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सरबजीत की हत्या करने वाला सरफराज मारा गया... पाकिस्तान में 'अज्ञात हमलावरों' ने गोली मारी

Amir Sarfraz ने Sarabjit Singh की पॉलीथिन से गला घोंटकर और पीट- पीट कर हत्या कर दी थी. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के कहने पर अमीर ने सरबजीत को तड़पा-तड़पा कर मारा था.

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अमीर सरफराज ने सरबजीत सिंह की हत्या की थी. (फोटो- इंडिया टुडे)
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अरविंद ओझा

पाकिस्तान के लाहौर में 'अंडरवर्ल्ड डॉन अमीर सरफराज (Amir Sarfaraz) उर्फ ​​'तांबा' की गोली मारकर हत्या कर दी गई है. पुष्टि हुई है कि 'अज्ञात हमलावरों' ने अमीर सरफराज पर हमला किया था. सरफराज वही शख्स है जिसने पाकिस्तान के लाहौर में कोट लखपत जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह (Sarabjit Singh) की हत्या कर दी थी. बताया जाता है कि ISI के इशारे पर ही सरफराज ने सरबजीत की हत्या की थी. 

सरबजीत सिंह पर हमला करने के आरोप में अमीर सरफराज और कुछ दूसरे कैदियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. हालांकि, सरफराज को 2018 में एक पाकिस्तानी अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए बरी कर दिया था. 

कौन है सरबजीत सिंह ?

सरबजीत सिंह भारत-पाकिस्तान सीमा पर रहने वाले एक किसान थे. 30 अगस्त 1990 को वह गलती से पाकिस्तानी सीमा में पहुंच गए थे. उनको पाकिस्तान सेना ने गिरफ्तार कर लिया था. पाकिस्तान की एक अदालत ने उन्हें लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का दोषी बताकर 1999 में मौत की सजा सुनाई. सरबजीत के परिवार ने ये दलील दी थी कि पाकिस्तान उन्हें ज़बरदस्ती फंसा रहा है. मामला अंतर्राष्ट्रीय मंच तक गया. बहुत दबाव के बाद पाकिस्तान सरकार को फांसी का फैसला टालना पड़ा. परिवार और देश को उम्मीद थी कि सरबजीत वापस आएंगे, लेकिन अप्रैल, 2013 में लाहौर जेल में कैदियों ने उन पर जानलेवा हमला कर दिया. गंभीर हालत में उन्हें लाहौर के जिन्ना अस्पताल में भर्ती कराया गया था. कुछ दिनों बाद इलाज के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई थी. 

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परिवार को सरबजीत की चिट्ठी 

सरबजीत सिंह ने पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में रहते हुए भारत में अपने परिवार को चिट्ठी भी लिखी थी. चिट्ठी में आशंका जताई थी कि जेल के खाने में उन्हें कुछ मिलाकर दिया जा रहा है. जिससे उनका शरीर गलता जा रहा है. सरबजीत ने बताया था कि उन्हें ऐसा भोजन दिया जाता है जिसे न तो खाना संभव है न ही पचाना. शरीर का दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया था. लेकिन जेल अफसरों का कसाई से भी बदतर व्यवहार जारी था. जेल अधिकारियों से दवा मांगने पर मजाक उड़ाया जाता था. पागल ठहराने की कोशिश की जाती थी.

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