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'PAK के आतंकवाद छोड़ने तक सिंधु जल संधि लागू नहीं...', भारत ने खारिज किया इस कोर्ट का फैसला

सिंधु जल संधि पर कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के फैसले को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया. विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस कोर्ट की ओर से लिया गया कोई भी फैसला अवैध है. Court of Arbitration का गठन 2022 में Indus Water Treaty को लेकर किया गया था. भारत ने कभी भी इस अदालत के अस्तित्व को मान्यता नहीं दी. भारत ने कहा कि यह कदम Pakistan के इशारे पर किया गया नया नाटक है.

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भारत ने कभी भी इस मध्यस्थता अदालत के अस्तित्व को मान्यता नहीं दी (फोटो: आजतक)

भारत ने एक मध्यस्थता न्यायालय यानी कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के अधिकारों को खारिज कर दिया है. इस कथित अदालत का गठन 2022 में सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को लेकर किया गया था. भारत ने कभी भी इस अदालत के अस्तित्व को मान्यता नहीं दी. विदेश मंत्रालय ने कहा कि इसका गठन ही संधि के मूल प्रावधानों का उल्लंघन है.

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क्या है पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर ‘किशनगंगा परियोजना’ और चिनाब नदी पर ‘रातले परियोजना’ का निर्माण कर रहा है. 2015 में पाकिस्तान ने परियोजनाओं की डिजाइन को लेकर आपत्ति जताई थी और विश्व बैंक की तरफ रुख किया था. पाकिस्तान ने विश्व बैंक से अपील की थी कि वे एक तटस्थ विशेषज्ञ यानी न्यूट्रल एक्सपर्ट के माध्यम से समाधान करें. लेकिन एक साल बाद उसने अपना अनुरोध वापस ले लिया और इसके बजाय मध्यस्थता अदालत (Court of Arbitration) के माध्यम से फैसला सुनाने के लिए कहा.

इसके बाद वर्ल्ड बैंक ने अक्टूबर, 2022 में एक मध्यस्थता अदालत का गठन किया. जिसका भारत सरकार लगातार विरोध करती आई है. गुरुवार, 26 जून को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने कहा कि संधि को स्थगित रखने का भारत का रुख “मध्यस्थ न्यायालय को उसकी क्षमता से वंचित नहीं करता है."

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विदेश मंत्रालय ने लगाई फटकार 

विदेश मंत्रालय ने कड़े शब्दों में हेग स्थित कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन की निंदा की है. विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार, 27 जून को एक बयान में कहा, 

भारत ने कभी भी इस तथाकथित मध्यस्थता न्यायालय के अस्तित्व को कानूनी मान्यता नहीं दी है. और भारत का रुख हमेशा से यह रहा है कि इस कथित मध्यस्थ अदालत का गठन अपने आप में सिंधु जल संधि का गंभीर उल्लंघन है. इसके परिणामस्वरूप इस मंच के समक्ष कोई भी कार्यवाही और इसके द्वारा लिया गया कोई भी फैसला अवैध और अमान्य है.

भारत ने कहा कि यह कदम पाकिस्तान के इशारे पर किया गया नया नाटक है. बयान में कहा गया कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए सिंधु जल संधि को तब तक के लिए स्थगित कर दिया है, जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं कर देता. विदेश मंत्रालय ने आगे कहा,

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जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करना विश्वसनीय और स्थायी रूप से बंद नहीं करता, तब तक भारत इस संधि के किसी भी हिस्से को मानने का पाबंद नहीं है… साथ ही किसी भी मध्यस्थता न्यायालय को भारत की कार्रवाइयों की जांच करने का अधिकार नहीं है. 

ये भी पढ़ें: सिंधु जल समझौता क्या है? पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान का पानी रोक दिया

भारत और पाकिस्तान के बीच नौ साल की बातचीत के बाद 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने कराची में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे. भारत ने 23 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद इस संधि को स्थगित रखने का फैसला किया था. जिसमें आतंकवादियों ने कम से कम 26 लोगों की हत्या कर दी थी.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: सिंधु जल संधि पर भारत ने लॉन्ग टर्म प्लॉन बना लिया है

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