विदेशों में नौकरी, वहां बस चुके या फिर पढ़ाई के लिए रह रहे भारतीय मूल के लोगों के साथ ये सलूक! कुछ दिन पहले अमेरिका से एक तस्वीर सामने आई थी. यहां पेट्रोलिंग कर रही पुलिस की कार ने इंडियन स्टूडेंट जाह्नवी को टक्कर मारी. जाह्नवी की मौत के बाद पुलिसकर्मी मजाक उड़ाता दिखा. अब ऐसी ही एक तस्वीर जर्मनी की राजधानी बर्लिन से आई है.
जर्मनी में भारतीय पर नस्लीय हमला, सिर में 30 टांके आए, आपबीती डराने वाली
बर्लिन में रह रहे सजन मणि को एक शख्स ने इतनी बुरी तरह मारा कि अब उनसे उठा नहीं जा रहा. हमले के बाद वो सड़क पर घिसटते रहे.

बर्लिन में रह रहे भारतीय आर्टिस्ट सजन मणि को इतनी बुरी तरह से पीटा गया कि वह उठ नहीं पा रहे थे. जान बचाने के लिए वह सड़क पर खुद को घसीटते हुए आगे बढ़ते रहे.
दी लल्लनटॉप ने सजन मणि से बात की है. वह बताते हैं कि 21 सितंबर की दोपहर को तकरीबन 2 बजे वो बर्लिन के बाहरी इलाके में अपने आर्ट स्टूडियो से बाहर निकले. साथ में उनकी एक दोस्त भी थीं. वे बस के वेटिंग शेल्टर में आकर गाड़ी का इंतजार करने लगे. पास में एक मजबूत कदकाठी का शख्स बैसाखी के सहारे उनकी ओर बढ़ रहा था. कुछ देर बाद उसने अपनी बैसाखी हवा में घुमाना शुरू कर दिया. सजन के मुताबिक, वो शख्स अब उन्हें देखकर कुछ बड़बड़ा रहा था. उनकी दोस्त उस शख्स की हरकतों को देखकर डर चुकी थीं. उन्होंने कहा, ‘हमें यहां से हट जाना चाहिए.’
सजन और उनकी दोस्त आगे बढ़ गए. वो बस का टाइमटेबल चेक कर रहे थे. जैसे ही वह थोड़ा आगे बढ़े, बैसाखी लिए शख्स ने उन पर हमला कर दिया. सजन खून से लथपथ हो चुके थे. वह रेंगते हुए सड़क पर आगे बढ़े. शख्स ने उनका पीछा किया. दो-तीन बार और हमला. सड़क से कई गाड़ियां गुजरीं, लेकिन मदद के लिए कोई नहीं उतरा.
हमले के बीच सजन के साथ मौजूद दोस्त ने पुलिस और ऐम्बुलेंस को फोन किया. पुलिस मौके पर तो पहुंची, लेकिन सजन का कहना है कि उनका बर्ताव ठीक नहीं था. पीड़ित ठीक ढंग से कुर्सी पर नहीं बैठ पा रहा था. लेकिन पुलिसकर्मी उन्हें कुर्सी पर बैठने का दबाव डालते रहे. हमले में घायल हुए सजन कहते हैं,
उन्होंने मुझे प्रॉसिजर वाला पेपर नहीं दिया. जबकि जर्मनी में कोई भी पुलिस इन्वेस्टिगेशन शुरू होने पर ये हमारा अधिकार होता है. बाद में पुलिसकर्मी बोले कि वह भूल गए थे.
सजन दो दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे. उन्हें सिर पर 30 टांके लगे हैं. बाएं कान पर भी टांके हैं. पीठ और दाएं हाथ पर भी चोट के निशान हैं. पीड़ित ने बताया कि उन पर ‘नस्लीय’ हमला हुआ था. जिस शख्स ने उन पर हमला किया, वह उसी दिन पहले भी किसी और को पीट चुका था. सजन के मुताबिक, उस मामले में शिकायत मिलने पर पुलिस हमलावर को ले गई थी. फिर कुछ वक्त बाद उसे छोड़ दिया गया. उसी हमलावर ने दोपहर में सजन पर हमला कर दिया.
जर्मनी हर साल 23 मार्च को ‘अंतरराष्ट्रीय नस्लवाद विरोधी पखवाड़ा’ मनाता है. लेकिन नस्लवाद वहां आज भी जिंदा है. इस बारे में सजन ने बताया,
अगर आप जर्मन अखबारों को पढ़ें तो आपको इसका जवाब मिलेगा. यहां फार-राइट ग्रुप्स और नियो नाजी ग्रुप्स पर नकेल कसी जाती रही है. या कहें, इन्हें बैन कर दिया जाता है. लेकिन अभी भी नाजी सुप्रीमेसी की वजह से रेसिज्म काफी हद तक है. राइट विंग यहां लगातार बढ़ रहा है. फिर भी जो वाइट जर्मन नहीं हैं, उनके प्रति यहां बहुत नफरत है.
पुलिस के व्यवहार पर भी सजन ने सवाल उठाया. उन्होंने कहा,
जर्मन पुलिस के लिए मैं एक काली चमड़ी वाला बंदा हूं, जिसकी उन्हें कोई खास फिक्र नहीं. शुरुआत में इसी के इर्द-गिर्द उनका बर्ताव था. लेकिन इन्वेस्टिगेशन के बाद उनके रवैये में कुछ अंतर आया. जब मैं पुलिस स्टेशन गया, तो वो जर्मन में ही बात कर रहे थे. उन्होंने इंग्लिश में बात करने से इनकार कर दिया. मुझे ट्रांसलेटर की मदद लेनी पड़ी. पहले उन्होंने मेरे साथ मेरी पत्नी को आने से मना किया था. हमने वकील की मदद ली. यह मेरा अधिकार भी है. तब जाकर मेरी पत्नी मेरे साथ आ सकीं. पुलिसवाले इस बात को इग्नोर करते रहे कि यह एक नस्लीय हमला है. वो इसे सामान्य हमले के केस की तरह ट्रीट कर रहे थे. बर्लिन में नस्लीय मामलों के लिए एक स्पेशल डिपार्टमेंट है. मैंने जब उनसे पूछा कि क्या वो इसे स्पेशल डिपार्टमेंट के लिए रेफर करेंगे, तो उनका जवाब था- नहीं. उन्होंने कहा कि नस्लीय हमले के तथ्य को वह केस में शामिल कर रहे हैं.
मामला पुलिस तक तो पहुंच गया, लेकिन अब इसमें फैसला कब तक आएगा? सजन के मुताबिक, इसमें महीनों लग सकते हैं.
शुरुआत में सजन के साथ हुई इस घटना को जर्मनी के किसी मीडिया हाउस ने कवर नहीं किया. सजन दावा करते हैं कि जब भारतीय मीडिया ने इस पर ख़बरें कीं, तब जाकर यहां दबाव पड़ा. इसके बाद एक-दो मीडिया हाउस ने खबर को अपने यहां स्पेस दिया.
हमले के बाद सजन मणि ने जर्मनी में इंडियन एंबेसी से कॉन्टैक्ट किया. कुछ देर बाद दूतावास से कॉल आया. जानकारी जुटाई. सजन चाहते हैं कि भारत का विदेश मंत्रालय इस मामले का संज्ञान ले और यहां रह रहे इंडियन स्टूडेंट्स, माइग्रेंट्स की सुरक्षा के लिए जर्मन प्रशासन से बात करे.