The Lallantop

मजदूरों की किस्मत अच्छी थी, उत्तरकाशी सुरंग के निर्माण में हुई लापरवाही जानकर यही कहेंगे

क्या उत्तरकाशी के Silkyara Tunnel को बनाने में नियमों की अनदेखी हुई? इंडिया टुडे की ओपन सोर्स इंटेलिजेंस टीम ने अपनी रिपोर्ट में कुछ तथ्यों को सामने रखा है.

post-main-image
सिलक्यारा टनल में हुए राहत कार्य की तस्वीर (क्रेडिट:AFP/India Today)
author-image
बिदिशा साहा

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बन रही सिल्क्यारा सुरंग (Uttarakhand Tunnel Rescue Operation) में फंसे मजदूरों के बाहर आने के बाद उनके परिवारों और लोगों ने राहत की सांस ली. लेकिन ये घटना कई सवाल खड़े कर गई है. सुरंग निर्माण में लगी कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग (Navayug Engineering) पर सुरक्षा प्रोटोकॉल में लापरवाही बरतने के आरोप लगे हैं. ‘इंडिया टुडे’ की ओपन सोर्स इंटेलिजेंस टीम (OSINT) ने अपनी रिपोर्ट में सुरंग निर्माण में हुए सुरक्षा नियमों के उल्लंघन का विश्लेषण किया है.

भौगौलिक नक्शे से देखें तो उत्तरकाशी हिमालय के ऊपरी इलाके में है. यह मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) के काफी पास है. MCT भारतीय टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मिलने वाली जगह है. यहां लगातार दोनों प्लेटें एक दूसरे को धकेलती रहती हैं, जिसकी वजह से जमीन के अंदर ऊर्जा पैदा होती है और भूकंप की आशंका बनी रहती है. 

गौरतलब है कि साल की शुरुआत में उत्तराखंड के जोशीमठ में दरारें आने की खबरें आई थीं. ये इलाका भी मेन सेंट्रल थ्रस्ट पर मौजूद है.

 

सिल्क्यारा सुरंग का निर्माण नेशनल हाइवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड कर रही है. अब सवाल ये है कि इसे बनाने के दौरान किन नियमों का उल्लंघन किया गया. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और भारतीय मानक ब्यूरो के नियमों को ध्यान में रखते हुए इंडिया टुडे ने ग्राउंड पर मौजूद वास्तविक स्थितियों को जांचने-परखने का प्रयास किया है. इसमें चार महत्वपूर्ण बातें सामने आई हैं जोकि सुरंग बनाने के दौरान ध्यान रखनी चाहिए.

1. एस्केप रूट का नहीं होना

सिल्क्यारा सुरंग में सबसे बड़ी कमी इसमें कोई एस्केप रूट का नहीं होना था. रिपोर्ट के मुताबिक सुरंग बनाने वाली कंपनी ने सेफ्टी एग्जिट रूट नहीं बनाया था. नियमों के अनुसार, 3 किलोमीटर से लंबी सुरंग में एस्केप रूट बनाना बहुत जरूरी है, ताकि किसी दुर्घटना के वक्त समय रहते लोग सुरक्षित निकल सकें. जांच में पता चला है कि सिल्क्यारा सुरंग के लिए एस्केप रूट बनाने का प्लान तो था, लेकिन इसे बनाया नहीं गया. सुरंग का नक्शा इस बात की तस्दीक है कि 400 मीटर की कंक्रीट फॉल्स फर्श बनाने की योजना थी, लेकिन वास्तविकता में ऐसा कोई फर्श नहीं बनाया गया है.

रेस्क्यू टनल का प्रस्ताव

2. ट्रेंच केज का इस्तेमाल नहीं होना

OSINT ने बताया कि सुरंग में कोई ट्रेंच केज या सेफ्टी ट्यूब नहीं था. ट्रेंच केज स्टील या एल्युमिनियम से बना एक स्ट्रक्चर होता है जिसे खनन में काम कर रहे मजदूरों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है. लेकिन सुरंग के डिज़ाइन में इसका कोई जिक्र नहीं था. यहां बता दें कि श्रमिकों ने NHIDCL (National Highways & Infrastructure Development Corporation Limited) के अधिकारियों पर सेफ्टी गाइडलाइन्स को इग्नोर करने के आरोप लगाए थे. बचाव कार्य के हालिया वीडियो देखने से पता चल रहा कि बचाव अभियान में जुटे लोग अब सुरंग में ट्रेंच केज का इस्तेमाल करके ही मजदूरों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

एक्सपर्ट ने सुरंग के अंदर से निकलने वाली जहरीली गैसों को लेकर गंभीर चिंता जताई है.

