आपके ऑफिस में अगर सारे कलीग एक ही सरनेम के हो जाएं तो क्या होगा? कितना कन्फ्यूज़न हो जाएगा. किसी को भी बुलाना कितना मुश्किल हो जाएगा. और अगर ये कहा जाए कि पूरे देश में जितने लोग हैं सबका सरनेम एक ही है, तब क्या करेंगे. ऐसा है नहीं मगर हो जरूर सकता है. एक स्टडी के मुताबिक करीब 500 साल बाद जापान के हर नागरिक का एक ही सरनेम हो सकता है.
जापान में सबका सरनेम एक होने का खतरा, ये स्टडी दिमाग चकरा देगी
स्टडी में अनुमान लगाया गया है कि अगर जापान शादीशुदा जोड़ों पर एक ही उपनाम रखने का दबाव डालना जारी रखा तो साल 2531 तक हर जापानी आदमी का उपनाम ‘सातो’ हो जाएगा.

जापान में किए गए एक रिसर्च में एक चौकाने वाला दावा किया गया है. रिसर्च के मुताबिक अगर जापान में शादी के कानूनों में बदलाव नहीं होता है तो एक दिन जापान में हर किसी का सरनेम एक ही होगा. इस कानून के तहत जोड़ों को एक ही उपनाम रखने की इजाजत होती है. तोहोकू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हिरोशी योशिदा के नेतृत्व में एक रिसर्च किया गया है. इस रिसर्च में अनुमान लगाया गया है कि अगर जापान शादीशुदा जोड़ों पर एक ही उपनाम रखने का दबाव डालना जारी रखा तो साल 2531 तक हर जापानी आदमी का उपनाम ‘सातो’ हो जाएगा. हालांकि जापान में समलैंगिक शादी को अभी भी लीगल नहीं किया गया है.
“लोगों की नंबर से की जाएगी पहचान”CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, सातो पहले से ही देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला उपनाम है. वहीं ‘सुजुकी’ उपनाम रखने वालों की संख्या दूसरे नंबर पर है. जापान के 300,000 से अधिक उपनामों का डेटा ट्रैक करने वाली कंपनी मायोजी युराई के अनुसार, वर्तमान में सातो सरनेम सबसे आम है. इसके बाद नंबर सुजुकी का आता है. ताकाहाशी तीसरे स्थान पर आता है. मायोजी युराई ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि जापान की 12.5 करोड़ आबादी में से लगभग 18 लाख लोग लोगों का सरनेम सातो है.
प्रोफेसर योशिदा ने कहा, अगर हर कोई सातो बन जाता है, तो हमें हमारे पहले नाम या नंबर से बुलाना होगा. उन्होंने कहा कि ऐसी दुनिया में रहना ठीक नहीं होगा, जहां लोग अपनी पहचान खो दे या एक जैसी करे. योशिदा की रिसर्च कई धारणाओं पर आधारित है, इसकी रिपोर्ट के पीछे जापान के विवाह कानून में जपान की पुरानी संस्कृति का प्रभाव दिखाया गया है.
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जापान में विवाह दर में कमीआधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जापान में 2023 में विवाहों की संख्या में 2022 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट आई. जो कि 90 वर्षों में विवाह दरो की संख्या सबसे निचले स्तर पर थी. जबकि तलाक में पिछले वर्ष 2.6% की वृद्धि हुई. योशिदा के मुताबिक ‘अगर उम्मीद से बहुत कम लोग शादी करते हैं, तो संभावना है कि यह गणना अलग हो सकती है.’ योशिदा ने अपने अध्ययन में यह भी बताया कि जन्मदर में गिरावट के कारण जापान की जनसंख्या बड़े पैमाने पर घट सकती है. 2023 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में 65 वर्ष से अधिक लोगों की संख्या कुल आबादी का 29.1% है.
जापान दुनिया का एकमात्र देश है, जहां शादी के बाद जोड़ों के लिए एक ही सरेनम रखना अनिवार्य है. हालांकि, पति-पत्नी में से कोई भी अपने साथी का उपनाम अपना सकता है, लेकिन 95 प्रतिशत मामलों में महिलाएं ही अपने पति का उपनाम अपनाती हैं. यह कानून पहली बार 1898 में मीजी युग के दौरान पेश किया गया था. इस अवधि के दौरान, महिलाओं के लिए अपना विवाहपूर्व नाम त्यागना आम बात थी. सदियों पुराने इस कानून का खासा विरोध हो रहा है. कई लोग इसमें संशोधन की मांग कर रहे हैं.
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