जो खो जाते हैं, फिर कहां मिलते हैं? खोया-पाया विभाग में. होटल बुकिंग की एक बड़ी वेबसाइट है, Hotels.com. उन्होंने अपनी सालाना रूम इनसाइट्स रिपोर्ट जारी की है. इसमें ब्यौरा है कि होटल में जो मेहमान आते हैं, वो अपने पीछे क्या छोड़ जाते हैं या क्या छूट जाता है. कुछ तो चलिए कॉमन सामान है, जो हम-आप भी कहीं भूल आए होंगे. मगर कुछ तो ऐसी चीज़ें भी हैं, कि दंग हो जाए आदमी!
50 करोड़ की घड़ी, पालतू छिपकली, होटल आने वाले क्या-क्या भूल जाते हैं अब पता चला
रिपोर्ट में केवल खोई हुई चीज़ों का ब्यौरा नहीं है. जनता होटलों में जाकर किस तरह की फ़रमाइशें कर रही है, वो भी है. वो भी ठीक-ठाक अजीब-ओ-ग़रीब.
दुनिया-भर के 400 से ज़्यादा होटलों के आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट के मुताबिक़, जनता अपना फ़ोन का चार्जर/केबल, गंदे कपड़े, मेकअप और ब्रश-मंजन-साबुन-लोशन बहुत भूलती है. सबसे ज़्यादा. मगर ये तो चलिए आम ज़िंदगी की आम चीजें हैं. मेंटॉस ज़िंदगी जीने वाले अलग लेवल पर हैं.
कोई अपनी 50 करोड़ रुपये की रोलेक्स घड़ी भूले जा रहा है. कोई लग्ज़री ब्रैंड्स का लाखों का बैग, कोई लग्ज़री गाड़ी की चाबियां. और तो और, एक बंदा होटल के कमरे में कार का टायर भूल आया. इसके अलावा सगाई की अंगूठी, एक दांत, दो पैर के प्लस्टर, ढेर सारे पैसे, एक पालतू छिपकली और एक चूज़ा भी होटल के कमरे में मिले.
गनीमत से छिपकली और चूजा सुरक्षित रूप से अपने मालिकों के पास वापस आ गए. सगाई की अंगूठी भूलने वाले/वाली का क्या हुआ, दी लल्लनटॉप को इससे जुड़ी पुख़्ता जानकारी नहीं है.
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रिपोर्ट में केवल खोई हुई चीज़ों का ब्यौरा नहीं है. जनता होटलों में जाकर किस तरह की फ़रमाइशें कर रही हैं, वो भी हैं. वो भी ठीक-ठाक अजीब-ओ-ग़रीब हैं. किसी ने चार पाउंड केले, किसी ने बच्चे के लिए एवियन पानी से भरा बाथटब, किसी ने पालतू जानवर के लिए एक ख़ास तैयार मेन्यू, किसी ने जला हुआ टोस्ट और ताज़ा बकरी का दूध मंगवाया है.
एक बात और. जो ये चीज़ें खोई थीं, उन्हें पाने के लिए बहुत जतन भी किए गए हैं. कोई भूले हुए पासपोर्ट के लिए 150 किलोमीटर आया, किसी ने क्रू़ज़ जहाज़ के निकलने से ठीक पहले एक डायरी पहुंचाई.
ख़ैर…'क्या खोया? क्या पाया?' निर्गुण दर्शन से उपजे इस मिड-लाइफ़ क्राइसिस सवाल में जीवन के अर्थशास्त्र को साधने की एक प्रबल इच्छा छिपी हुई है — मटेरियल और आत्मा के बीच एक आशंकित गफ़लत से मात न खाने का एक असफल प्रयास छिपा हुआ है.
इसी विचार के साथ पढ़ते जाइए शिरीष कुमार मौर्य की कविता 'खोया-पाया':
अक्सर
जब हम कुछ खोया हुआ ढूंढ़ते हैं,
तो पहले मन में उसका एक बिंब बनता है।
हम खोए हुए को नहीं,
उस बिंब को ढूँढ़ते हैं।कई बार बिंब चुपचाप बदल भी जाते हैं
और खोया हुआ,
खोया हुआ ही रहता है हमेशा।
हम उसे कभी ढूँढ़ नहीं पाते हैं!
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