'देवसहायम की शहादत के 270 साल बाद उन्हें संत घोषित किया जा रहा है. ये तमिलनाडु के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है.द हिंदू के मुताबिक, लोकगीतकार एके पेरुमल, जिन्होंने देवसहायम की बायोग्राफी लिखी, उनका कहना है कि देवसहायम पिल्लई का जन्म 1712 में नंबूथिरी पिता और नायर मां से हुआ था. 1752 में कन्याकुमारी जिले की सीमा पर अरलवैमोझी में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. देवसहायम हिंदू से ईसाई कैसे बने इसे लेकर लोककथाओं के कई संस्करण हैं.
हिंदू से ईसाई बने देवसहायम को 300 साल बाद मिलेगी संत की उपाधि
देवसहायम के किस चमत्कार की वजह से उन्हें ये उपाधि मिलने वाली है?
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देवसहायम पिल्लई को 5 मई, 2022 को पोप फ्रांसिस वेटिकन में संत की उपाधि देंगे. पहली फोटो-catholicsaints.info और दूसरी पीटीआई से ली गई है.
देवसहायम पिल्लई. वो 18वीं शताब्दी में हिंदू से ईसाई बने थे. उन्हें सेंटहुड यानी संत की उपाधि दी जाएगी. देवसहायम पिल्लई को 5 मई, 2022 को पोप फ्रांसिस वेटिकन में संत की उपाधि देंगे. तब छह अन्य संतों के साथ देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हिंदू धर्म त्यागकर ईसाई धर्म अपनाने वाले देवसहायम पिल्लई संत की उपाधि से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय आम आदमी होंगे. वेटिकन में कांग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स ने ये घोषणा की है. इससे पहले देवसहायम को उनके जन्म के 300 साल बाद 2 दिसंबर 2012 को कोट्टार में 'धन्य' घोषित किया गया था. धन्य घोषित किया जाना मतलब संत की उपाधि देने की ओर बढ़ाया गया एक कदम.
देवसहायम पिल्लई कौन हैं?
देवसहायम का जन्म 23 अप्रैल, 1712 को कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था, जो तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य का हिस्सा था. वो संस्कृत, तमिल और मलयालम जानते थे. मार्शल आर्ट और तीरंदाजी की ट्रेनिंग ले चुके थे. देवसहायम शादीशुदा थे. शाही खजाने में सिविल सेवा की नौकरी करते थे. उन्होंने युद्ध के दौरान एक फ्रांसीसी कैदी से कैथोलिक धर्म के बारे में जाना और 1745 में ईसाई धर्म अपना लिया. उनके बपतिस्मा का नाम लाजरूस है. बपतिस्मा या बैप्टिज्म (Baptism) एक रस्म है जिसमें क्रिश्चियन बनने की शपथ ली जाती है. छोटे बच्चों से लेकर बड़े लोगों तक के लिए ये रस्म होती है. वेटिकन के एक नोट में कहा गया है कि धर्म के प्रचार के दौरान पिल्लई ने जातिगत मतभेदों के बावजूद सभी लोगों की समानता पर जोर दिया. इससे उच्च वर्गों के खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ और उन्हें 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें 14 जनवरी 1752 को गोली मार दी गई. इसके बाद उन्हें शहीद का दर्जा मिला.
ईसाई धर्म में सेंटहुड या संत की उपाधि कैसे मिलती है?
ईसाई धर्म में सेंटहुड या संत की उपाधि पाना थोड़ा टेढ़ी खीर है. इसका पूरा प्रोसेस होता है जिससे गुज़रना पड़ता है. धारणा ये है कि मरने के बाद सेंट स्वर्ग में चले जाते हैं, और भगवान का काम वहां से करते हैं. सेंटहुड की प्रक्रिया आगे बढ़ने के बाद ये देखा जाता है कि जिन्हें संत की उपाधि दी जानी है, मौत के बाद उस व्यक्ति के नाम पर कोई चमत्कार हुआ हो. कम से कम दो चमत्कार ज़रूरी हैं. अब कैसा चमत्कार? किसी का अचानक ठीक हो जाना. ये ठीक होना बिल्कुल झटपट होना चाहिए, परमानेंट होना चाहिए, पूरी तरह से होना चाहिए, और इसका कोई मेडिकल एक्सप्लेनेशन नहीं होना चाहिए. पहले डॉक्टर्स चेक करेंगे, फिर धर्म के ज्ञानी इसकी तस्दीक करेंगे, और आखिर में पोप अपनी स्वीकृति देंगे. इसके बाद ब्लेस्ड (blessed- धन्य) की पदवी मिल जाएगी. हालांकि इसमें एक और नियम है. धर्म के लिए शहीद होने पर एक ही चमत्कार में सेंट घोषित कर दिया जाता है. चूंकि देवसहायम को शहीद का दर्जा मिला हुआ है इसलिए उनके एक चमत्कार पर ही प्रोसेस आगे बढ़ रहा है.
देवसहायम के नाम पर क्या चमत्कार हुआ?
CatholicSaints.Info के मुताबिक, 2013 में एक चमत्कार हुआ. 24 सप्ताह के भ्रूण ने मां के पेट में हिलना बंद कर दिया और उसका दिल धड़कना बंद हो गया. बच्चे की मां कैथोलिक क्रिश्चियन थीं. वो लाजरूस में विश्वास करती थीं. (देवसहायम का बपतिस्मा का नाम लाजरूस है.) उन्होंने बच्चे के लिए धन्य घोषित किए गए लाजरूस से प्रार्थना की. एक घंटे के भीतर उन्होंने महसूस किया कि पेट के अंदर बच्चा लात मार रहा है. टेस्ट के बाद पता चला कि बच्चे की दिल की धड़कन फिर से शुरू हो गई थी. बच्चा बाद में बिना किसी जटिलता के पैदा हुआ. द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक पूर्व IAS अधिकारी ने देवसहायम पिल्लई से पिल्लई सरनेम हटाने के लिए 2017 में वेटिकन को एक पत्र लिखा था. इस अधिकारी नाम था एमजी देवसहायम. उनका कहना है,
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