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हिंदी के नामवर नहीं रहे
हिंदी के लेखक और आलोचक नामवर सिंह का 93 साल की उम्र में निधन हो गया.
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नामवर सिंह ने आलोचना की विधा को पूरी तरह से स्थापित किया. बकलम खुद, हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, छायावाद, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, दूसरी परंपरा की खोज, वाद विवाद संवाद इसका उदाहरण हैं.
हिंदी साहित्य की दुनिया से एक बुरी खबर है. धाकड़ लेखक और आलोचक नामवर सिंह नहीं रहे. 93 साल की उम्र हो गई थी. दिल्ली के एम्स में भर्ती थे. एएनआई के मुताबिक रात 11.51 पर उन्होंने आखिरी सांस ली. तबीयत काफी समय से खराब चल रही थी. पिछले महीने अपने कमरे में गिर गए थे. सिर में गंभीर चोट आ गई थी जिसके बाद उन्होंने एम्स में भर्ती कराया गया था.
नामवर सिंह की पैदाइश बनारस के पास जीयनपुर गांव की है. तारीख 28 जुलाई 1927 की. बाकी सारी पढ़ाई लिखाई बनारस में ही हुई. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पीएचडी की थी. वो भी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अंडर में. पीएचडी कंप्लीट करने के बाद वहीं पढ़ाने लगे. वहां विवाद हुआ तो बीएचयू छोड़ दिया. सागर और जोधपुर यूनिवर्सिटी होते हुए दिल्ली की जवाहरलाल यूनिवर्सिटी पहुंचे. यहां आकर हिंदी विभाग का जो कायाकल्प किया वो देश में कहीं और कभी नहीं हुआ था. यहां भारतीय भाषा केंद्र की स्थापना की. सन 1992 में जेएनयू से रिटायर हो गए. ये नामवर सिंह का जीवन परिचय है. संक्षिप्त वाला. नामवर सिंह के लिखे का प्रताप ऐसा है कि उनके छोटे भाई, काशी का अस्सी लिखने वाले काशीनाथ सिंह कहते हैं "हिंदी आलोचकों में जो लोकप्रियता नामवर सिंह की है वैसी किसी की नहीं." हमारे सरपंच सौरभ जो खुद जेएनयू में पढ़े हैं, वो बताते हैं हम तो उस यूनिवर्सिटी में पढ़े लेकिन नामवर सिंह से नहीं पढ़े. नामवर सिंह की क्लास अटेंड करने वालों का नसीब तगड़ा था. जिनको मौका मिला वो लोहे से सोना बन गए.
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