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बगदादी की 72 में से एक हूर मिल गई

कई भारतीय लड़के ISIS लड़ाके बनने की राह पर हैं, पर उन्हें सीरिया का रास्ता कौन दिखा रहा है?

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केरेन आएशा हमीदन

कश्मीर में ISIS के लहराते झंडे देखकर आपका खून उबलने लगता है. केरल के लोग ISIS में भर्ती हो जाते हैं, आपका खून उबलने लगता है. लेकिन ये पता है कि इन झंडे फहराने वालों और ISIS में भर्ती होने वालों के खून में उबाल लाता कौन है? 'आएं' मत करो. जवाब है हमारे पास. इस काम के पीछे एक मोहतरमा हैं जिनका नाम है केरेन आएशा हमीदन. ये बगदादी की एयरहोस्टेस है.

और हां... इससे पहले कि नाम पढ़ते ही तुम पड़ोसी मुलुक पर पिल पड़ो, हम बताए देते हैं कि आएशा फिलीपींस की है. पेशा उनका एयरहोस्टेस का है, लेकिन आजकल नए-नए लड़के उनका पल्लू पकड़कर ISIS के टेंट में घुसे जा रहे हैं.

20160809_170826_resizedआएशा के बारे में खास बात ये है कि इनका नाम अभी जल्दी में सामने आया है. भारत में ISIS के जो पोपट पकड़े गए थे, बैंड बजाए जाने पर उन्होंने आएशा का नाम गा दिया. खास बात ये है कि पहले आएशा लड़कों की जिंदगी में सप्रेम आती है और फिर बची 71 हूरों के लालच में बगदादी ब्रिगेड में शामिल करवा देती है. NIA (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) ने जितने लड़कों को धरा है, उनमें से आधे से ज्यादा इसके प्यार में पागल थे.

कई जगह एयरहोस्टेस रह चुकी आएशा की पर्सनल लाइफ पर आते हैं. 20 साल की उम्र में मुस्लिम अब्बा की मौत हो गई. घर में बचीं ईसाई अम्मी और छह चुन्नू-मुन्नू. अम्मी तो ईसाई बनी रहीं, लेकिन आएशा 10 साल पहले अपनी दो बहनों के साथ मुसलमान बन गई. अब वो वॉट्सऐप और फेसबुक पर अपने प्यार का जाल फैलाकर जनता को भेज देती हैं सीरिया, जिहाद करने के लिए.

और ये मत समझना कि आएशा सिर्फ ठरकियों को लपेटती है. उसके जैसा रिक्रूटमेंट तो कॉर्पोरेट कंपनियां भी न कर पाएं. पहले वो आपकी फेसबुक प्रोफाइल देखेगी, पोस्ट देखेगी, फ्रेंड लिस्ट देखेगी और फिर आपसे बतियाना शुरू करेगी. बातचीत हुई नहीं कि जन्नत के लिए आपका टिकट कट जाएगा। बस एक बार आपके 'हां' करने की देरी होती है. बाकी का काम सीरिया ले जाने वाले हैंडलर पूरा कर देते हैं.

33 साल का मोहम्मद सिराजुद्दीन जयपुर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में काम करता था. बेचारे ने जब NIA के सामने अपनी कहानी सुनाई तो बस आंसू नहीं निकले, बाकी हर करम हो गया. बाइ द वे, आएशा की अम्मी ने फिलीपींस पुलिस फोर्स में काम किया है.

लेकिन गुरू एक बात नहीं समझ आती. ये मुंबई, तिरुचिरापल्ली, हैदराबाद और श्रीनगर जैसी जगहों पर बैठे लोगों को आखिर हो क्या जाता है? उन्हें पता भी नहीं चलता और वो रैडिकलाइज्ड हो जाते हैं. धत्त तेरी. मजे की बात यह है कि इतने प्रूफ होने के बावजूद फिलीपींस की पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, क्योंकि उसने खुद कोई धमाका या हत्या नहीं की है. 'ब्लैक मास' याद आ गई। 'If nobody sees it, it didn’t happen.'


यह स्टोरी विशाल ने की है.