3. सही SOP फॉलो नहीं हुआ

किसी भी चीज़ के निर्माण में कुछ तय मानक होते हैं. इन्हें स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) कहा जाता है. लेकिन सिल्क्यारा सुरंग बनाते वक्त इसको फॉलो नहीं किया गया. सुरंग में सीढ़ियों की मदद से रैपिड इवेक्यूएशन यानी तत्काल निकासी की व्यवस्था नहीं थी. अधिकारियों ने बताया कि सरफेस पर रेलवे ट्रैक को देखते हुए सुरंग के अंदर सीढ़िया बनाने का जिम्मा केवल रेलवे के पास है. दो लेन वाली सुरंग में सीढ़ियां बनाने के SOP को लेकर दुविधा साफ नज़र आई.

4. ह्यूम पाइप का नहीं होना

ह्यूम पाइप एक कंक्रीट की ट्यूब होती है जिसे सुरंग बनाते समय एक तरफ से दूसरी तरफ पर बिछाया जाता है. श्रमिकों ने बताया कि सुरंग में पिछली दुर्घटना के बाद ह्यूम पाइप बिछाई गई थी, लेकिन बाद में उसे हटा दिया गया. सुरंग में कई बार गैस लीक होने की भी आशंका बनी रहती है. ऐसे में इन पाइप का इस्तेमाल श्रमिकों को सुरंग से सुरक्षित निकालने के अलावा जहरीली गैस को भी निकालने के लिए किया जाता है.

विशेषज्ञों की राय क्या है?

इंडिया टुडे ने सुरंग में आई दरार और उसे बनाने में हुई लापरवाही को लेकर कई विशेषज्ञों से बात की. जियोलॉजिस्ट प्रोफेसर सीपी राजेंद्रन ने बताया, "इस एरिया में भूंकप की अक्सर गतिविधियां देखने को मिलती हैं. 19वीं शताब्दी में यहां 7.8 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था. इसके अलावा करीब 30 साल पहले यहां 7 मैग्नीट्यूड के जोरदार भूकंप के झटके महसूस किए गए थे."

सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग के नीचे एक मेजर फॉल्ट लाइन है. ऐसे इलाके को शीयर जोन कहा जाता है, यानी धरती के मेंटल और क्रस्ट के बीच में काफी पतली परत. प्रो. राजेंद्रन के मुताबिक, ऐसी जगह पर इस तरह की सुरंग बनाना खतरे से खाली नहीं है.

वहीं, अंतरराष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स का मानना है कि यहां फिलहाल एस्केप टनल की जरूरत नहीं थी. उनका कहना है कि दुनिया में जहां कहीं भी सुरंग बनती है तो यह माना जाता है कि ये नहीं गिरेगी. उनके मुताबिक यह एक अलग तरह की दुर्घटना है. किसी भी सुरंग के निर्माण के समय एस्केप टनल नहीं बनाए जाते हैं.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, 11 ट्रेड यूनियन्स और अन्य संगठनों ने भी सिल्क्यारा सुरंग के निर्माण में हुई खामियों पर रोष प्रकट किया है. इन यूनियन्स ने कहा है कि किसी भी निर्माणधीन इलाके में हादसा होने का मतलब है कि वहां नियमों का पालन नहीं किया गया है.

उत्तराखंड के जियोलॉजिस्ट एमपीएस बिष्ट के अनुसार, जहां इतना बड़ा निर्माण होता है वहां के पत्थरों की जांच करने के बाद ही उसका निर्माण होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सिल्क्यारा सुरंग की जियोटेक्निकल और जियोफिजिकल मैपिंग की जानी चाहिए थी.

उत्तराखंड में चार प्रमुख तीर्थ स्थल हैं. इनकी कनेक्टिविटी में सुधार के लिए सरकार उत्तरकाशी जिले में 4.5 किलोमीटर लंबे सिल्क्यारा सुरंग का निर्माण करा रही है. चार धाम परियोजना के तहत बन रही इस सुरंग का निर्माण कार्य सितंबर 2023 तक पूरा होना था, लेकिन प्रोजेक्ट में देरी के कारण अब मार्च 2024 तक इसके पूरा होने की उम्मीद है. ‘आजतक’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, सिल्क्यारा सुरंग लगभग 853 करोड़ रुपये की लागत से बन रही है.