भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते (India-US trade deal) को लेकर अभी भी बात फाइनल नहीं हुई है. लेकिन लंबे समय से रुकी यह बातचीत दोबारा पटरी पर लौट रही है. डील कोे अंतिम रूप देने के लिए भारतीय डेलिगेशन इस हफ्ते वाशिंगटन में है. सूत्रों की मानें तो इस बातचीत के फिर से शुरू होने के पीछे तीन मुख्य वजहें हैं. पहला- बैकचैनल डिप्लोमेसी. दूसरा- भारत का साफ और मजबूत रुख. तीसरा- अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट.
भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर बातचीत दोबारा कैसे शुरू हुई? पीछे की पूरी कहानी ये है
India-US trade deal: ट्रेड डील कोे अंतिम रूप देने के लिए भारतीय डेलिगेशन इस हफ्ते वाशिंगटन में है. सूत्रों की मानें तो इस बातचीत के फिर से शुरू होने के पीछे तीन मुख्य वजहें हैं.


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही दोनों देशों के बीच ट्रेड को लेकर बातचीत रुकी हुई थी, लेकिन रक्षा और रणनीतिक मामलों में संपर्क लगातार बना रहा. इस ‘बैकचैनल डिप्लोमेसी’ की वजह से आपसी विश्वास कायम रहा और औपचारिक बातचीत फिर से शुरू करने का माहौल बन गया.
यही एक खास वजह है कि भले ही ट्रेड को लेकर बातचीत नाकाम हो जाए, लेकिन रणनीतिक संबंध पटरी पर हैं. नई दिल्ली को उम्मीद है कि अगर बातचीत में सब कुछ ठीक रहा, तो भारत पर लगा 50 फीसदी टैरिफ, काफी कम टैरिफ में बदल सकता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका चाहता था कि भारत रूस से तेल और हथियारों की खरीद बंद करे. लेकिन भारत ने साफ कहा कि वह अपनी विदेश नीति खुद तय करेगा और रूस के साथ अपने रिश्ते बनाए रखेगा. रिपोर्ट के मुताबिक, एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि भारत ने अमेरिका के सामने अपनी स्थिति साफ कर दी है कि कुछ ऐसी बातें हैं जिन पर भारत झुकेगा नहीं, भले ही इसके लिए उसे कोई कीमत चुकानी पड़े.
दूसरी तरफ, भारत का रुख, चीन की तरह आक्रामक भी नहीं रहा. जाहिर तौर पर यह कारगर साबित हुआ. भारत का मानना है कि वह किसी के भी कहने पर नहीं चलेगा कि उसे किसके साथ व्यापार करना चाहिए. खासकर जब बात रूस की हो, तब तो बिल्कुल भी नहीं, जो जरूरत के समय भारत के साथ हमेशा खड़ा रहा है.
तेल की कीमतों में गिरावटजब भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया था, तब तेल की कीमतें इंटरनेशनल मार्केट में 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर थीं. इसलिए भारत कम कीमत पर रूस से तेल खरीद रहा था. अब यह कीमत घटकर करीब 65 डॉलर प्रति बैरल हो गई है. ऐसे में भारत के पास तेल खरीदने के कई विकल्प सामने हैं. अमेरिका यह बात समझता है. शायद इसीलिए उसे उम्मीद है कि भविष्य में भारत रूस से तेल खरीदना कम कर देगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इस हफ्ते कम-से-कम दो बार यह बात कह चुके हैं कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा. 15 अक्टूबर को ट्रंप ने कहा,
पीएम मोदी ने मुझे भरोसा दिलाया कि वे रूस से तेल नहीं खरीदेंगे. यह एक बड़ा कदम है. अब हम चीन से भी यही करवाने जा रहे हैं.
हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच ऐसी किसी भी बातचीत से इनकार कर दिया.
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चीन को संतुलित करने की कोशिशअमेरिकी टैरिफ से जहां एक तरफ भारतीय MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) को नुकसान पहुंचा है. वहीं वाइट हाउस को भी ‘भारत को चीन के खेमे में धकेलने’ के लिए तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. बातचीत को आगे बढ़ाने में इस फैक्टर भी भूमिका रही है.
दूसरी तरफ, भारत और अमेरिका, दोनों देश चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित करना चाहते हैं. ऐसे में ‘क्रिटिकल मिनरल्स’ जैसे मुद्दों को भी बातचीत में जोड़ा जा सकता है. अधिकारियों का कहना है कि चीन का आक्रामक रुख (व्यापार और महत्वपूर्ण खनिजों जैसे मुद्दों पर) भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है.
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