चाणक्य ने कहा था कि पोस्ट कलियुग काल में रात में ऐंजल प्रिया नाम से आईडी बनाने वाले क्यूट लौंडे दिन में हर बात में ग़ालिब का नाम लगाकर व्हॉटस्ऐप पर फैलाएंगे. ऐसे लोग खुद को चाहे कूलत्व की किसी भी अवस्था में गिनते हों मगर इन नादान लोगों को जहन्नुम में एंजेल ताहिर शाह के गाने रिपीट मोड में सुनने पड़ेंगे.
मियां समझ तो गए होगे कि बात ये है कि ज्ञानी लोग सोशल मीडिया और व्हॉट्स्ऐप पर अपनी हर बात में चचा ग़ालिब, चाणक्य और गुलज़ार का नाम लगाकर फॉर्वर्ड कर देते हैं. अब 27 दिसंबर को पैदा हुए 15 फरवरी को दुनिया से गए ग़ालिब तो ऐसी जनता के लिए पहले ही कह गए थे,
पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है, कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या
हम आपको व्हॉट्स्ऐप पर मिली कुछ ‘कुछ क्यूटी-क्यूटी शायरी’ सुनवाते हैं जिनको पढ़कर बस याद आता है, कीजिए हाय-हाय क्या रोइए ज़ार-ज़ार क्यों 1-
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(भाई, चचा ग़ालिब फीलिंग प्राउड विद 38 फलाना शायर जैसे स्टेटस अपडेट नहीं करते थे)
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(यहां सुख शब्द में लिखने वाले के दर्शन को हूबहू उतारा गया है, बाकी के लिये असदुल्ला खां ग़ालिब ऊपर खुद निपटेंगे)
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(लल्ला, तुमसे न हो पाएगा)
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(प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ग़ालिब के लिखे ओरिजनल शेर से जाहिद नाम के व्यक्ति का क्रेडिट हटाकर असली कवि को क्रेडिट देने का प्रयास किया है. वैसे बता दें कि जाहिद का अर्थ उपदेशक होता है) 6- 


उग रहा है दरो दीवार पै सब्ज़ा ग़ालिब,
हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है
हमें ये सारे शेर व्हॉटस्ऐप और फेसबुक से मिले हैं, इनका असली मालिक कौन है हमें पता नहीं. अगर आप को पता हो तो हमें बता सकते हैं. वैसे चचा ग़ालिब की तरह हमारे चचा भी शायरी कहते हैं, आप भी हर शेर में ग़ालिब लगाने की जगह इनकी तरह एक दम शुद्ध, देसी ओरिजनल शायरी कर सकते हैं. https://www.youtube.com/watch?v=-FyRS-nH-fU