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संविधान बड़ा या संसद? जवाब देकर CJI बीआर गवई ने बड़ी बहस छेड़ दी है

CJI गवई ने न्यायाधीशों नसीहत देते हुए कहा कि हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होता है. लोग क्या कहेंगे, यह हमारे निर्णय का आधार नहीं हो सकता.

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भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई. (India Today)

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने कहा है कि संसद नहीं, बल्कि संविधान 'सर्वोच्च' है. CJI का ये बयान ऐसे समय आया है जब पिछले कुछ महीनों में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव बढ़ता देखा गया है. अपने गृह नगर अमरावती में बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में CJI गवई ने कहा कि लोकतंत्र के तीनों अंग कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका, संविधान के तहत काम करते हैं. उन्होंने कहा,

"हालांकि कई लोग मानते हैं कि संसद सर्वोच्च है, लेकिन मेरा मानना है कि भारत का संविधान सर्वोच्च है. लोकतंत्र के तीनों अंग संविधान के अधीन काम करते हैं."

जस्टिस गवई ने कहा कि संसद को सिर्फ संविधान में संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान की मूल संरचना को बदल नहीं सकती.

‘मूल संरचना सिद्धांत’ सुप्रीम कोर्ट के 1973 के एक ऐतिहासिक फैसले से जुड़ा है. केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट के 13 न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता.

हालांकि, CJI ने यह भी साफ करने की कोशिश है कि सर्वोच्च न्यायालय का काम सरकार को निशाने पर लेना नहीं है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों पर संविधान द्वारा एक जिम्मेदारी डाली गई है और सिर्फ सरकार के खिलाफ आदेश देना ही स्वतंत्र होना नहीं होता. उन्होंने कहा,

"सिर्फ सरकार के खिलाफ आदेश देना स्वतंत्रता नहीं है. हम नागरिकों के अधिकारों और संविधान के मूल्यों के संरक्षक हैं. हमारे पास केवल अधिकार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है."

इस दौरान जस्टिस गवई ने जजों को भी सलाह दी. उन्होंने कहा कि किसी जज को यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग उनके फैसले के बारे में क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे. उन्होंने कहा

"हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होता है. लोग क्या कहेंगे, यह हमारे निर्णय का आधार नहीं हो सकता."

दरअसल पिछले कुछ महीनों में केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच सीधा टकराव तो नहीं हुआ, लेकिन बयानबाजी बहुत हुई. तमिलनाडु सरकार बनाम गवर्नर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नर के साथ-साथ राष्ट्रपति को भी दिशा-निर्देश जारी कर दिए थे. इस फैसले का मूल यह था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल, विधानसभा से पास हुए बिल पर बैठे नहीं रह सकते. उन्हें तीन महीने में अपना मत स्पष्ट करना पड़ेगा.

इस फैसले के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सुप्रीम कोर्ट पर लगातार बरस रहे हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया था,

तो हमारे पास ऐसे जज हैं जो अब कानून बनाएंगे. कार्यपालिका का काम करेंगे और एक सुपर संसद की तरह भी काम करेंगे, और कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेंगे क्योंकि इस देश का क़ानून उन पर लागू तो होता नहीं.

इस फैसले के बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने भी सुप्रीम कोर्ट और CJI पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. दुबे के बयान पर बीजेपी अध्यक्ष को यह कहना पड़ गया था कि पार्टी का उनकी बातों से लेना देना नहीं है.

वीडियो: सुनवाई के दौरान CJI बीआर गवई ने की तीखी टिप्पणी, 'आपकी ED हर सीमा पार कर रही’