देश का या इस देश के एक भूभाग का हरेक मुस्लिम एक साज़िश में शामिल है?"

आप पूरा रिव्यू लल्लनटॉप और लल्लनटॉप सिनेमा पर देख सकते हैं. बाक़ी और क्या देख सकते हैं? कुछ भी. आज़ाद देश है. केरला स्टोरी भी देख सकते हैं और सुधीर मिश्रा की फ़िल्म "अफ़वाह" भी, जो आज ही रिलीज़ हुई है. अफ़वाह.. एक ऐसा मारक हथियार, जिसकी चपेट में आने के बाद मानसिक क्षति से लेकर शारीरिक हिंसा तक, कुछ भी मुमकिन है. अफवाहों के चलते मासूमों की जान चली जाने के सैकड़ों उदाहरण हैं हमारे पास. बदलते दौर में अफ़वाह ने तरक्की कर ली है. टेक्नोलॉजी ने अफवाह के इम्पैक्ट का दायरा बढ़ा दिया है.

अब बात करते हैं मणिपुर की. सूबे में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. घाटी के आसपास के पहाड़ी जिलों से भी उग्रवादियों और सुरक्षा बलों के बीच फायरिंग की खबर आई. न्यूज एजेंसी PTI ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया कि जातीय हिंसा में शामिल गुटों और सुरक्षा बलों के बीच चुराचांदपुर, बिष्णुपुर, और इंफाल ईस्ट जिलों में गोली बारी हुई. हालांकि इसमें जान माल का क्या नुकसान हुआ, इसे लेकर कोई अपडेट नहीं आया है. पहाड़ी इलाकों के अलावा इम्फाल शहर से भी आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आ रही हैं. बीते दिन हिंसक भीड़ ने कई नेताओं के घरों में तोड़फोड़ की थी और आग लगा दी थी. अब खबर आई है कि हिंसक भीड़ के हमले में बीजेपी विधायक वुंगजागिन वाल्टे गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. वाल्टे कुकी जनजाति से आते हैं. उन पर हमलाहमला उस वक्त हुआ जब वे मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से मुलाकात कर राज्य सचिवालय से वापस लौट रहे थे. तीन बार के विधायक वाल्टे राजधानी इम्फाल में अपने आवास के रास्ते में थे कि उनके वाहन पर उपद्रवियों ने हमला कर दिया. फिलहाल वे अस्पताल में भर्ती हैं लेकिन उनकी हालत गंभीर है.

यहां आपको बता दें कि राजधानी इम्फाल, मेइती बाहुल्य है. मेइती समुदाय ST स्टेटस यानी अनुसूचित जनजाति की कैटेगरी में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है. और बीते 14 अप्रैल को मणिपुर हाईकोर्ट ने मेइती समुदाय के पक्ष में फैसला दिया था. और राज्य सरकार को मेइती समुदाय के लिए ST स्टेटस की सिफारिश करने का आदेश दिया था. जिसके बाद राज्य की कुकी जनजाति, नागा जनजाति और 34 अन्य जनजातियों की ओर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था. क्यों?

क्योंकि मेइती राज्य में बहुसंख्यक हैं. प्रभावी हैं. राज्य की 60 में से 40 सीटों पर दबदबा रखते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में इनकी आबादी 53 फीसद है लेकिन जमीन है केवल 10 फीसद. जो राजधानी इम्फाल और आसपास के इलाकों में फैले हुए हैं. जबकि राज्य की 90 फीसद जमीन आदिवासियों के कब्जे में है. इसमें नागा, कुकी समेत 34 जनजातियां शामिल हैं. ये जनजातियां मेइती समुदाय को ST स्टेटस का विरोध कर रही हैं, क्योंकि इन्हें डर है कि अगर मेइती को ST स्टेटस मिला तो पहाड़ी इलाकों में भी मेइती समुदाय फैल जाएगा. पहाड़ी जनजातियों को ये डर भी है कि अगर आर्थिक-राजनैतिक रूप से सक्षम मेइती को ST मान लिया गया, तो आरक्षित पदों पर पढ़ाई और नौकरी में भी मेइती का ही वर्चस्व हो जाएगा. बीते दिन यानी 4 मई के लल्लनटॉप शो में हमने आपको इस हिंसा के पीछे वजहों के बारे में विस्तार से बताया था. अधिक जानकारी के लिए आप ये एपिसोड देख सकते हैं, लिंक डिस्क्रिप्शन में है.

अब आज पर आते हैं. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह, केंद्रीय गृह सचिव, IB डायरेक्टर और राज्य के अधिकारियों के साथ ऑनलाइन बैठक की. इसके अलावा उन्होंने मणिपुर के पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बात की. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक हालात को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था अपने नियंत्रण में ले लिया है. संविधान में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था है. इसी में अनुच्छेद 355, केंद्र सरकार को आंतरिक और बाहरी खतरों से राज्य की रक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाने का अधिकार देता है. बीते शाम को ही गवर्नर ऑफिस की ओर से एक लिखित आदेश जारी कर उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया था. गवर्नर अनुसूया उइके ने लोगों से अफवाहों पर ध्यान न देने और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है.

CRPF के 5 DIG रैंक के अधिकारियों और 7 SSP और SP रैंक के अधिकारियों को हिंसा प्रभावित इलाकों में तैनात किया गया है. कुछ अधिकारियों को दिल्ली से भी भेजा गया है. इसमें NIA के पूर्व महानिदेशक कुलदीप सिंह का नाम भी शामिल है. 1986 बैच के IPS कुलदीप सिंह को केंद्र सरकार ने मणिपुर सरकार का सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया है. भारतीय सेना और असम राइफल्स की 55 टुकड़ियों के अलावा CRPF, RAF और BSF की 20 कंपनियों को भी हालात नियंत्रित करने के लिए लगाया गया है. इसके अलावा पड़ोसी राज्यों और दिल्ली से भी और फोर्स भेजने की तैयारी है. आज के हालात के बारे में और अधिक जानकारी दे रहे हैं मौके पर मौजूद इंडिया टुडे के संवाददाता सारस्वत.

मणिपुर हिंसा को लेकर आज विपक्षी दलों ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधा. कांग्रेस ने आज कहा कि प्रधानमंत्री अपना कर्तव्य निभाने की बजाय कर्नाटक के चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं.

कांग्रेस ने मणिपुर के हालात को लेकर गृहमंत्री पर भी निशाना साधा और उन्हें विफल बताते हुए बर्खास्त करने की मांग की. कांग्रेस के अलावा राजद ने भी बीजेपी पर हमला बोला. राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर राज्य सरकार को बर्खास्त करने की मांग की. जवाब में बीजेपी ने कहा कि राज्य और केंद्र की सरकारें सभी जरूरी कदम उठा रही हैं.

लेकिन यहां पर सवाल है. सवाल ये कि आज तो जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन इसके लिए हिंसा का इंतजार क्यों किया गया? क्या ये सरकार और सरकारी तंत्र की नाकामी नहीं है कि इतने सेंसेटिव मुद्दे पर बवाल हो गया और किसी को इसकी कानों-कान खबर तक नहीं हुई. और अगर खबर थी, तो खतरे से पहले ही जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए गए.