The Lallantop

'सुपर 30' की शुरुआत कैसे हुई थी, बिहार के पूर्व DGP अभयानंद ने बताई पूरी कहानी

अभयानंद ने आनंद कुमार के साथ मिलकर शुरु की थी 'सुपर 30'.

Advertisement
post-main-image
पूर्व डीजीपी अभयानंद (बाएं) और आनंद कुमार (दाएं) (फोटो लल्लनटॉप और आजतक से साभार हैं)

मुफलिसी में जिंदगी बिता रहे सैकड़ों होनहार बच्चों को सही दिशा दिखाकर IIT पहुंचाने वाली आनंद कुमार की 'सुपर 30' को आज देश में कौन नहीं जानता. आमतौर पर लोग यही जानते हैं कि आनंद कुमार ने ही सुपर 30 को शुरू किया था. लेकिन एक और शख्स इस कोचिंग से जुड़ा था जिसका नाम अभयानंद है. अभयानंद बिहार के पूर्व DGP रहे हैं. अभयानंद जब लल्लनटॉप के गेस्ट इन द न्यूजरूम में आए तो इस बारे में खुलकर बात हुई. 

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement

अभयानंद ने बताया कि उन्होंने और आनंद कुमार ने सुपर 30 की शुरुआत एक साथ की थी. 

“उनसे मेरी पहली मुलाकात टाइम्स ऑफ इंडिया के एडिटर के ऑफिस में हुई थी.” 

Advertisement

आनंद कुमार उस समय अखबार में छपने के लिए मैथ्स के कुछ सवाल देते थे. इसके बाद हम दोनों एक दूसरे के घर भी आने-जाने लगे. आनंद कुमार और मेरे बीच में एक चीज कॉमन थी, मैथ्स. दोनों मैथ्स पर काफी बातें करते थे. यहीं से हमने गरीब बच्चों के लिए कुछ करने के लिए तय किया. मेरे लिए पढ़ाना मेरा जुजून था और आनंद कुमार के लिए ये उनका पेशा था. 

इसके आगे अभयानंद बताते हैं, 

"मैंने ये फैसला कर लिया था कि मैं इतना गरीब नहीं हूं कि इस काम से पैसा कमाऊं और इतना अमीर भी नहीं हूं कि इसे चलाने के लिए पैसा लगाऊं. हालांकि शुरुआत में पैसे की बहुत जरूरत नहीं पड़ी थी. कम समय में हमें थोड़े-थोड़े नतीजे भी दिखने लगे, लेकिन रैंक बहुत अच्छे नहीं आ रहे थे. पहला रिजल्ट 2003 में आया था."

Advertisement

इसके आगे पूर्व डीजीपी बताते हैं कि 2004-05 तक 18 से 20 बच्चों का सिलेक्शन अलग-अलग आईआईटी कॉलेजों में होने लगा था. लेकिन रैंक अच्छी नहीं आ रही थी क्योंकि हमें कोई केमिस्ट्री का टीचर नहीं मिला था. मैं बच्चों को फिज़िक्स पढ़ाता था, आनंद कुमार मैथ्स पढ़ाते थे, लेकिन केमिस्ट्री का कोई टीचर नहीं था. वो बच्चे आपस में मिलकर पढ़ लेते थे. इसके बावजूद बच्चे आ रहे थे.

जब इंटरनेशनल मीडिया ने किया कवरेज 

अभयानंद आगे बताते हैं कि 2005 में उन्हें ये एहसास हुआ कि विदेशी मीडिया उनके इस सुपर 30 प्रयोग में रुचि दिखाने लगा था. डिस्कवरी और अल-जजीरा जैसे चैनल, यहां तक कि फ्रेंच और जापानी मीडिया ने भी इसे कवर किया. 2008 आते-आते विदेशी मीडिया ने सुपर 30 को कवर करना भी बंद कर दिया था. उन्होंने आगे बताया,

"इस दौरान हम ये सवाल खुद से कर रहे थे, कि ऐसा इसमें क्या खास है जो विदेशी मीडिया इसे कवर कर रही है. इस सवाल का जवाब जानने के लिए मैंने मीडिया से जुड़ी किताबें पढ़ीं. वहां मैंने पढ़ा कि अगर कुत्ता इंसान को काटता है वो खबर नहीं है, अगर इंसान कुत्ते को काटता है तो ये खबर है. और ऐसा मेरा मानना है कि यहां मैं एक पुलिसवाला होकर बच्चों को पढ़ा रहा था इसलिए ये उनके लिए एक खबर थी. उनके लिए ये एक तरह से इंसान के द्वारा कुत्ते को काटने जैसा था."

अभयानंद कहते हैं कि अब वे रिटायर होने के बाद बच्चों को पढ़ाते हैं तो ये आम बात हो गई है.

क्यों हुए Super 30 से अलग?

आनंद राय से अलग होने के बारे में बताते हुए अभयानंद कहते हैं कि 

मुंबई में रिलायंस ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था जहां हम दोनों को बुलाया गया था. वे लोग हमें एक शॉल और 5 लाख का चेक देने वाले थे. मैंने पैसे लेने से मना कर दिया था, लेकिन आनंद राय उस चेक को स्वीकार कर रहे थे. सुपर 30 को शुरू करने से पहले ये तय किया गया था कि इसके लिए कहीं और से पैसा नहीं लेंगे सिर्फ रामानुज स्कूल ऑफ मैथमैटिक्स से जो पैसा मिलता है उसी से काम चलाएंगे. लेकिन जब आनंद राय ने उस चेक को स्वीकार किया तब मैंने सुपर 30 से अलग होने का फैसला किया.

अलगाव की दूसरी वजह ये भी थी कि उनके ऊपर राज्य में कानून व्यवस्था को सही करने की भी जिम्मेदारी थी, जिस वजह से वे 2005 के बाद से सुपर 30 को ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे. साथ ही इस बारे में मुझे एक फ्रेंच पत्रकार ने भी बोला था कि अब सुपर 30 का कमर्शियलाइजेशन हो रहा है. उस समय मुझे इस बात पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन बाद में जब चीजें और साफ हुईं तो मैंने खुद को इससे अलग करने का फैसला कर लिया. 

पूरा इंटरव्यू सुनने के लिए देखें वीडियो: पूर्व डीजीपी अभयानंद ने मोदी की रैली और सुपर 30 पर बड़े खुलासे कर दिए

Advertisement