The Lallantop

'अच्छा बर्ताव, जेल में पढ़ाई', राजीव गांधी के हत्यारों को छोड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कहा, 'दोषी तीन दशक से ज्यादा समय से जेल में बंद हैं. इस दौरान उनका बर्ताव भी अच्छा रहा है.'

Advertisement
post-main-image
पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी श्रीहरन (बाएं) भी जेल से रिहा होंगी | फोटो: पीटीआई

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सभी दोषी जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई का आदेश दिया है. शुक्रवार, 11 नवंबर को कोर्ट ने साफ कहा कि अगर इन दोषियों पर कोई अन्य मामला नहीं है, तो उन्हें रिहा कर दिया जाए. यानी इस मामले में पेरारिवलन के बाद अब नलिनी श्रीहरन, रविचंद्रन, मुरुगन, संथन, जयकुमार, और रॉबर्ट पॉयस भी जेल से बाहर आएंगे.

Advertisement

आजतक से जुड़े कनु सारदा और संजय शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने की. बेंच ने अपने फैसले में कहा,

'लंबे समय से राज्यपाल ने इस पर कदम नहीं उठाया तो हम उठा रहे हैं. इस मामले में दोषी करार दिए गए पेरारिवलन की रिहाई का आदेश बाकी दोषियों पर भी लागू होगा.'

Advertisement

कोर्ट ने आगे कहा कि दोषी तीन दशक से ज्यादा समय से जेल में बंद हैं. इस दौरान उनका बर्ताव भी अच्छा रहा है. बेंच ने फैसला सुनाते हुए दोषियों के जेल में रहकर पढ़ाई करने, डिग्री हासिल करने और उनके बीमार होने का जिक्र भी किया.

पेरारिवलन कब रिहा हुए थे?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 18 मई को इस मामले के 7वें दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया था. वो रिहा हो चुके हैं. जेल में अच्छे बर्ताव के कारण कोर्ट ने पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था. जस्टिस एल नागेश्वर की बेंच ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश दिया था.

राजीव गांधी हत्याकांड

21 मई 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान तमिलनाडु में एक आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. उन्हें एक महिला ने माला पहनाई थी, इसके बाद धमाका हो गया. हमले में 18 लोगों की मौत हुई थी.

Advertisement

इस मामले में कुल 41 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें से 12 लोगों की मौत हो गई और तीन फरार हो गए. बाकी 26 पकड़े गए. इनमें श्रीलंकाई और भारतीय नागरिक थे. आरोपियों पर टाडा कानून के तहत कार्रवाई की गई. सात साल तक चली कानूनी कार्यवाही के बाद 28 जनवरी 1998 को टाडा कोर्ट ने हजार पन्नों का फैसला सुनाया. इसमें सभी 26 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई थी.

आजतक के मुताबिक चूंकि फैसला टाडा कोर्ट का था, इसलिए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. टाडा कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने इस पूरे फैसले को ही पलट दिया. कोर्ट ने 26 में से 19 दोषियों को रिहा कर दिया. सिर्फ 7 दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया. बाद में इनकी सजा को भी बदलकर उम्रकैद कर दिया गया.

वीडियो: सऊदी अरब के इस कानून ने अमेरिकी महिला की ज़िंदगी नर्क बना दी

Advertisement