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महाराष्ट्र वाला मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, अब जानिए कि क्या होने वाला है?

शिवसेना के बागी विधायक अयोग्य घोषित हो जाएंगे?

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शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे (फोटो- पीटीआई)

महाराष्ट्र के सियासी संकट का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष जया ठाकुर ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर 'दलबदल' में शामिल सभी विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि ऐसे विधायकों को 5 साल तक चुनाव लड़ने से रोकने का निर्देश दिया जाए. जया ठाकुर ने शिवसेना से बागी हुए विधायकों की मौजूदा स्थिति को लेकर सवाल उठाया और कहा कि विधायकों का दलबदल असंवैधानिक है क्योंकि ये दो तिहाई से कम है.

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एकनाथ शिंदे गुट का प्रस्ताव असंवैधानिक?

दरअसल, बुधवार 22 जून को शिवसेना से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे गुट का एक रेजॉल्यूशन सामने आया. इसमें एकनाथ शिंदे को शिवसेना के विधायक दल का नेता चुना गया है. साथ ही सुनील प्रभु को हटाकर भरत गोगवाले को चीफ व्हिप बनाया गया है. इस रेजॉल्यूशन पर 34 विधायकों के हस्ताक्षर हैं. इस प्रस्ताव को महाराष्ट्र के राज्यपाल और विधानसभा के डिप्टी स्पीकर के पास भेजा गया है. इससे पहले बगावत के कारण 21 जून को ही शिवसेना ने शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया था.

महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के 55 विधायक हैं. दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधानों के मुताबिक इस तरह के विलय के लिए विधायक दल के दो तिहाई सदस्यों की जरूरत होती है. यानी एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुने जाने के लिए 37 विधायकों का समर्थन चाहिए. ऐसे में सिर्फ 34 विधायकों के समर्थन से कोई भी प्रस्ताव पारित करना असंवैधानिक है.

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विधायकों की योग्यता पर सवाल

जया ठाकुर ने अपनी याचिका में इसी मुद्दे को उठाया है. आजतक से जुड़े संजय शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिका में कहा गया है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद केंद्र सरकार ने दलबदल के मामलों में अभी तक कदम नहीं उठाया है. इसी का फायदा उठाकर राजनीतिक दल या बागी स्वार्थी विधायक राज्यों में निर्वाचित सरकार को लगातार नष्ट कर रहे हैं.

उद्धव ठाकरे ने 22 जून को कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि वे सीएम पद से इस्तीफा देने को तैयार हैं. इसके बाद एकनाथ शिंदे के आगे के फैसले काफी अहम होंगे. लेकिन महाराष्ट्र में अब स्थिति राज्यपाल और स्पीकर की तरफ जाती दिख रही है. बागी विधायकों की योग्यता या अयोग्यता पर फैसला स्पीकर ही ले सकते हैं. अगर शिंदे गुट बागी रुख बनाए रखता है तो मामला फ्लोर टेस्ट तक भी पहुंचने की संभावना है.

फ्लोर टेस्ट की बढ़ी संभावना

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तरह की स्थिति आने पर कई मौकों पर अपने फैसले में फ्लोर टेस्ट को बेहतरीन तरीका माना है. जिससे पता चल सके कि किसके पास कितनी संख्या है और कौन सत्ता में रह सकता है. मौजूदा महा विकास अघाडी सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद बनी थी.

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2019 विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन टूट गया था. उधर, शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महा विकास अघाडी गठबंधन बना लिया. लेकिन राज्यपाल ने बीजपी नेता देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने का न्योता दिया. एनसीपी नेता अजित पवार ने दावा कर दिया था कि पार्टी विधायक उनके साथ हैं. राज्यपाल के फैसले के खिलाफ शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और फ्लोर टेस्ट की मांग करने लगी. कोर्ट में रविवार के दिन विशेष सुनवाई हुई और आदेश दिया गया कि 24 घंटे के भीतर फ्लोर टेस्ट कराया जाए. तीन दिन बाद ही देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा.

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