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कोर्ट ने पत्नी से बचाने के लिए मानसिक विकलांग को अडॉप्ट किया

बीवी ने तलाक देने के बाद किडनैप करके फिर शादी की.

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फोटो - thelallantop
इतनी सारी गोलाबारी, खून-खराबे, मार-काट वाली ख़बरों के बीच ये एक अच्छी खबर है.
मनोज राजन की उम्र 37 साल है. वो मानसिक रूप से बीमार हैं. मद्रास हाई कोर्ट ने उन्हें 2 अगस्त को अडॉप्ट कर लिया. हाई कोर्ट के जस्टिस पी एन प्रकाश ने ये फैसला लिया. मनोज 15 अगस्त 1979 को पैदा हुए थे. वो बोल और सुन नहीं सकते. मानसिक रूप से भी वो बीमार थे. जब मनोज 14 साल का थे, उसकी मां की मौत हो गई. जब वो 29 साल का थे. उनके पापा ने प्रियदर्शिनी नाम की लड़की से उसकी शादी करवा दी. एक ही साल बाद प्रियदर्शिनी ने उनको तलाक दे दिया. क्योंकि वो मानसिक रूप से बीमार थे. जब तक मनोज के पापा जिंदा थे. वो ही मनोज की देखभाल करते थे. लेकिन उनकी मौत के बाद मनोज एक 'स्पेशल होम' में रहने लगे. अब प्रियदर्शिनी ने मनोज की कस्टडी लेने की कोशिश की. क्योंकि मनोज के नाम से उनके पापा बहुत सारी प्रॉपर्टी छोड़ गए थे. जब प्रियदर्शिनी को कस्टडी नहीं मिली. उसने मनोज को स्पेशल होम से किडनैप कर लिया. चेन्नई ले जाकर एक पादरी के सामने उससे फिर से शादी की. फिर उसी दिन मनोज के नाम की एक प्रॉपर्टी 1.6 करोड़ में बेच दी गई.
जस्टिस प्रकाश ने जब ये सारी बातें सुनी. उन्होंने कहा कि इस मामले में बहुत हेराफेरी है. उन्होंने मनोज की किडनैपिंग के मामले में CID की जांच के ऑर्डर दे दिए. हाई कोर्ट ने मनोज और उसकी सारी प्रॉपर्टी की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है. इस कानूनी तरीके को 'इन लोको पैरेंटिस' कहते हैं. 
मनोज को फ़िलहाल मदुरै के एक स्पेशल होम में रखा गया है. मदुरै पुलिस को उनकी पूरी सिक्योरिटी के ऑर्डर्स भी दिए गए हैं.

'इन लोको पैरेंटिस' यानी आधा एडॉप्शन

ये एक लैटिन फ्रेज है. जिसका मतलब होता है 'पेरेंट्स की जगह पर'. एक कानूनी ज़िम्मेदारी होती है. इसमें बिना किसी को कानूनी तौर पर 'अडॉप्ट' किए बच्चे की जिम्मेदारी ली जा सकती है. ये शुरू हुआ था मेनचेस्टर से. जिनके मां-बाप मर चुके होते थे. या बहुत बीमार होते थे. और बच्चा खुद अपनी ज़िम्मेदारी नहीं ले सकता था. स्कूल उन बच्चों की ज़िम्मेदारी ले सकते थे. उनकी पढ़ाई और हेल्थ पर ध्यान देते थे. तब तक, जब तक बच्चे सेल्फ-डिपेंडेंट न हो जाएं. जस्टिस पी एन प्रकाश ने यह फैसला मनोज के लिए इसीलिए लिया. क्योंकि मनोज मानसिक रूप से बहुत बीमार हैं. प्रॉपर्टी के लिए कोई भी उनका फायदा उठा सकता है. 'इन लोको पैरेंटिस' स्कूलों के बच्चों के लिए इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन एक विकलांग व्यक्ति के लिए ये फैसला लिया जाना एक बेहतरीन फैसला है.
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