फिल्म की कहानी
पंजाब के होशियापुर में हकीम ताराचंद उर्फ मामाजी (कुलभूषण खरबंदा) नाम का एक यूनानी डॉक्टर है, जो जड़ी-बूटी से सेक्स संबंधी समस्याओं का इलाज करता है. लेकिन सेक्स की बात करने की वजह से समाज उन्हें बॉयकॉट करने लगता है. एक दिन ताराचंद का एक मरीज ही उनकी हत्या कर देता है. टागरा नाम का वकील आता है और बताता है कि मामा जी ने अपनी सेक्स क्लीनिक और कुछ प्रॉपर्टी अपनी भांजी बेबी बेदी के नाम कर दिया है. बेबी की माली हालत खराब है. अपनी मां और भाई का खर्चा वही चलाती है. पापा हैं नहीं. उसे लगता है कि वो ये क्लीनिक बेचकर अपने सारे उधार चुका देगी. लेकिन कानूनी पेच ये है कि उस क्लीनिक को बेचने से पहले कम से कम छह महीने चलाना होगा. क्लीनिक आते-जाते और वहां समय गुज़ारते हुए बेबी को ये लगने लगता है कि उसे इस क्लीनिक को आगे बढ़ाना चाहिए. अब वो चाहती है कि लोगों को सेक्स के बारे में जानकारी हो. लोग अपने सेक्शुअल हेल्थ की बात करें. बिना किसी तरह की शर्मिंदगी के. उसके प्रोफेशन की वजह से उसके बहुत सारी दिक्कतें आती हैं. परिवार को बेइज्ज़त करके घर से निकाल दिया जाता है. लेकिन वो हार नहीं मानती. लड़ती रहती है. इसमें उसकी मदद उसके पेशेंट्स करते हैं. उसी पेशेंट लिस्ट में एक नाम पॉपुलर पंजाबी पॉप स्टार का भी है. ये सब लोग बेबी के साथ मिलकर जो लड़ाई कर रहे हैं, फिल्म इसी लड़ाई के बारे में है. कि वो इसे जीत पाते हैं या नहीं.

तीन लोगों की फैमिली. बेबी (बीच) में उसका भाई और उसकी मां.
एक्टिंग
सोनाक्षी सिन्हा ने फिल्म में बेबी बेदी का रोल किया है. बेबी की मां के रोल में हैं नादिरा बब्बर. ताराचंद यानी मामजी के रोल में हैं कुलभूषण खरबंदा. बेबी का एक भाई भी है भूषित, जो बिलकुल निकम्मा है. 3जी-4जी-पबजी में लगा हुआ है. ये रोल किया है वरुण शर्मा ने. इसके अलावा वकील टागरा के रोल में हैं अन्नू कपूर और बेबी के लव इंट्रेस्ट के रोल में प्रियांश जोरा हैं. सोनाक्षी का काम फिल्म में काफी औसत है. उन्होंने 'लूटेरा' में जो काम किया था, उस बार को दोबारा टच नहीं कर पाई हैं. एक्टिंग का मतलब सिर्फ फेशियल एक्सप्रेशन नहीं होता. वो आपके हाव-भाव-बर्ताव में भी नज़र आना चाहिए. खासकर उस केस में जब पूरी फिल्म आपके कंधे पर हो. वरुण शर्मा को देखकर ऐसा लगता है कि उन्होंने खुद को जानबूझकर टाइपकास्ट कर लिया है. इस किरदार में बस उनका लुक नया है. बाकी वही जो आपने उन्हें पीछे लगातार करते हुए देखा है. कुलभूषण खरबंदा और अन्नू कपूर दो ही ऐसे एक्टर्स हैं, जो आपकी उम्मीद से कहीं बेहतर करते हैं लेकिन उनके पास समय की सीमा है. अन्नू कपूर एक बार फिर से 'विकी डोनर' के डॉ. चड्ढा वाले जोन में हैं. फिल्म में सरप्राइज़ एलीमेंट थे बादशाह. लेकिन जितना काम उन्हें इस फिल्म में दिया गया है, उससे ज़्यादा एक्टिंग वो अपने 3 मिनट के म्यूज़िक वीडियोज़ में कर लेते हैं.

