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पुलिसवाले के रिटायरमेंट में 2 साल बचे थे, तभी पकड़ा गया 'जाति' का झूठ, पता है कितनी सजा हुई?

MP के Indore का ये मामला है, 41 साल नौकरी करने के बाद दोषी सिपाही का सच अचानक एक दिन सामने आया. कैसे खुला ये झूठ? फिर कोर्ट ने क्या सजा सुनाई?

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रिटायरमेंट को दो साल का वक्त ही बचा था (सांकेतिक फोटो- आजतक)

मध्य प्रदेश पुलिस के साथ काम कर रहे एक कॉन्सटेबल (MP Police Constable) को कोर्ट ने सजा सुनाई है. पता चला है कि 41 साल पहले नौकरी जॉइन करते वक्त उसने फर्जी सर्टिफिकेट (Fake Certificate) दिखाया था. नौकरी पाने के लिए दूसरी जाति का सर्टिफिकेट बनवाया और रिजर्वेशन वाले कोटे से पुलिस फोर्स में शामिल हो गया. दोषी सिपाही के रिटायरमेंट को दो साल का वक्त ही बचा था.

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आजतक से जुड़े धर्मेंद्र कुमार शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, दोषी सिपाही का नाम सत्यनारायण वैष्णव है. वो अगस्त 1983 में पुलिस में आरक्षक के तौर पर भर्ती हुआ था. तब उसकी उम्र 19 साल थी.  23 साल बाद यानी मई 2006 में इंदौर के छोटी ग्वालटोली थाने में एक शिकायत मिली कि सत्यनारायण फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहा है. आरोप लगे कि सत्यनारायण ने रिजर्वेशन के लिए खुद के कोरी जाति से होने का सर्टिफिकेट दिखाया था, लेकिन वो ब्राह्मण है. शिकायत के आधार पर कॉन्सटेबल के खिलाफ IPC की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत केस दर्ज किया गया.

पुलिस की जांच में क्या निकला?

पुलिस जांच छह साल तक चली. तब जाकर पता चला कि सत्यनारायण ने नौकरी के लिए फर्जी सर्टिफिकेट बनवाया था.

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अब कोर्ट ने आरोपी को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है. खबर है कि जिला न्यायालय के चतुर्थ अपर सत्र न्यायाधीश जयदीप सिंह ने सत्यनारायण को दो धाराओं के तहत 20 साल और बाकी दो धाराओं के तहत सात-सात साल की सजा सुनाई है. उस पर चार हजार रुपये का जुर्माना भी लगा है.

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कुछ महीने पहले ऐसा एक मामला उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से सामने आया था. एक व्यक्ति पर फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर सरकारी नौकरी पाने का आरोप लगा. उसके खिलाफ केस दर्ज हुआ. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक, शख्स ने कथित तौर पर सरकारी नौकरी में भर्ती के समय फर्जी कागज दिखाए. उसके आधार पर उसे नौकरी मिल भी गई. 31 साल तक नौकरी की और रिटायर भी हो गया. रिटायरमेंट के दो साल बाद जाकर आरोपी के खिलाफ केस दर्ज किया गया. आरोपी सुधीर कुमार खतौली डिपो में ड्राइवर था.

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