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प्रचार-प्रसार: डॉ. सानिया इनामदार की रचना- 'पांचाली: द प्रिंसेस ऑफ़ पीस'

लेखिका सानिया इनामदार ने इस पुस्तक के जरिये इन सारे पूर्वाग्रहों से पूर्णतया हट कर पांचाली के व्यक्तित्व, कृतित्व का नया रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया है, जिसमें समाज की हर महिला अपना प्रतिबिंब देख सकती है.

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डॉ. सानिया इनामदार की किताब के कवर की तस्वीर.

पांचाली का किरदार भारतीय संपूर्ण नारीत्व को परिभाषित करने वाला रहा है. इस किरदार का वर्णन अलग-अलग मिथक, साहित्य और लोककथाओं में अनेक प्रकार से प्रस्तुत किया गया है. कहीं पर उनको देवी की उपाधि दी गयी है, कहीं उनके चरित्र पर प्रश्न चिह्न लगाया गया है, और कहीं उनका अति सामान्य मानवीय चित्रण किया गया है.

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लेखिका सानिया इनामदार ने इन सारे पूर्वाग्रहों से पूर्णतया हट कर पांचाली के व्यक्तित्व, कृतित्व का नया रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया है, जिसमें समाज की हर महिला अपना प्रतिबिंब देख सकती है. अपने जीवन की समस्याओं से जूझते हुए, अपने विवेक का प्रयोग करते हुए सही निर्णय लेने की क्षमता को पांचाली के व्यक्तित्व में प्रदर्शित किया गया है जिससे आज के समसामयिक युग में भी प्रत्येक स्त्री को प्रेरणा मिलती है. पांचाली का अपने धर्म के प्रति आत्मत्याग और निर्विवाद निष्ठा एक प्रेरणा का स्रोत है.

मैंने अपने अभी तक के जीवन काल में महाभारत और उससे जुड़ी कई रचनायें पढ़ी हैं. परन्तु लेखिका सानिया इनामदार की पुस्तक पढ़ने के बाद द्रौपदी के प्रति मेरा दृष्टिकोण पूर्णतया बदल गया है. आज के समसामयिक युग में जो महिलाएँ मामूली सी समस्यओं में अपना संयम खो देती हैं, उनके लिए यह पुस्तक एक प्रेरणा है. इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि द्रौपदी को पूरी तरह समझना सबके लिए संभव नहीं है. उनको तो बस श्री कृष्ण ही समझ सकते थे. इस पुस्तक में न केवल द्रौपदी का वर्णन मिलता है, बल्कि श्री कृष्ण, गुरु द्रोणाचार्य, द्रुपद, दुर्वासा, पांडव आदि के बारे में भी बहुत कुछ नया पता चलता है.

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पुस्तक में वर्णन को पढ़ने के बाद मैं यह कह सकता हूँ कि यदि महाभारत के नायक श्री कृष्ण थे, तो नायिका मैं पांचाली को कह सकता हूँ. यद्यपि यह सुनने में विरोधाभासी प्रतीत होता है, क्यूंकि आम तौर पर नायक और नायिका के मध्य एक परस्पर प्रेम सम्बन्ध दिखाई देता है. किन्तु बिना किसी ऐसे सम्बन्ध के श्री कृष्ण और पांचाली पूरे महाभारत में एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं जिससे उनको यह उपाधि देने में मुझे जरा सा संकोच नहीं है.

पांचाली एक आत्मविश्वासी और साहसी स्त्री थीं जो एक अयोनिजा थीं, दिव्य जन्मा, याज्ञसेनी थीं, और निःसंदेह एक संपूर्ण नारी थीं और इन सभी गुणों का मर्म जानने के लिए मैं  ऐसी पुस्तक बार-बार पढ़ना चाहूंगा. यदि समग्र में कहूं तो पांचाली का चरित्र अनोखा है ही, पर समूचे जीवन में मैंने उस चरित्र का वर्णन इस रचना से उत्तम कहीं और नहीं देखा. ऐसी रचना को लिखने के लिए सिर्फ तथाकथित बातें और पढ़े-लिखे तथ्य ही पर्याप्त हैं ऐसा कहना मुश्किल है. क्यूंकि इतने निपूर्ण लेखन के लिए लेखक या लेखिका को उस काल और किरदार को जीना पड़ता है. यह पुस्तक पांचाली जैसी असाधारण नारी के बीच भी एक साधारण नारी, जिसके भीतर सौम्यता, कोमलता और प्रेम छिपा है, इस बात को दर्शाती है.

यह पुस्तक स्पष्ट करती है कि पांचाली का अस्तित्व पांच पतियों, महाभारत के युद्ध, हस्तिनापुर की कुलवधू के अलावा भी बहुत कुछ था. इस पुस्तक से अभिमानिनी, स्वाभिमानिनी, संघर्षशील, कृष्ण सखी, प्रतिज्ञ, ये सभी उपमान पांचाली की पर्यायवाची बन पटल पर उभरते हैं. यह पुस्तक उन महिलाओं में पांचाली को रखती है, जो उस समय के पितृसत्तात्मक समाज में अपनी राय रखती थीं. यह द्रौपदी का एक राजकुमारी के रूप में पहचान का प्रतिनिधित्व करने वाली पुस्तक है, जो हमेशा शांति बनाए रखने में रुचि रखती थी. यह वह नहीं थी जिसने युद्ध के बीच नेतृत्व किया था, लेकिन यह नियति थी जिसने उसे हर क्षण का उत्तरदायी ठहराया.

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ऐसी पुस्तक समाज को प्रदान करने के लिए मैं डॉ. सानिया इनामदार को बहुत-बहुत धन्यवाद् और आभार प्रकट करता हूँ और ऐसी रचनाओं के माध्यम से पांचाली जैसे व्यक्तित्व को अमर बनाने के लिए हमेशा अनुग्रह करता हूँ.

आप इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें और करीब से यह जानें कि पांचाली वो नहीं जो हम सुनते हैं, पांचाली वो है जो डॉ. सानिया ने हमें अपनी रचना से समझाया है. ऐसी रचना को तो बस आंखों में नीर के साथ अद्भुत ही कहा जा सकता है.

लेखक

पुलक त्रिपाठी

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