फिल्म के एक सीन में बादशाह और सोनाक्षी. बादशाह ने फिल्म गबरू घटैक नाम के एक पॉपस्टार का रोल किया है, जिसे एरेक्टाइल डिसफंक्शन नाम की बीमारी है.
म्यूज़िक और बैकग्राउंड स्कोर
फिल्म का म्यूज़िक अती-साधाराण है. हम उन गानों की बात कर रहे हैं, जो फिल्म में दिखाए-सुनाए गए हैं. 'कोका' और 'शहर की लड़की' जैसे गाने फिल्म का हिस्सा नहीं हैं. फिल्म में दिखने वाले सारे ही गाने बैकग्राउंड में हैं, जो कि बिलाशक अच्छी बात है. लेकिन उन गानों के साथ समस्या ये है कि कानों से गुज़रती हर पिछली लाइन को आप भूल जाते हैं. कुछ भी आपके साथ स्टिक नहीं करता. बैकग्राउंड म्यूज़िक वैसे तो माहौलानुसार है लेकिन जब फ्रेम में बादशाह आते हैं, तो वो भारी भरकम हेवी बीट्स वाले बैकग्राउंड स्कोर उस कैरेक्टर का इंट्रो करवाते हैं. ये वाला पार्ट सही लगता है. फिल्म के प्रमोशन में इस्तेमाल किया गया रीमिक्स गाना 'शहर की लड़की' आप नीचे देख सकते हैं:
कैमरा और डायलॉग्स
ये फिल्म सेट है पंजाब के होशियारपुर में. और ये हमें कैमरा पूरी फिल्म में बताता रहता है. चाहे वो बंग्ले के बाहर लगी प्लेट हो चाहे गाड़ियों के नंबर. हर जगह ये अपनी आंख लगाए रहता है. फिल्म की बसावट को कैमरे से काफी एक्सप्लोर किया गया है. आपका परिचय किरदार और उनकी लोकैलिटी दोनों से करवाया जाता है. सिनेमटोग्रफी थोड़ा बहुत ही सही लेकिन फिल्म की मदद करती है. डायलॉग्स बोलचाल की भाषा के काफी करीब हैं. थोड़ा सा पंजाबी टच डाला गया है, जो पच जाता है. कुछ फनी लाइन्स हैं लेकिन कई जगह अपने सीन्स की देखा-देखी डायलॉग्स भी काफी मेलोड्रमैटिक हो जाते हैं.

फिल्म में अन्नू कपूर ने टागरा नाम के एक वकील का रोल किया है.
फिल्म की अच्छी बात
कि ये सेक्स जैसे टैबू इशू के बारे में बात करती है. और इस मसले को उठाकर इतने मेनस्ट्रीम में ले आती है, कि हम अभी उसी की बात कर रहे हैं. बहुत सारी बातें-बताती है, कुछ दिमागी कंफ्यूज़न भी दूर करती है. इसलिए फिल्म के लिए पहला प्लस पॉइंट तो कॉन्सेप्ट ही स्कोर कर लेता है. बाकी बात रही उसके एक्जीक्युशन में तो फिल्म इस विषय को कायदे से एक्सप्लोर नहीं करती. काफी सतही रहती है.

फिल्म के एक सीन में सोनाक्षी के साथ कुलभूषण खरबंदा. इन्होंने मामजी का रोल किया है, जोसेक्स क्लीनिक बेबी के नाम पर करके मरे हैं.
खलने वाली बातें
ये फिल्म काफी फ्लैट है. ये एक बार शुरू होती है, तो वही रफ्तार पकड़े फिनिश लाइन पर जाकर रूकती है. इसलिए इस फिल्म के कोई हाई या लो मोमेंट्स नहीं है. और रफ्तार भी ऐसी की एक झपकी के बाद भी आप फिल्म से कैच अप कर सकते हैं. पूरी फिल्म में इंतज़ार रहता है कि अब कुछ ऐसा होगा, जो आपको सरप्राइज़ करेगा, लेकिन वैसा कुछ नहीं होता. फिल्म में एक ही थोड़ी-बहुत सस्पेंस वाली चीज़ है, वो भी एक टाइम के बाद आप समझ जाते हैं. ऊपर से फिल्म में जबरदस्ती की लव स्टोरी ठूंसी हुई है. सोनाक्षी के कैरेक्टर का लव इंट्रेस्ट प्ले करने वाले प्रियांश जोर को आप कभी भी इस कहानी का हिस्सा नहीं मान पाते. क्योंकि वो लड़का सोनाक्षी से काफी कम उम्र का लगता है. वो किरदार पूरी फिल्म में सिर्फ दो-तीन बार बोलता सुनाई देता है. इस फिल्म में उनकी क्यूट स्माइल से ही काम चला लिया गया है.

फिल्म के एक सीन में प्रियांश जोरा और सोनाक्षी सिन्हा. ये दोनों ने फिल्म में ऑलमोस्ट एक कपल बने हैं.
कुल जमा अनुभव
'खानदानी शफाखाना' की सबसे दिलचस्प बात उसका नाम और कॉन्सेप्ट ही है. लेकिन फिल्म उस कॉन्सेप्ट से न्याय नहीं कर पाती है. यहां-वहां भटकती है. और फिर वहां आकर रूकती है, जो आप प्रेडिक्ट कर चुके थे. इस फिल्म को देखते वक्त लगता है कि कोई आदमी उस चीज़ के बारे में बात कर रहा है, जिसके बारे में उसकी जानकारी सीमित है. क्योंकि उस सब्जेक्ट की डिटेलिंग ढ़ीली है. तिस पर ये ज्ञान वाली भाषा में ही ज्ञान देती है, उस भाषा में नहीं, जो जनता को समझ आती है. कोशिश करती है लेकिन नाकाम रहती है. इसलिए एक बार को झिलाऊ भी बन जाती है. महीने की शुरुआत है, तय कर ही लिया, तो देख लीजिए. बाकी मामला तो उम्मीद पे पानी फेरने वाला ही है.
फिल्म रिव्यू- 'खानदानी शफाखान'