स्वास्थ्य मंत्रालय ने क्या कहा है?
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना के बारे में जानकारी देने के लिए मंगलवार शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी. इसी दौरान भारत सरकार के हेल्थ सेक्रेटरी राजेश भूषण से पूछा गया कि पूरे देश में लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाने में कितना वक्त लग सकता है? इसके जवाब में हेल्थ सेक्रेटरी ने कहा-
मैं यह बात साफ कर देना चाहता हूं कि सरकार ने कभी नहीं कहा कि पूरे देश को वैक्सीन दी जाएगी. यह जरूरी है कि हम इस तरह से साइंटिफिक मसलों पर तथ्यों के आधार पर ही बात करें.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर में एक इंटरव्यू में कहा था कि एक बार वैक्सीन आ जाने के बाद यह सभी भारतीयों को उपलब्ध होगी. मोदी ने ये भी कहा था कि इस काम के लिए एक खास एक्सपर्ट ग्रुप बनाया गया है, जो वैक्सीनेशन के काम की रणनीति बनाएगा. पीएम मोदी ने 31 अक्टूबर 2020 को अंग्रेजी अखबार इकॉनिक टाइम्स को दिए इंटव्यू में कहा था-
स्वाभाविक तौर पर शुरुआत में वैक्सीन देने का फोकस उन लोगों पर होगा, जो ये लड़ाई सबसे आगे लड़ रहे हैं. एक खास ग्रुप इस बारे में रणनीति तैयार कर रहा है. 28 हजार से ज्यादा कोल्ड चेन पॉइंट्स में वैक्सीन स्टोर की जाएगी, और फिर उसे बांटा जाएगा. यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वैक्सीन आखिरी कोने तक पहुंचे.

पीएम मोदी ने इकॉनमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में सबको वैक्सीन दिए जाने की बात कही थी. (तस्वीर: PTI)
बस चेन तोड़ने का मामला है
हेल्थ मिनिस्ट्री की मंगलवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश की बायो मेडिकल रिसर्च पर काम करने वाली सबसे बड़ी संस्था ICMR के डायरेक्टर जनरल भी मौजूद थे. मीडिया से बातचीत में ICMR यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव ने कहा-
वैक्सिनेशन इस बात पर निर्भर करेगा कि वैक्सीन की इफिकेसी कितनी होगी. हमारा उद्देश्य कोविड-19 के फैलने की चेन को तोड़ना है. अगर हम एक खास वर्ग को वैक्सीन देकर इस चेन को तोड़ने में कामयाब रहे तो हमें पूरी जनसंख्या को वैक्सीन देने की जरूरत नहीं होगी.वैक्सीन की टाइमलाइन में देरी नहीं होगी
स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के ट्रायल के दौरान सामने आईं समस्याओं के बारे में भी सवालों के जवाब दिए. उन्होंने कहा कि किसी भी घटना का वैक्सीन के ट्रायल की टाइमलाइन पर असर नहीं पड़ेगा. बता दें कि कुछ दिन पहले ही इस वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल में शामिल एक शख्स ने शारीरिक और मानसिक परेशानी होने का दावा करते हुए 5 करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा था. इसके बाद भारत में इस वैक्सीन पर काम करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने उस शख्स के खिलाफ 100 करोड़ का केस कर दिया है.

किसी भी तरह की वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल के बाद ही पता चलता है कि उसकी इफिकेसी कितनी है, इफेक्टिवनेस का पता असल जिंदगी में इस्तेमाल के बाद ही चलता है. (सांकेतिक तस्वीर)
इस मामले पर स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि
जब भी क्लीनिकल ट्रायल होता है, तो हम उसमें हिस्सा लेने वालों से सहमति पत्र पर साइन करवा लेते हैं. दुनियाभर में ऐसा ही होता है. सहमति पत्र में हर तरह के असर की बात को बताया जाता है. क्लीनिकल ट्रायल कई सेंटरों पर हो रहा है. हर जगह एक एथिकल कमेटी रहती है, जिस पर सरकार और वैक्सीन बनाने वाली कंपनी का कोई अधिकार नहीं होता. अगर किसी पेशंट को वैक्सीन से कोई दिक्कत होती है, तो कमेटी के मेंबर इसकी जानकारी ड्रग कंट्रोलर जनरल को देते हैं.बहरहाल, वैक्सीन के बारे में बात करने के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत में कोरोना की स्थिति के बारे में भी आकड़े पेश किए. स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि भारत के हालात बाकी दुनिया से काफी बेहतर हैं.